सोहन कादरी
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सोहन कादरी (2 नवम्बर 1932 - 1 मार्च 2011)[१] भारत के एक योगी, कवि चित्रकार हैं, जो अपनी जिंदगी के आखरी 30 साल कोपेनहेगन में रहे। उनकी चित्रकारी गहरे ध्यान की विभिन्न अवस्थाओं के परिणाम हैं, जिनमें भारत के रंगों: चमकदार, रंगों से सराबोर कार्यों को सावधानी से बनाये गये दांतेदार कागज पर उकेरा गया है। अपने लंबे करियर के दौरान, कादरी ने सुरियिलस्ट (कला और साहित्य के क्षेत्र में चला 22 वीं सदी का एक आंदोलन) चित्रकार रेने मैग्रीटी, नोबेल पुरस्कार विजेता हेनरिक बॉल और वास्तुकार ले कुरबिजियर सहित व्यापक दायरे की सांस्कृतिक हस्तियों वैचारिक आदान-प्रदान किया। बॉल ने एक समय कहा था, "अपने चित्र के साथ सोहन कादरी ध्यान शब्द को उसकी फैशनेबल रुचि से मुक्त करते हैं और इसे इसके उचित मूल तक वापस लाते हैं।" संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोप, एशिया और अफ्रीका में उनकी 70 से भी अधिक प्रदर्शनियां लगीं.[२]
भारत में प्रारंभिक वर्ष
सोहन कादरी का जन्म 1932 में, ब्रिटिश भारत में चाचोकी गांव में हुआ था। चाचोकी पंजाब के कपूरथला जिले में औद्योगिक शहर फगवाड़ा के पास है। उनका पालन-पोषण एक धनी खेतिहर परिवार में हुआ-उनकी मां हिंदू थीं और पिता सिख थे। बिजली, नल का पानी, सड़क या कारों से रहित चाचोरी अधिक कास्मोपॉलिटन (सर्वदेशीय) शहर कपूरथला से केवल कुछ मील की दूरी पर है, जहां फ्रांसीसी नव शास्त्रीय शैली के कई महल और सरकारी भवन हैं, जो एक फ्रैंकोफिली महाराज द्वारा निर्मित किये गये थे।
सात साल के एक लड़के के रूप में उनकी परिवारिक फर्म में रह रहे दो अध्यात्मवादियों ने उन्हें सम्मोहित कर लिया। इनमें से पहले एक बंगाली तांत्रिक-वज्रयान योगी विक्रम गिरी थे। दूसरे थे एक सूफी अहमद अली शाह कादरी, जो गिरी से दो कदम की दूरी पर रहते थे। दोनों गुरुओं ने उन्हें ध्यान, नृत्य और संगीत के माध्यम से आध्यात्मिक आदर्शों को सिखाया. हालांकि इनमें से कोई न तो पारंपरिक अर्थों में शिक्षक था और न ही वे धर्म या विश्वास बदलने में रुचि रखते थे, पर उनका प्रभाव गहरा था। कादरी से उनके सहयोग ने अध्यात्म और कला के प्रति उनकी आजीवन प्रतिबद्धता की शुरुआत की.[३]
कादरी की कलात्मक प्रतिभा पहली बार गांव के तालाब में व्यक्त की गई थी। स्नान से पहले, वे मिट्टी की लोइयों के साथ खेलते थे और उन्हें छिड़यों और पत्थरों से विभिन्न खिलौने का आकार दते थे। वे अंगूठे से दबाकर, खरोंचकर और निशान लगाकर आंखों और नाक जैसे रूपों को परिभाषित करते थे, जो तकनीकें अब भी उनके कार्यों में प्रबल रूप से चिह्नित हैं। उसके दृश्य प्रभाव ग्रामीण जीवन से आये, जहां प्रकृति व्यापक है। कादरी कांगड़ा पहाड़ों, आकर्षक वनों, झर-झार झरते झरनों और कपास व गेहूं के खेतों के पैबंदकारी से घिरे महौल में पले-बढ़े.
कादरी ने आठवीं कक्षा तक अपनी स्कूली शिक्षा जारी रखी और वे अपनी मैट्रिक परीक्षा में बैठे. उनकी मां चाहती थी कि वे परिवार की फर्म का कामकाज देखें. प्रारंभ में, उन्होंने इस पर कोई नाखुशी नहीं जाहिर की, लेकिन इसकी चिंता ने अंततः उन्हें हिमालय की ओर पलायन करने के लिए प्रेरित किया। वे वहां से करनौल गये और फिर तिब्बत, जहां वे कई महीनों तक बोद्ध मठों में रहे, अध्यात्मवादियों व वनवासियों के बीच जीवन बिताया. इस बीच, उनकी मां ने एक चचेरे भाई व पहलवान को उन्हें घर लाने के लिए भेजा. उन्होंने दो बार भागने की कोशिश की, लेकिन वे लौटने के लिए मजबूर हुए. आखिरकार, कादरी अपने रुख पर अड़े रहे. खेत का काम देखे से इनकार ने उनकी मां को परिवार को और आगे बढ़ाने की उम्मीदों को धराशायी कर दिया. कादरी मैट्रिक पास करने वाले अपने गांव के पहले लड़के थे, पर रामगढ़िया कालेज से तीन साल की अंडरग्रेजुएट की डिग्री पूरी करने के बदले उन्होंने पंजाब में जालंधर के एक स्टूडियो में फोटोग्राफर प्यारा सिंह से कला का प्रशिक्षण लिया।
1952 में प्यारा सिंह के इंग्लैंड में आकर बसने के बाद, सोहन जालंधर छोड़कर मुंबई गये। आधुनिकता एक शहरी अवधारणा थी और कला के क्षेत्र में अपनी रुचि को आगे बढ़ाने के क्रम में उन्होंने महसूस किया कि उन्हें गांव के जीवन को पीछे छोड़ना पड़ेगा. कादरी परेल में बसे और मुंबई के अंधेरी में एक प्रारंभिक बॉलीवुड स्टूडियो में एक अचल (स्टिल) फोटोग्राफर के रूप में काम किया। अपनी इच्छित कलात्मक भूख को मिटाने में असमर्थ महसूस कर केवल दो फिल्में करने के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया. बंबई में रहने के दौरान उन्होंने कला के प्रसिद्ध जे जे स्कूल और आधुनिकतावादी कलाकारों कृष्णा आरा, के.के. हेब्बेर और शांति दवे का पता लगाया.
