सिहावा पर्वत

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साँचा:asbox सिहावा पर्वत धमतरी जिला में स्थित है तथा महानदी का उद्गमस्थल है सिहावा पर्वत में महर्षि श्रृंगी ऋषि आश्रम की दक्षिण दिशा में ग्राम पंचायत रतावा के पास स्थित पर्वत में महर्षि अंगिरा ऋषि का आश्रम है। ग्रामीणों ने बताया कि पर्यटन विभाग की अनदेखी के चलते आश्रम का विकास नहीं हो सका है। ग्रामवासियों व समिति के सदस्यों के सहयोग से रामजानकी व मां दुर्गा के मंदिर का निर्माण कराया गया। सिहावा की सप्त ऋषियों की इस तपोभूमि के इस पवित्र आश्रम के जीर्णोद्धार व देखभाल की आवश्यकता है। ये आश्रम पुरातन महत्व का है। लोंगों ने पुरातत्व विभाग से इन आश्रमों को संरक्षित करने की मांग है।

पुरातन मान्यताओं के अनुसार सप्ता ऋषियों में सबसे वरिष्ठ अंगिरा ऋषि को माना जाता है। प्राचीन काल में यही उनकी तपोभूमि थी। इस पर्वत को श्रीखंड पर्वत के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक महत्व की इस आश्रम को पर्यटन स्थल के रूप विकासत करने की दिशा में ठोस प्रयास की आवश्यकता है।

पौराणिक कथाओं में अंगिरा ऋषि की तप की महिमा का विवरण मिलता है। आश्रम के पुजारी मुकेश महाराज के अनुसार प्राचीनकाल में एक समय अंगिरा ऋषि अपने आश्रम में कठोर तपस्या में लीन थे। वे अग्नि से भी अधिक तेजस्वी बनना चाहते थे। अपनी कठिन तपस्या से महामुनि अंगिरा संपूर्ण संसार को प्रकाशित करने लगे। आज पर्वत शिखर पर स्थित एक छोटी सी गुफा मे अंगिरा ऋषि की मूर्ति विराजमान है। कहते हैं कि पुरातन मूर्ति जर्जर होकर खंडित हो चुकी थी। तब आसपास के 12 ग्राम के भक्तों ने मिलकर एक समिति बनाई। समिति को श्री अंगिरा ऋषि बारह पाली समिति नाम दिया गया। समिति के सदस्यों ने पर्वत शिखर पर अंगिरा ऋषि की मूर्ति की स्थापना की। साथ ही भगवान शिव, गणेश, हनुमान की मूर्तियों को भी स्थापित किया। पर्वत के नीचे एक यज्ञा शाला देखा जा सकता है। कहते हैं वहां अंगिरा ऋषि का चिमटा व त्रिशूल आज भी पूजा के लिए रखा गया है। नवरात्र में भक्तों द्वारा यहां मनोकामना ज्योति प्रज्वलित की जाती है। अघन पूर्णिमा पर्व में श्रीराम नवमी का आयोजन होता है।

सात से अधिक गुफाएं

इस पर्वत में सात से भी अधिक गुफाएं हैं। इन गुफाओं में से एक में निरंतर एक दीप प्रज्वलित हो रहा है। मान्यता है वहां आज भी अंगिरा ऋषि का निवास है। पर्वत के शिखर पर एक शीला में पदचिन्ह बना हुआ देखा जा सकता है। लोगों की आस्था है कि यह पदचिन्ह भगवान श्रीराम के है। वनवास काल में उनका आगमन अंगिरा ऋषि के आश्रम में हुआ था।

बिसात राम अंतिम सांसों तक पर्वत में रहे

रतावा के ग्रामीणों ने बताया कि वर्ष 1995 में धमतरी के ग्राम मुजगहन निवासी बिसातराम अंगिरा ऋषि के दर्शन करने पर्वत शिखर पर चढ़े और वहीं के होकर रह गए। वे अंतिम सांसों तक नीचे नहीं उतरे। उनका देहांत पर्व शिखर पर अंगिरा ऋषि के चरणों में हुआ।