हरीश मेहरा
हरीश चन्द्र मेहरा १४ वर्ष की आयु में भारत के राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार के सर्वप्रथम विजेता थे। राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार की शुरुआत हरीश चन्द्र की वीरता को देखकर ही आरम्भ की गयी थी।
जीवन
हरीश चन्द्र का जन्म वर्ष १९४४ में हुआ। उनकी माता का नाम लक्ष्मी देवी और पिता का नाम राजिन्द्र नाथ मेहरा था।[१] वित्तीय बाधाओं के कारण मेहरा अपनी पढ़ाई आगे नहीं बढ़ा पाये और संघ लोक सेवा आयोग के धोलपुर हाउस कार्यालय में अवर श्रेणी लिपिक की नौकरी करना आरम्भ कर दिया। तीन वर्ष बाद उन्हें बिना किसी प्रोन्नति के प्रकाशन नियंत्रक के पद पर स्थानान्तरित कर दिया गया। उसी कार्यालय से वर्ष २००४ में वो उच्च श्रेणी लिपिक के पद से सेवा निवृत्त हुये।[१]
राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार
हरीश चन्द्र मेहरा वो बालक थे जिनकी बहादूरी से प्रेरित होकर यह विशेष पुरस्कार आरम्भ किया गया था। २ अक्टूबर१९५७ को भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, जगजीवन राम सहित विभिन्न गणमान्य दिल्ली के रामलीला मैदान में रामलीला देख रहे थे। मेहरा वहाँ दर्शक मंडप (शामियाना) में स्काउट के रूप में थे जहाँ अन्य सभी व्यक्ति बैठे हुये थे।[२] शामियाने में आतशबाज़ी से निकली एक चिंगारी से अचानक आग लग गयी। चौदह वर्ष के स्काउट बालक (हरीश मेहरा) ने २० फुट ऊँचे स्तम्भ पर चढ़कर जल रहे शामियाने के कपड़े को अपने स्काउट के चाकू से काटकर आग पर काबू पाया। यह कार्य करने में हरीश के दोनों हाथ बुरी तरह झुलस गए थे।[२] एक बालक के इस साहस से नेहरू अत्यधिक प्रभावित हुए और उन्होंने अखिल भारतीय स्तर पर ऐसे बहादुर बच्चों को सम्मानित करने का निर्णय लिया। सबसे पहला पुरस्कार हरीश चन्द्र मेहरा को प्रदान किया गया।[२]
१९५७ में पुरस्कार शुरू होने के बाद से भारतीय बाल कल्याण परिषद ८७१ बहादुर बच्चों को पुरस्कार प्रदान कर चुकी हैं, जिनमें ६१८ लड़के और २५३ लड़कियां शामिल हैं।[३][४][५][६]
सन्दर्भ
- ↑ अ आ साँचा:cite web
- ↑ अ आ इ साँचा:cite web सन्दर्भ त्रुटि:
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- ↑ साँचा:cite book
बाहरी कड़ियाँ
- प्रेस विज्ञप्ति (अंग्रेज़ी में)