आरा, हेब्बेर और दवे के माध्यम से सोहन ने ललित कला महाविद्यालयों के अस्तित्व को जाना, जहां विशेष प्रशिक्षण प्राप्त कर सकते थे और 1955 में शिमला के शिमला कॉलेज ऑफ आर्ट में दाखिला लिया। एक प्रख्यात आधुनिक चित्रकार सतीश गुजराल मैक्सिको में डिएगो रिवेरा, फग्रीडा काहलो और डेविड अल्फ्रो सिकोरस के साथ रहने के बाद कॉलेज में अध्यापन करते थे। इसका पाठ्यक्रम लंदन में रॉयल कॉलेज ऑफ आर्ट के आधार पर तैयार किया गया था और वह चित्रकला की राजपूत और मुगल शैली में विशिष्टीकृत था।
एक छात्र के रूप में कादरी ने दिल्ली की कला दीर्घाओं का दौरा किया। उन्होंने प्रसिद्ध कलाकारों सैलोज मुखर्जी और जे स्वामीनाथन से मिले, जो अननोन समूह शुरू करने की प्रक्रिया में थे। वे अग्रणी भारतीय आधुनिकतावादियों एम.एफ. हुसैन, सैयद हैदर रजा, जे स्वामीनाथन और राम कुमार के कलात्मक परिवेश में पूरी तरह डूब गये। युद्ध के बाद की अवधि कादरी जैसे कलाकारों के उभरने के लिए काफी उत्पादक समय बन गया, जिन्होंने पूरी तरह खिली आधुनिकता का सामना किया। कैलकटा ग्रुप (1942) और प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट्स ग्रुप सहित उनके पूर्ववर्तियों ने अभिव्यक्ति के कुछ खास भारतीय रूपों और पश्चिमी आधुनिकतावादी सिन्टेक्स के पर आधारित आधुनिकता की शब्दावली को पहले से विकसित कर दिया था। कादरी और उनके समकालीन इस शब्दावली पर अपनी कला को निखारने में समर्थ हुए और यहां तक कि पूर्ववर्तियों के अलंकरण पर निर्भर रहने के विचार को भी खारिज कर दिया, जिसे माना जाता है कि ये प्रारंभिक कलाकार उन्हें सही तौर पर भारतीय के रूप में परिभाषित करने के लिए करते थे।
अपनी डिग्री पूरी करने के बाद, कादरी फगवाड़ा अपने घर लौट आए और तीन साल के लिए फगवाड़ा टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज के संकाय में शामिल हुए. 1961 में, संस्थापक और कला पत्रिका मार्ग के संपादक और लंदन ब्लूम्सबरी समूह के सहयोगी डॉ॰ मुल्कराज आनंद ने कादरी की प्रतिभा को मान्यता दी. एक संकाय प्रदर्शनी में उनके काम को देखने के बाद उन्होंने कादरी को चुना और उनके गांव की यात्रा का वादा किया। आनंद पूरे भारत की युवा प्रतिभा का अनायास समर्थन करते रहे और वे कादरी के पहले बड़े संरक्षक बने. आनंद 1963 में एक वास्तुकार और वास्तुकार ले कोरबिजियर के चचेरे भाई पियरे जिन्नेरेट के साथ फगवाड़ा पहुंचे, जिन्होंने अपने संग्रह के लिए एक चित्रकारी ली.
