सॉल

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विलय या सॉल (sol) किसी सतत तरल माध्यम में बहुत छोटे ठोस कणों से बना एक कोलाइड है। सॉल काफी स्थायी होते हैं और टिण्डल प्रभाव दिखाते हैं। इनके कुछ उदाहरण ये हैं- रक्त, रंजित स्याही, कोशिका का तरल, पेंट, मिल्क ऑफ मैग्नेशिया, कीचड़ आदि। सॉल का उपयोग प्रायः सॉल-जेल प्रक्रिया में किया जाता है। कृत्रिम सॉल का निर्माण दो विधियों द्वारा किया जाता है- परिक्षेपण (dispersion) द्वारा या संघनन (condensation) द्वारा। प्रायः सॉल के लिए परिक्षेपण माध्यम (dispersing medium) के रूप में कोई द्रव होता है तथा परिक्षिप्त माध्यम (Dispersed phase) के रूप में कोई ठोस।

द्रवरागी और द्रवविरागी सॉल का निर्माण

सिद्धान्त

द्रवरागी (lyophilic) सॉलों में परिक्षिप्त प्रावस्था के कणों का परिक्षेपण माध्यम के कणों की ओर आकर्षण होता है अतः यह सॉल द्रवविरागी (lyophobic) सॉलों की अपेक्षा अधिक स्थाई होते हैं। सॉलों के स्थायित्व के लिए उत्तरदायी दो कारक हैं - आवेश और विलायक कणों का विलायक योजन।

द्रव रागी सॉलों का स्थायित्व मुख्यतः कोलॉइडी कणों के विलायक योजन के कारण होता है जबकि द्रव विरागी सॉल कोलॉइडी कणों के आवेश द्वारा स्थायित्व प्राप्त करते हैं। अपने आवेश के कारण कोलॉइडी कण विलयन में निलंबित रहते हैं और स्वंफदन नहीं होता। यह आवेश ऋणात्मक अथवा धनात्मक हो सकते हैं। ऋणात्मक आवेश वाले सॉल के कुछ उदाहरण हैं स्टार्च और आर्सेनियस सल्पफाइड। फेरिक क्लोराइड को गरम जल के आध्क्यि में मिलाने पर जलयोजित फेरिक ऑक्साइड का धन आवेशित सॉल बनता है तथा जब फेरिक क्लोराइड को छंव्भ् विलयन मिलाने से जलयोजित फेरिक ऑक्साइड का ऋण आवेशित सॉल बनता है। द्रवरागी सॉल, पदार्थ को सीधे ही उपयुक्त द्रव में मिलाकर और विलोड़ित करके बन जाते हैं। द्रव विरागी सॉलों को सीधे ही विलायक में मिलाकर विलोड़ित करने से नहीं बनाया जा सकता। इन्हें बनाने के लिए विशेष विद्यियाँ अपनाई जाती हैं।