सृजन सम्मान
सृजन-सम्मान का गठन सृजनात्मकता और मौलिक लेखन की साधना को अक्षुण्ण बनाए रखने के उद्देश्य से स्व. हरि ठाकुर ने 1995 में रायपुर में किया। वे छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के कुशल शिल्पी, विचारक, इतिहासविद्, स्वतंत्रतासंग्राम सेनानी और साहित्यकार थे। सृजन-सम्मान इन कठिन लक्ष्यों के लिए स्वयंसेवी भाव से जुड़ने वाले रचनाकारों का अखिल भारतीय संगठन है। इसमें शिक्षाविद् एवं युवा रचनाकार जयप्रकाश मानस की महती भूमिका रही है।[१]
उद्देश्य
संस्था का मूल मंत्र - रचनात्मक संस्कारों का अनुसमर्थन है। सबसे पहले मुख्यतः समाज में जागरुकता, शिक्षा, साक्षरता, वैज्ञानिक चेतना में गुणात्मक अभिवृद्दि के लिए में साहित्यकारों की भूमिका को लेकर संस्था का गठन किया गया था। व्यापक विचार-विमर्श के पश्चात संस्था के उद्देश्य तय किया गया जो इस प्रकार हैः-
- रचनात्मक साहित्य और विविध विधाओं का प्रोत्साहन।
- रचनाकारों का मूल्याँकन, सम्मान एवं उन्हें प्रतिष्ठा की रक्षा करना।
- जीवन-मूल्यों की निरंतरता बनाये रखने वाले साहित्य का विकास।
- लोक भाषाओं का संरक्षण एवं संवर्धन।
- साहित्य को शिक्षा, सामाजिक सद्भाव, राष्ट्रीय एकता के लिए कारगर बनाना।
- नये प्रतिभाओं का मार्गदर्शन एवं प्रोत्साहन।
- विभिन्न विभूतियों के कृतित्व को समाज में स्थापित करना।
- राष्ट्रीय सरोकारों और मूल्यों का अनुसमर्थन।
- सामाजिक कुरीतियों के विरूद्ध रचनात्मक संघर्ष।
- संस्कृति के सभी घटकों को विकास के लिए सतत् प्रयास।
- आयातीत एवं आरोपित मूल्यों के प्रति जनता को आगाह करने के उपायों पर कार्य।
कार्य
इस संगठन द्वारा हिंदी के विकास के विभिन्न कार्य किए जाते हैं, जिनमें नवोदित लेखकों की कृतियों को प्रकाशित करना, साहित्य के क्षेत्र में विशिष्ट कार्य करने वाले व्यक्तियों को सम्मानित करना तथा नियमित पत्रिका व ब्लॉग के ज़रिए हिंदी विकास में लगे रहना तथा हिंदी की संस्कृति के संवर्धन में संपूर्ण आस्था संगठन का मूल ध्येय है।[२]
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- सृजन सम्मान - का जालपृष्ठ
- सृजनगाथा - सृजन-सम्मान की अन्तरजालीय पत्रिका