आनंद और जिन्नेरेट ने कादरी को उनके कार्यों को पंजाब और हरियाणा के नए-नए बने राजधानी नगर चंडीगढ़, जिसकी ले कोरबिजियर ने डिजाइन की, लाने के लिए आमंत्रित किया। कादरी की पहली प्रदर्शनी दूसरे जिन्नेरेट द्वारा डिजाइन की पंजाब विश्वविद्यालय पुस्तकालय कला गैलरी, गांधी भवन में आयोजित होने वाली दूसरी प्रदर्शनी (पहली एम.एफ. हुसैन की थी) थी। इस दौरान सोहन ने सूफी शिक्षक के प्रति भक्ति की निशानी के रूप अपने अंतिम नाम सिंह को हटाकर कादरी रख लिया।
आलोचकों की प्रशंसा प्राप्त करने के बाद, कादरी गंभीरतापूर्वक चित्रकारी करने लगे और जालंधर जैसे छोटे से शहर में खुद को पेरिस के स्कूल के बारे में शिक्षा देने लगे. जैसा कि अक्सर यूरोपीय कलात्मक केंद्रों के बाहर रहने वाले कलाकारों के साथ होता है, आधुनिकता को माध्यमिक सामग्री के रूप में देखा गया - विशेष रूप से प्रिंट मीडिया की नजर में. सोहन ने खुद को स्टूडियो इंटरनेशनल, इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ इंडिया और माडर्न रिव्यू साथ ही साथ व्याख्यानों और किताबों को पढ़कर शिक्षित किया। भारतीय कला के विवादास्पद चितेरे फ्रांसिस न्यूटन सूजा और उनके पेरिस में किये गये एडवेंचर के बारे पढ़ने के साथ-साथ कादरी ने आधुनिकता की राजधानी की यात्रा का सपना देखा. इस बीच, उन्होंने मिट्टी और भूसे की गांठों से चाचोकी गांव में एक स्टूडियो का निर्माण किया और खुद को भारतीय और अंतरराष्ट्रीय कला परिदृश्य के बारे में शिक्षा देने लगे.
कादरी ने आलंकारिक काम करना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे अमूर्त की ओर बढ़ने लगे और अंततः अनुभवातीत की तलाश के लिए चित्रण को छोड़ दिया. वे कहते हैं, "जब मैं एक कैनवास पर (चित्रण) प्रारंभ करता हूं, पहले दिमाग को सभी छवियों से खाली कर लेता हूं." वे एक आदिकालीन रिक्तता में बिखर जाते हैं। मैं महसूस करता हूं कि केवल खालीपन को ही कैनवास के शून्य के साथ संवाद स्थापित करना चाहिए."[४] अपने कई समकालीनों की तरह असन्तुष्ट, कंकरीली शहरी दुनिया से विषय सामग्री लेने के बदले उन्होंने ऐसी विषय सामग्री की तलाश शुरू की, जो आध्यात्मिक भावनाओं को प्रेरित करती हो और भाव या मन:स्थिति से भरी पूर्वी मोड की अभिव्यक्ति की तरफ मोड़ती हो. वे कहते हैं, "मैं अलंकरण से विमुख हुए बिना पूरी तरह से रंग और रूप पर ध्यान केंद्रित करता था।"
इस अवधि के दौरान कादरी ने चित्रकला की पद्धति विकसित की, जिसका वह अभी भी उपयोग करते हैं। उन्होंने शुद्ध रंग को तीन श्रेणियों या भागों: काला या गहरा भूरा, गर्म या ठंडा और हल्का, में विभाजित किया। काले रंग से पृथ्वी के तत्व या निचले स्तर का रूप मिलता है। गर्म या ठंडे रंग ऊर्जा निरूपित करते हैं, जिनमें से प्रत्येक एक अलग कंपन (गर्म रहने के समय ऊर्जावान और ठंडे रहने के समय सौम्य) धारण किये हुए होता है और इससे मध्यम स्तर तैयार होता है और हल्के रंग ऊपरी स्तर पर तैयार करते हैं। इससे एक त्रिपक्षीय व्यवस्था की अनुमति मिलती है, जो अवरोही या आरोही क्रम में व्यवस्थित किया जा सकता है।[५]
1962 में कादरी की नई दिल्ली के श्रीधरणी गैलरी में दूसरी प्रदर्शनी लगी. श्रीधरणी प्रदर्शनी के बाद और दिल्ली में रंधावा और डॉ॰ आनंद (तब वे ललित कला अकादमी के अध्यक्ष थे) की मदद से कई दीर्घाओं ने उनके काम में दिलचस्पी ली. उस समय, भारतीय कलाकारों को मोटे तौर पर आधुनिक कला में रुचि रखने वाले कुछ भारतीयों के साथ-साथ राजनयिकों या प्रवासी समुदाय के बीच संरक्षक मिल जाते थे। कादरी की शुरुआती कला के संग्रहकर्ताओं में भारत में बेल्जियम कौंसुल और कनाडा और फ्रांस के राजदूत थे।
अफ्रीका की यात्रा
