सोवा रिग्पा
सोवा रिग्पा (तिब्बती : བོད་ཀྱི་གསོ་བ་རིག་པ་, Wylie: Ggso ba rig pa) तिब्बत सहित हिमालयी क्षेत्रों में प्रचलित प्राचीन उपचार पद्धति है। भारत के हिमालयी क्षेत्र में 'तिब्बती' या 'आमचि' के नाम से जानी जाने वाली सोवा-रिग्पा विश्व की सबसे पुरानी चिकित्सा पद्धतियों में से एक है।[१]
भारत में इस पद्धति का प्रयोग जम्मू-कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र, लाहौल-स्पीति (हिमाचल प्रदेश), सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश तथा दार्जिलिंग (पश्चिम बंगाल) में किया जाता है। सोवा-रिग्पा के सिद्धांत और प्रयोग आयुर्वेद की तरह ही हैं और इसमें पारंपरिक चीनी चिकित्साविज्ञान के कुछ सिद्धांत भी शामिल हैं। सोवा रिग्पा के चिकित्सक देख कर, छू कर एवं प्रश्न पूछकर इलाज करते हैं।
ऐसा माना जाता है कि यह पद्धति भगवान बुद्ध द्वारा 2500 वर्ष पहले प्रारंभ की गई थी। बाद में प्रसिद्ध भारतीय विद्वानों जैसे जीवक, नागार्जुन, वाग्भट्ट एवं चंद्रानंदन ने इसे आगे बढ़ाया। इसका इतिहास 2500 वर्षों से अधिक का रहा है। सोवा-रिगपा प्रणाली यद्यपि बहुत प्राचीन है किन्तु हाल ही में मान्यता प्रदान की गई है। यह प्रणाली अस्थमा, ब्रोंकिटिस, अर्थराइटिस जैसी पुराने रोगों के लिए प्रभावशाली मानी गई है।
सोवा-रिगपा का मूल सिद्धांत निम्नलिखित है
- (1) इलाज के लिए शरीर और मन का विशेष महत्व है
- (2) एन्टीडॉट, अर्थात इलाज
- (3) इलाज की पद्धति
- (4) बीमारी को ठीक करने वाली दवाईयां ; और
- (5) फार्माकॉलॉजी। [२]
सोवा-रिगपा मानव शरीर के निर्माण में पांच भौतिक तत्वों, विकारों की प्रकृति तथा इनके समाधान के उपायों के महत्व पर बल देता है।। उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में सोवा-रिगपा के कुछ शैक्षणिक संस्थान हैं।