सोलंकी वंश
सोलंकी वंश इस राजवंश को लाट के चालुक्य अथवा चौलुक्य राजवंश भी कहा जाता है।बादामी के शासक विक्रमादित्य द्वितीय के भाई भुवर प्रथम के समय इसकी नीव डाली गई।प्रतिहारों के कमजोर होने के पश्चात मूलराज प्रथम ने इस राजवंश को प्रतिष्ठा दिलाई।इसकी राजधानी को अन्हिलवाड़ा उसने बनाया।996 ई.में मूलराज प्रथम ने अपने पुत्र चामुंडराज को सत्ता सौंपकर स्वयं आत्महत्या कर ली।उनके अधिकार पाटन और काठियावाड़ राज्यों तक था। ये ९वीं शताब्दी से १३वीं शताब्दी तक शासन करते रहे। इन्हें गुजरात का चालुक्य भी कहा जाता था। यह लोग मूलत: अग्निवंश व्रात्य राजपूत हैं और दक्षिणापथ के हैं परन्तु जैन मुनियों के प्रभाव से यह लोग जैन संप्रदाय में जुड़ गए। उसके पश्चात भारत सम्राट अशोकवर्धन मौर्य के समय में कान्य कुब्ज के ब्राह्मणो ने ईन्हे पून: वैदिकों में सम्मिलित किया(अर्बुद प्रादुर्भूत)।। [१]