आनंद के प्रोत्साहन पर कादरी ने भारत के बाहर यात्रा का फैसला लिया और खुद को पूर्णकालिक चित्रकारी में लीन कर लिया। अफ्रीका में उनकी कला का पहला अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शन हुआ। कादरी नैरोबी में शादी का एक काल्पनिक निमंत्रण पाने में कामयाब रहे, जिससे उन्हें पासपोर्ट हासिल करने में मदद मिली, जो कि उस समय कठिन काम था। जब यह पता चला कि उन्हें एक यात्री जहाज के सामान रखने की जगह में बंकर क्लास में गरीब मजदूरों के साथ यात्रा करने के लिए नैरोबी रवाना होने के लिए तीन से छह माह तक का इंतजार करना पड़ेगा, तो उन्होंने व उनके एक कवि मित्र ने तुरंत केन्या के मोंबासा की यात्रा के लिए टिकट बुक कराया. आठ दिन की यात्रा पर समय बिताने के लिए उन्होंने अपने सह-यात्रियों के रेखाचित्र बनाने लगे और एक दिन उन्होंने ऊपरी डेक के एक यात्री का रेखाचित्र बनाया. जल्दी ही वहां भीड़ लग गई और हर कोई एक यथार्थवादी शैली में रेखाचित्र चाहने लगा, जिसमें उन्होंने शिमला में महारत हासिल की थी। यात्रा के बाकी समय में उन्होंने भोजन और व्हिस्की के लिए अपने चित्रों का कारोबार किया।
कादरी अपने सभी बड़े चित्र लाये, जो मूल रूप से मुंबई के ताज आर्ट गैलरी में एक प्रदर्शनी के लिए चाकोकी में चित्रित किये गये थे। उन्होंने केन्या में उनकी प्रदर्शनी की आशा व्यक्त की. जब वे मोंबासा में उतरे, तो बंदरगाह के अधिकारियों ने कादरी के चित्रों का टोकरा फुटपाथ पर फेंक दिया है, क्योंकि वे एक कुली का खर्च नहीं उठा सकते थे। कादरी और उनके यात्रा के साथी तीन दिन और रात तक उस टोकरे पर तब तक बैठे रहे, जब तक एक परिचित पहुंचा और उन्हें नैरोबी से 300 मील दूर ले जाने के लिए तैयार हुआ।
नैरोबी में एक बार उन्होंने एलिमो नजाउ से संपर्क किया, एक केन्याई सांस्कृतिक हस्ती थे और अक्सर दिल्ली आते रहते थे। नाजू तंजानिया में पैदा हुए थे और यूगांडा के मैकेरे यूनिवर्सिटी कॉलेज में ललित कला का अध्ययन किया था। समकालीन संस्कृति के एक उत्प्रेरक नजाउ ने दो गैर-लाभकारी दीर्घाओं, नैरोबी में पा-या-पा नाम से और तंजानिया के मारांगू के किबो में, जहां नियमित रूप से अफ्रीकी और अंतरराष्ट्रीय दोनों कलाकारों की नियमित रूप से प्रदर्शनी लगती थी, की स्थापना की.[६] नजाउ ने तुरंत कादरी के कार्य को मान्यता दी, जो उन्होंने दिल्ली की कुनिका आर्ट गैलरी में देखा था। कादरी की प्रदर्शनी को और लोकप्रिय बनाने के लिए उन्होंने एक और शो आयोजित करने की पेशकश की. तब कादरी मुल्क राज आनंद का लिखे एक परिचयात्मक पत्र के साथ केन्या में तत्कालीन भारतीय राजदूत प्रेम भाटिया के पास गये। भाटिया शो का प्रायोजक बनने और प्रदर्शनी को बढ़ावा देने के लिए दूतावास की मशीनरी का उपयोग करने पर सहमत हुए. भाटिया ने 75 पाउंड कीमत देकर पहली पेंटिंग खरीदी. शो में सारे चित्र बिक गये और पूरे नैरोबी में इसकी चर्चा हुई. इस शो के बाद अमेरिकी स्वामित्व वाले और पुन:जीर्णोद्धार किये गये स्टेनली होटल की स्टेनली गैलरी में दूसरी प्रदर्शनी आयोजित की गई, जो समान रूप से सफल रही.
यूरोपीय प्रवास
अफ्रीका में अपने प्रवास के बाद कादरी ज्यूरिख चले गये। एक पूर्व प्रेमिका ने अपने वास्तुकार मित्र जार्ज प्लैंग के घर में उनके बैठने की व्यवस्था की. कादरी और प्लैंग के मन मिल गये और प्लैंग ने उन्हें किसी सहयोगी के तिलजेनकैंप कहा जाने वाले विशाल विला की चाबियां दे दी. तिलजेनकैंप में, कादरी ने अपनी पहली यूरोपीय प्रदर्शनी की तैयारी की, जो नवंबर 1966 में ब्रुसेल्स की रोमेन लुइस गैलरी में लगी. यह प्रदर्शनी सम्मानित स्विस कला समीक्षक मार्क कुहन की मदद से आयोतिज की गई थी, हालांकि इसमें तेईस चित्रों का प्रदर्शन किया गया था, पर केवल एक बिकी.
हालांकि उनके पास काफी कम पैसा था, कादरी ने पेंट करना जारी रखा. एक दिन, कुहन ने सुरियिलस्ट रेने मैग्रीटी का कलाकार के स्टुडियो में ही साक्षात्कार लिया तो कादरी को उसमें शामिल होने के लिए कहा. परिचय के बाद, जब वे बात कर रहे थे, कादरी चुपचाप बैठे-बैठे कलाकार के चित्रफलक पर मैग्रीटी के बीजगर्भित कैनवास सेसी ने'स्ट पैस उने पाइप (Ceci n’est pas une pipe) देखते रहे. कुछ ही घंटों के बाद, मैग्रीटी ने घोषणा की कि अब उनके शतरंज खेलने का समय हो गया और कुहन को वापस अगले दिन आकर अपना साक्षात्कार पूरा करना चाहिए. जब कादरी ने उनसे कहा कि वह शिमला में शतरंज चैंपियन रह चुके हैं तो मैग्रीटी ने उन्हें एक गेम के लिए चुनौती दी है और फिर जल्दी ही उन्हें हरा दिया.
