स्मार्त सम्प्रदाय

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स्मार्त सम्प्रदाय, स्मृति साहित्य का अनुसरण करता है। यह माना जाता है कि वेदमन्त्रद्रष्टा ऋषियों ने जिन वेदमन्त्रों का साक्षात्कार सृष्टि के आदिकाल में किया था, उन्हीं ने उनके अर्थों को भी सही रूप में समझा था , अतः वेदों के अर्थ को विस्तार रूप से प्रतिपादन करने वाले उन ऋषियों के प्रतिपादित अर्थस्मारक ग्रन्थविशेषों को स्मृतिशास्त्र कहा जाता है । वस्तुतः देखा जाये तो समस्त सनातन वैदिक धर्म को मानने वाले लोग वेदों और उनके अनुकूल चली आ रहीं परम्परागत प्राचीन स्मृतियों को , जो कि प्रायः विविध ऋषि -मुनियों के नाम पर रहती हैं, उनको धर्म में प्रमाण रूप में स्वीकारते हैं , सुतरां समस्त सच्चे सनातन हिन्दू धर्मावलम्बी स्मार्त ही हैं ।


कुछ लोगों के मतानुसार इस धार्मिक-सामाजिक समूह का प्रचार प्रसार करने वाले, ईसा पूर्व पांचवी सदी के दार्शनिक व अद्वैत वेदान्त के प्रतिपादक शंकर थे। कर्नाटक का शृंगेरी में उनके द्वारा स्थापित मठ तथा इसी प्रकार अन्य दिशाओं में भी उनके मठ स्मार्त सम्प्रदाय का केन्द्र बने हुए हैं तथा इस मठ के प्रमुख जगद्गुरु, दक्षिण भारत , गुजरात, उड़ीसा, उत्तराखण्ड में स्मार्तों के आध्यात्मिक गुरु हैं व भारत के प्रमुख धार्मिक व्यक्तित्वों में एक हैं।

स्मार्त अपनी उपासना में पाँच मुख्य देवताओं-शिव, विष्णु, शक्ति (उनके दुर्गा, गौरी, लक्ष्मी, सरस्वती जैसे सभी रूपों सहित), सूर्य एवं गणेश की पंचायतन पूजा करते हैं।

स्मार्तों के लक्षण इस प्रकार हैं -

अनुष्ठानं कुले येषां स्मृत्यौचित्यपोषकम् ।

क्रियते खलु यथाशक्तिस्ते स्मार्ता विदुर्बुधाः  ।।

अर्थात् जिनके कुल में धार्मिक अनुष्ठान यथाशक्ति स्मृतियों के औचित्य को पोषित करता है अर्थात् इस प्रकार किया जाता है ताकि सभी वैदिक स्मृतियों में सामञ्जस्य बैठ जाये, उनको विद्वान् लोग स्मार्त कहते हैं ।

स्मृतेरनुगतो  यो च  मीमांसादिपरायणः ।

वेदाविरोधिन्याः पवते स स्मार्त्तो  जगत्त्रयम्  ।।

जो वेदों से अविरोध रखने वाली स्मृति का अनुगामी , पूर्वमीमांसा, न्याय, व्याकरण आदि शास्त्रों के परायण हो, वह स्मार्त तीनों लोकों को पवित्र करता है।

अद्वैते हि मतिर्येषां गतिश्चाद्वयब्रह्मणि ।

रतिश्चाखिलवेदान्ते  ते वै स्मार्त्तधुरन्धराः ।।

जिनकी अद्वैत में मति अर्थात् मननशीलता रहती हो , अद्वैत ब्रह्म ही जिनकी गति हो, समस्त वेदान्त (उपनिषद्, ब्रह्मसूत्र, गीता आदि) में जिनकी अनुरक्ति हो , वे निश्चय ही स्मार्तों की धुरी को धारण करने वाले हैं ।

गणनाथदेविशिवविष्णुखगेशदेवान्नित्यं सुपूज्यनिरतस्समानभावैः ।

गोविप्रसन्तसुरशास्त्रभक्तिमतानुयायी  पाखण्डखण्डनपरो खलु वै स्मार्त्तः ।।

गणेश, देवी दुर्गा, शिव, विष्णु तथा आकाश में गमन करने वाले सूर्य - इन देवताओं को जो प्रतिदिन सबके प्रति समान भावनाओं से ओतप्रोत होकर अच्छी तरह से (उसके लिये विहित शास्त्रीय विधा से) पूजन करने में लगे रहता है; गौमाता, ब्राह्मण, सन्त, देवता तथा शास्त्रों के प्रति भक्ति रखने वाला तथा वेदविरोधी मतों के खण्डन में दक्ष, ऐसा व्यक्ति निश्चय ही स्मार्त्त है ।

इन्हें भी देखें