सेला और नूरा

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सेला और नूरा दो मोनपा लड़कियां है जिन्होंने १९६२ की भारत - चीन युद्ध में राइफलमैन जसवंत सिंह रावत की मदद करी थी।[१] स्थानीय मोनपा लोककथाओं के अनुसार, बाबा की आत्मा (जैसा कि जसवंत सिंह रावत को प्यार से कहा जाता है) के साथ-साथ दो मोनपा लड़कियों सेला और नूरा (जिन्होंने जसवंत सिंह रावत की मदद की थी और युद्ध के दौरान उनकी मृत्यु हो गई थी) अभी भी इन हिस्सों में घूमते हैं और उनकी रक्षा करते हैं। नूरानांग की लड़ाई में तीन दिनों में चीनियों के 300 सैनिक मारे गए थे। चीनी पूरी तरह से हैरान थे कि यह सिर्फ एक सैनिक था जो इस क्षति का कारण बना (उन्होंने शुरू में सोचा था कि वे एक पूरी बटालियन का सामना कर रहे थे)।[२]

जसवंत सिंह रावत ने सेला और नूरा की मदद से, जो कुलियों के रूप में काम करती थीं, अलग-अलग स्थानों पर हथियार स्थापित किये और चीन के सैनिको पर भारी मात्रा में गोलीबारी कर दी। इससे चीनियों को यह विश्वास हो गया कि वे एक पूरी बटालियन का सामना कर रहे हैं, न कि केवल एक व्यक्ति का। राशन की आपूर्ति करने वाले शख्स को चीनी सैनिको ने पकड़ लिया। उसने चीनियों को जसवंत सिंह रावत के बारे में सारी बातें बता दीं। जिसके बाद चीनी सैनिको ने १७ नवम्बर, १९६२ को चारो तरफ से जसवंत सिंह रावत को घेर लिया। हमले में सेला एक ग्रेनेड हमले में मारी गई जबकि नूरा को चीनी सैनिको ने जिन्दा पकड़ लिया। जब जसवंत सिंह रावत को अहसास हो गया कि उनको पकड़ लिया जाएगा तो उन्होंने युद्धबंदी बनने से बचने के लिए एक गोली खुद को मार ली। चीनी सेना का कमांडर जसवंत सिंह रावत की तबाही से इतना नाराज था कि वो उनका सिर काट कर ले गया। चीनी सेना जसवंत सिंह रावत के पराक्रम से इतनी प्रभावित हुई कि युद्ध के बाद चीनी सेना ने उनके सिर को लौटा दिया. चीनी सेना ने उनकी पीतल की बनी प्रतिमा भी भेंट की, जिससे जसवंत सिंह रावत की विशिष्ट बहादुरी को एक पहचान मिली।[३][४]

संदर्भ