कादरी पहले संरक्षक, मुल्क राज आनंद और भारतीय चित्रकार सैयद हैदर रजा से मिलने कुहन के साथ ब्रुसेल्स से पेरिस तक की सड़क यात्रा करने से पहले कादरी ने मॉन्ट्रियल के एक जोड़े को अपने पाँच चित्र बेचे, जो अपनी एक गैलरी खोलने के लिए कनाडा लौटने के रास्ते में थे। पेरिस में एक बार दिसम्बर 1966 में अमंड गैलरी में उन्हें पियरे सुलेज, जॉर्ज माइचक्स, जीन पॉल और लुइस फैटॉक्स सहित प्रमुख यूरोपीय कलाकारों के साथ एक महत्वपूर्ण प्रदर्शनी मिली. सात साल बाद वे मॉन्ट्रियल में एमंड की बहन की गैलरी में अपने कार्य को दिखाने में सक्षम हुए.
जब वे ज्यूरिख लौटे, कादरी को पोलैंड के खुशलीन में एक अंतरराष्ट्रीय कलाकारों के शिविर के लिए एक निमंत्रण मिला, जहां उन्हें दो महीने के लिए अस्थायी आवास, भोजन और चित्र सामग्री दी गई। खुशलीन में द सोउक्स म्युजियम ऑफ माडर्न आर्ट ने उस अवधि के दौरान बनी एक चित्रकारी ले ली. उनके स्टूडियो के बाद दो डेनिश कलाकारों चित्रकारबेंट कॉक और प्रिंटमेकर हेले थोरबोर्ग थे, जो कादरी के काम से प्रभावित थे। 1969 में थोरबोर्ग ने डेनिश सांस्कृतिक मंत्रालय के माध्यम से उन्हें कोपेनहेगन की यात्रा की व्यवस्था की.
कोपेनहेगन जाने से पहले, कादरी ने वियना में गैलरी यूनी जेनरेशन और डी'ओरचाई कहे जाने वाले सरकारी प्रिंटिंग प्रेस में अपने कार्यों को प्रदर्शित किया। उन्होंने म्यूनिख में स्टेनजेल गैलरी में भी अपने चित्र दिखाये और पेरिस में 1968 में कुछ समय तक रहे, जहां उन्होंने अमेरिकी कलाकार मिमी वाज के स्टूडियो को किराए पर लिया। वहां वे भारतीय कलाकार सैयद हैदर रजा, अंजलि इला मेनन, एन विश्वनाथन और निकिता नारायण के साथ पियरे सोलेज और जेम्स माइकोक्स से घुले-मिले, जिनसे वे एमंड गैलरी में मिल चुके थे। उन्होंने प्रसिद्ध प्रिंटमेकर कृष्णा रेड्डी से भी मुलाकात की, जो अपनी पत्नी जुडी रेड्डी और ब्रिटिश पेंटर स्टेनली विलियम हेटर के साथ काम कर रहे थे।
इस समय के दौरान, कादरी ने कैनवास पर इंपैस्टो ऑयल से पेंटिंग बंद कर दी और कागज के साथ प्रयोग किया। हालांकि तेल से बने चित्र बेहतर बिके, कागज वाले चित्र नरम रहे और अधिक स्त्रीवादी लगे तथा उन कार्यों के अधिक अनुकूल लगे जो ध्यान की अवस्था से बाहर विकसित होते हैं। वे कहते हैं, "जीवों की गहरी अवस्थाओं को प्रयासों से बाहर नहीं निकाला जा सकता". "जब मैं स्याही और रंगों के साथ काम करता हूं, मैं कैनवास के साथ लड़ता नहीं हूं. कोई ब्रश स्ट्रोक के बिना कोई चित्रकार नहीं होता. इस फार्म की आभा ही चित्र है।"
पेरिस में रहने के दौरान डेनिश संस्कृति मंत्रालय ने कादरी को यात्रा व्यय और एक वजीफा के साथ एक प्रदर्शनी की पेशकश की. मंत्रालय के गैलरी निदेशक ने एक पेंटिंग खरीदी, जैसा कि न्यूयार्क की कोर्ट गैलरी के सैम केन्नर ने किया। डेनमार्क के लुइसियाना संग्रहालय के ग्राफिक विभाग के क्रिस्चियन ओबेर्ग ने कई चित्रों को खरीदा और डेनमार्क में कादरी के लिए पांच प्रदर्शनियों की व्यवस्था की.
कोपेनहेगन में जीवन
पेरिस या न्यूयॉर्क जैसे बड़े शहरों की तुलना में शांत कोपेनहेगन उनके लिए एक आदर्श जगह थी, जिसमें वे शांत, ध्यानापरक कला रूप गढ़ सकते थे। कादरी शुरू में डेनिश आर्ट सोसायटी के चेयरमैन डॉ॰ काज बोर्क के साथ रहते थे, लेकिन, क्योंकि उन्होंने एक बार कई प्रदर्शनियों की व्यवस्था की थी, उन्हें एक स्टूडियो की जरूरत थी। बोर्क की बेटी ने कादरी का डॉ॰ फ्रिट्ज स्कीमिट्टो से परिचय कराया, जो एक सनकी रईस थे और खुद एक बड़े विला में रहते थे। स्कीमिट्टो डेनिश मंत्रालय में एक अर्थशास्त्री थे, जिन्होंने उसी कार्यालय में उसी कुर्सी पर डेनमार्क के प्रति व्यक्ति आय की गणना करते हुए पैंतीस वर्ष तक काम किया था। दो साल पहले अपनी माँ की मौत के बाद से वह असामान्य रूप से अंतर्मुखी हो गये थे और किसी के साथ बहुत कम संपर्क रखते थे।
भारतीय दूतावास के पास कोपेनहेगन के हेलेरप क्षेत्र में स्थत वह विला मुक्त आकाश में उड़ते पंछियों, मछलियों, कुत्तों और कछुओं से भरा हुआ था। धूल से ढंके कई ऊपरी कमरों में से एक में विशाल खिलौना रेलगाड़ी थी और दूसरे में स्कीमिट्टो की माँ के कपड़े ठीक उसी तरह रखे हुए थे, जिस दिन वह मरी थीं। स्कीमिट्टो ने केवल यही पूछा कि कहां के हैं, उनका पेशा क्या है और क्या वे विला के विषम वातावरण में पेंट कर सकते हैं। जब कादरी ने कहा कि वे ऐसा कर सकते हैं, तो स्कीमिट्टो ने उन्हें रहने के लिए आमंत्रित किया और कादरी एक संक्षिप्त अवधि को छोड़कर वहां अठारह वर्षों तक रहे.
