सुपरिभाषित

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गणित में, किसी कथन को सुपरिभाषित कहा जाता है यदि यह स्पष्ट है और इसके अवयव इसके निरूपण से स्वतंत्र होते हैं। अधिक सरल शब्दों में, इसका मतलब यह है कि एक गणितीय कथन प्रत्यक्ष और स्पष्ट हो। विशेष रूप से, एक फलन सुपरिभाषित कहलाता है यदि इसके निविष्ट में बदलाव किये बिना इसके रूप में परिवर्तन (जिस रूप में यह प्रस्तुत किया जाता है) करने पर यह समान परिणाम देता है। एक सुपरिभाषित फलन 0.5 के लिए वही परिणाम देता है जो 1/2 के लिए देता है।[१] शब्द सुपरिभाषित को एक तार्किक कथन के स्पष्ट के लिए भी काम में लिया जाता था और आंशिक अवकल समीकरण को सुपरिभाषित कहा जाता है यदि यह सीमाओं पर सतत है।[२]

सुपरिभाषित अंकन

वास्तविक संख्या के लिए <math>a \times b \times c</math> का परिणाम स्पष्ट है क्योंकि <math>(ab)c= a(bc)</math> होता है।[२] इस स्थिति में इस अंकन को सुपरिभाषित कहा जाता है। हालाँकि यदि संक्रिया (यहाँ <math>\times</math>) साहचर्य गुणधर्म नहीं रखती तो यहाँ एक परिपाटी परिभाषित होनी चाहिए जिसमें दो अवयवों को पहले गुणा किया जाता है। अन्यथा, यह गुणा सुपरिभाषित नहीं है। उदाहरण के लिए संक्रिया घटाना <math>-</math> साहचर्य नहीं है। हालाँकि निरूपण <math>a-b-c</math> संक्रिया <math>-</math> के साथ सुपरिभाषित है जिसके अनुसार इसे विपरितों के योग से समझा जा सकता है और <math>a-b-c</math> को <math>a + -b + -c</math> के समान माना जाता है। भाग भी साहचर्य नहीं है। हालाँकि <math>a/b/c</math> स्पष्ट परिभाषा नहीं रखता अतः यह सुपरिभाषित नहीं है।

सन्दर्भ

  1. जोसेफ जे॰ रोटमान, The Theory of Groups: an Introduction [समूह सिद्धान्त: एक परिचय] (अंग्रेज़ी में), पृ॰ २८७ "...a function is "single-valued," or, as we prefer to say ... a function is well defined.", Allyn and Bacon, 1965.
  2. साँचा:cite web