कोपेनहेगन में बसने के कुछ वर्षों बाद 1973 में कादरी अपने सबसे महत्वपूर्ण दूसरे संरक्षक व नोबेल पुरस्कार विजेता हेनरिक बॉल से मिले. जर्मनी के कोलोन में बोडो गालुआब गैलरी में एक शो के दौरान एक सम्मानित लेखक से उनका परिचय कराया गया. बॉल ने कई चित्रों को खरीदा और कादरी के काम के बारे में लिखा. इसके अलावा इस अवधि के दौरान कादरी ने अमेरिकी ड्रग के नशे के आदी चित्रकार लिंडा वुड और पेरे बाचो के साथ एक पुराने बंदूक कारखाने दायित्व संभाला और क्रिश्चियाना नाम के एक मुक्त शहर से परिचित होने में मदद मिली, जो अभी भी कोपेनहेगन में मौजूद है। समय के साथ क्रिश्चियाना में सब कुछ सबके लिए उपलब्ध था। यहां कोई गोपनीयता नहीं थी और हशीस खुले में बाजार में उपलब्ध थी। हालांकि उन्होंने इस खुलेपन का मज़ा लिया, लेकिन यह काम करने के लिए एक असंभव वातावरण था। छह महीने बाद, कादरी हेलेरप लौट आये, जहां वे 1986 में डॉ॰ शिमिट्टो की मृत्यु तक बने रहे. अंततः वह सरकार द्वारा प्रायोजित कलाकारों के आवास में चले आये, जहां वह आज भी रह रहे हैं।
हालांकि वे कैनवास पर काम करते रहे, पर 1970 के मध्य से कागज कादरी का पसंदीदा माध्यम बन गया. वे कहते हैं, "मुझे सदा एक माध्यम की तलाश थी, जहां प्रयास अनावश्यक हो. जीवन की गहरी अवस्थाएं प्रयास से बाहर नहीं लायी जातीं."[७] वे कहते हैं। वे कहते हैं कि उनका काम दार्शनिक किस्म का नहीं है, यह सोच की प्रक्रिया को उत्तेजित करने के लिए नहीं होना चाहिये. इसके विपरीत, उनका उद्देश्य विचार प्रक्रिया को कैद करना है, जैसा कि ध्यानावस्था में होता है, जिसका कादरी हर रोज अभ्यास करते थे और सिखाते भी थे।
मोटे तौर पर कादरी एक रंग वाली सतहों पर काम करते है, जिसमें वे छेद और दानेदार बिंदुओं के साथ प्रवेश करते हैं। बौद्ध विद्वान रॉबर्ट थुरमैन ने उनके बिंदुओं और दानेदार आकृतियों को "ऊर्जा के उज्ज्वल बुलबुलों" के रूप में वर्णित किया है।[८] कादरी कागज को इन चिह्नों एक तीन आयामी सतह में बदल देते हैं। इस तथ्य के बावजूद कि वे उत्तरी यूरोप में रहते है, भारतीय लोकाचार की भावना उनकी कला में पूरी तरह मौजूद है। उनके रंग चमकदार- सिंदूरी लाल, मयूरी नीले, गहरा संतरा रंग और यहां तक कि गहरा काला और भूरा हैं और साफ़ तौर पर भारतीय हैं। रंग फीके है और लगता है कि कागज से रिस रहे हैं। रंगों द्वारा पैदा किया गया कंपन अनंत हैं और छवि के भीतर के स्थान और दर्शक के बाह्य स्थान के बीच की सीमा को तोड़ता है।
1980 के दशक और 1990 के दशक के दौरान कादरी की कलात्मक उत्पादकता बढ़ी है और उन्हें लॉस एंजिल्स, कोपेनहेगन, नैरोबी, नई दिल्ली, मुंबई, सिंगापुर और न्यूयॉर्क में प्रदर्शनियों के लिए आमंत्रित किया गया था। हालांकि उन्होंने कभी शादी नही की, पर दो पार्टनरों, एक केरल की ईसाई और दूसरे एक अन्य फिन से अपने तीन बच्चे को पालने में मदद की. यह वही समय था, जब उन्होंने भारत के पंजाब में एक प्राचीन व्यापार मार्ग पर एक आध्यात्मिक मृतिका कला परियोजना, एक ज्ञान स्तंभ या ज्ञान स्तूप बनाने की योजना बनानी शुरू की. ये संरचनाएं अंततः देश की कई एकड़ जमीन पर बनेंगी और इन्हें ज्ञान और शांति के लिए समर्पित किया जाएगा. स्तूप का निर्माण प्रगति पर है। अपनी कला गढ़ने के साथ-साथ, कादरी ने स्कैडिनेविया में उन्नत स्तर के छात्रों को ध्यानावस्था का पाठ पढ़ाना जारी रखा है।
कादरी ने अपने पूरे करियर के दौरान सफलतापूर्वक अलग-अलग संस्कृतियों में जीवन जिया. वह कहते हैं, "मैं अपने आप को एक जगह, राष्ट्र या समुदाय तक सीमित नहीं करना चाहता था।" "मेरा जीवन के प्रति दृष्टिकोण सार्वभौमिक है और ऐसी ही मेरी कला है।"
उद्धरण
यह सोहन कादरी के ज्ञान और कला का परिचय कराने का विशेषाधिकार है, यहां तक कि इस जैसे छोटे रूप में. ऐसी कला का लक्ष्य सिर्फ सिद्धांत पैदा करना नहीं होता. इसका किसी तरह का उद्देश्य नहीं हो सकता है। यह अपने भागीदार को वह जीवंत आयाम खोलने के लिए आमंत्रित करता है, जहां से यह पैदा होता है। यह कलाकार के वास्तविकता के अनुभव के खेत में फलता-फूलता है। वह भ्रम के माध्यम से देखने के बाद शुद्ध सौंदर्य के रूप में विखंडित हो जाता है और मुक्त उड़ान भरता है। वास्तविक स्वतंत्रता खुद को जाल में नहीं फंसाती, यह एक साथ ही खुद से मुक्त है और इसलिए दूसरों के लिए खुशी और प्यार से भ्रम को बाहर में संलग्न होती है। धोखा दे रहा भ्रम मुक्ति प्रदान करने के जादू में तब्दील हो जाता है। ज्ञान कलाकार को आनंद सागर में छोड़ता है। आनंद अनायास दूसरों को प्यार भरी आंखों से देखता है, आगे उनमें भी आनंद की चाह तैयार करता है। कलाकार सौंदर्य के स्थान की कल्पना करता है, जहां उसका अनुभव दूसरे के अनुभव छू सके है।[८]
डॉ॰ रॉबर्ट थुरमैन
कलाकार होते हैं। तांत्रिक कलाकार होते हैं। जहाँ तक मुझे पता है, ऐसे तांत्रिक योगी नहीं होते, जो साथ-साथ कलाकार भी हों. सोहन कादरी एक अपवाद है। वह एक असाधारण कलाकार है। वे योग की कला में निपुण मास्टर (गुरु) है। वह पेंटिंग की कला में निपुण गुरु है। वह अभ्यास करने वाले एक तांत्रिक योगी हैं, जो समय-समय पर वर्जित खाद्य पदार्थ खाने, शराब पीने और व्यभिचार में लिप्त अनुष्ठान (पंच-मकार) करते हैं। इस मामले में कानून तोड़ कर वह एक तरह से विधायक बन जाते हैं।
एक मूर्तिवादी बनने के लिए किसी को छवियों का निर्माण करने के बारे में पता होना चाहिए. कानून तोड़ने के लिए किसी को एक विद्वान वकील होना चाहिए.'
कादरी एक विद्वान आदमी है। वह एक पुण्यात्मा हैं, जिनसे एक प्रभामंडल उत्पन्न होता है। उन्हें एक जाली संत के रूप में बताने की कोशिश करो या बेनकाब करो और वह एक महान कलाकार के रूप में उभरेगा. उनकी कला को छल घोषित करने की कोशिश करो और वे एक महान विद्वान के रूप में उभरेंगे. उनके ज्ञान को झूठा साबित करने की कोशिश करें और यह साबित हो जायेगा कि उनमें ये सभी तीन-साधुता, सौंदर्यशास्त्र और ज्ञान मौजूद हैं।
मेरे मन में कोई शक नहीं है कि सोहन कादरी एक दुर्लभ और मौलिक भागीदार के रूप में उभर रहा है। आप उनकी चित्रकारी को यंत्रों या मंडलों के रूप में देख सकते हैं और उन्हें मंत्रों जैसे शब्दों के रूप में वर्णित सकते हैं। आप उनकी चित्रकारी में कुंडलिनी नाम की 'भुजंग-सत्ता' या शक्ति का प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व देख सकते हैं, जिसे मेरूदंड के अंतिम छोर पर घुमावदार आकृति में स्थित बताया जाता है। आप उनकी चित्रकारी को सिर्फ रूप या रंग के रूप में देख सकते हैं और उनका एक शुद्ध कला के रूप में आनंद उठा सकते हैं। इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि आप किस कोण से देख रहे हैं, पर यह एक महान दृष्टिकोण का खुलासा करता है, जो रहस्यवाद है। इसके सौंदर्यशास्त्र में, भावना के साथ सखा का मिलन चरमोत्कर्ष तक पहुंचता है।
सोहन कादरी एक गुरु हो सकते हैं। वह एक तांत्रिक बाबा हो सकते है। वह कला से असंबद्ध कुछ भी हो सकते हैं। मेरे लिए वह एक विलक्षण कलाकार है। अजित मुखर्जी की पुस्तक तंत्र कला (जिसकी मैंने स्टूडियो इंटरनेशनल में समीक्षा की थी, दिसंबर 1996) में कहा, गया है "यह आश्चर्यजनक है कि कई महान भारतीय कलाकार अंतत: संत बन गये।" लेकिन सोहन कादरी के साथ मुझे लगता है कि उल्टा हुआ, लेकिन शायद फिर से वापस लौटने के लिए.[९]
-एफ. एन. सूजा (चित्रकार और लेखक), न्यूयॉर्क, जून 1976
कादरी की कला का संपूर्ण कार्य शून्यता के सिद्धांत को इस सौंदर्यात्मक प्रत्यक्षीकरण के रूप में प्राप्त करना है। चाहे उनके प्रतीक खालीपन पर जोर देते हों, जैसा कि नयन और अंकुर के उदास कर रहे अंधेरे, साथ ही शून्यता चतुर्थ के अंधेरे से घिरे प्रकाश का खालीपन या बीज, जैसे कि बीज के उत्तेजनात्मक रूप से जीवंत रंग, आस्था और धर्म क्यों न हो. मैं मानता हूं कि वे शून्य और बीज के द्वंद्वात्मकता के साथ तनावग्रस्त रहते हैं, जो रचनात्मकता का द्वंद्व है।[१०]
-डोनाल्ड कुस्पिट
अतिक्रमण का संदेश देने के लिए अमूर्त का उपयोग कर वे आधुनिकता के पूर्व प्रख्यात सौंदर्यवादी रहस्य हैं।[१०]
-डोनाल्ड कुस्पिट
चयनित बिब्लियोग्राफी (ग्रन्थ सूची)
2009 वंडरस्टैंड: द पोएम्स "एफोरिज्म्स" एंड "द डौट एंड द डौट्स", बिंदु प्रकाशक, स्टॉकहोम, स्वीडन. ISBN 978-91-977894-0-0.
2007 सोहन कादरी: प्रेसेंस ऑफ़ बीइंग, सुंदरम टैगोर इंक, न्यूयॉर्क, संयुक्त राज्य अमेरिका. ISBN 81-88204-35-8.
2005 सीकर: द आर्ट ऑफ़ सोहन कादरी, मैपिन प्रकाशन, न्यूयॉर्क, संयुक्त राज्य अमरीका
1999 साक्षी, द्रष्टा, आर्ट और डील, नई दिल्ली, भारत
1995 अंतरजोती, पंजाबी सूत्र, नव युग, नई दिल्ली, भारत
1995 अफोरिसमर, अंग्रेजी सूत्र के डेनिश अनुवाद,
ओमेंस फॉरलैंग, डेनमार्क
1990 बूंद समुन्दर, पंजाबी सूत्र, अमृतसर, नई दिल्ली, भारत
द डॉट एंड द डॉट्स, अंग्रेजी सूत्र, राइटर्स कार्यशाला, कोलकाता, भारत
1987 मिट्टी मिट्टी, पंजाबी सूत्र, नव युग, नई दिल्ली, भारत
1978 द डॉट एंड द डॉट्स कविता एवं चित्र, स्टॉकहोम, स्वीडन. ISBN 91-85778-00-1.
सन्दर्भ
- ↑ साँचा:cite web
- ↑ सोहन कादरी. सुंदरम टैगोर द्वारा साक्षात्कार, कोपेनहेगन, 2003.
- ↑ रॉबर्ट थर्मन अल एट में सुंदरम टैगोर, "डिसौल्विंग कोंटर्स,", सीकर: द आर्ट ऑफ़ सोहन कादरी (न्यूयॉर्क: मैपिन प्रकाशन, 2005), 112-130.
- ↑ चोपड़ा, स्वाती. "तानत्रिस्त-सूफी हो पेंट्स विद हिज़ सोल." टाइम्स ऑफ इंडिया. 27 नवम्बर 2002. कलाकार के निजी संग्रह.
- ↑ यादव, आर.एस. "सोहन कादरी है दृश्य काव्यशास्त्र." कला. कलाकार के निजी संग्रह.
- ↑ कैनेडी, जीन. "प्राकृतिक और अलौकिक के बीच."नई धाराओं, प्राचीन नदियों: एक पीढ़ी के परिवर्तन में समकालीन अफ्रीकी कलाकारें. वॉशिंगटन. स्मिथसोनियन इंस्टीट्यूशन प्रेस, 1992.
- ↑ मराठे, कौमुदी. "सोहन कादरी." इनसाइड आउटसाइड. अप्रैल 1996, पीपी. 20-21. कलाकार के निजी संग्रह.
- ↑ अ आ रॉबर्ट थर्मन एट अल., साधक: सोहन कादरी की कला (न्यूयॉर्क: मैपिन प्रकाशन, 2005), 10.
- ↑ रॉबर्ट थर्मन एट अल., साधक: सोहन कादरी की कला (न्यूयॉर्क: मैपिन प्रकाशन, 2005), 22.
- ↑ अ आ डोनाल्ड कुस्पिट, "मेडिटेशन, एस्थेटिक शौक एंड द ग्लैड्निंग ऑफ़ कौशियसनेस," ध्यान, सौंदर्यशास्त्र शॉक हर्षक की और चेतना के सोहन प्रतीक: कादरी, अल में रॉबर्ट Thurman एट:., साधक सोहन कादरी की कला (न्यू यॉर्क: Mapin प्रकाशन, 2005), 14 .