सलफ़ी सुन्नी

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सलफ़ी सुन्नी इस्लाम धर्म का एक प्रमुख समुदाय है। ये मुहम्मद साहब को अपना इमाम मानते है।

सलाफवाद का उदय 19वी शताब्दी के मध्य में धर्मग्रंथ संबंधित सुधार आंदोलन के रूप में हुआ। सलाफवाद मुख्य रूप से इस्लाम की पवित्र, शुद्ध और मिलावट रहित रूप जो मोहम्मद और उनके साथियों के द्वारा व्यवहारित किया गया उसे पुनः स्थापित करने के लिए शुरू किया गया था। सलाफी विचारधारा कई इस्लामिक परम्परा से जुड़ी बातों को खारिज करती है जिसमें सूफी परम्परा, संतों में विश्वास और कुरान और हदीसों (सुन्ना) को खारिज करने वाले शामिल हैं। सलाफी आंदोलन मुख्य तौर पर सुन्नी इस्लामिक परम्परा से जुड़ा है जो शिया इस्लामिक परम्परा को पूर्ण रूप से ख़ारिज करता है, सलाफी मुख्य रूप से तौहिद(एक्केश्वरवाद) में विश्वास रखते हैं साथ ही ये गैर विश्वास वाले और उन मुसलमानों को सबसे बड़ी चुनौती मानते है जो अपने मार्ग से भटके हुए है।

सलाफी आंदोलन कोई एक आंदोलन नही है बल्कि कई आंदोलन इससे जुड़े हुए है। हिंसा के मुद्दे को लेकर सलाफी दो भागों में विभाजित है पहले जो हिंसा को आलोचना करते हैं, वहीं कुछ हिंसा को मुख्य साधन मानते हैं इस्लाम की पवित्र रूप की प्राप्ति के लिए।

इस्लाम के अध्ययनकर्ता सलाफी आंदोलन को तीन भागों में विभाजित करते हैं।

1. शुद्ध रूपी सलाफी : ये राजनीतिक रूप से निष्पक्ष और अपने विश्वासों की प्रप्ति के लिए शांतिपूर्ण साधन का इस्तेमाल करते हैं वही अपने अध्ययन और अध्यापन से समाज को इस्लामिक बनना चाहते हैं, सर्वाधिक सल़फी शुद्ध रूपी ही हैं।

2. राजनीतिक सलाफी : ये राजनीतिक क्षेत्र में एक्टिव होते हैं वे राजनीतिक विवादों में भागीदारी करते हैं ताकि राज्य व्यवस्था में शरीया को लागू किया जा सके।

3. जिहादी सलाफी : ये मूल रूप से इस्लामिक ज़िंदगी को थोपना चाहते हैं और गैर विश्वास वाले लोगों पर हिंसा का प्रयोग करते हैं ये दर उल इस्लाम को पुनः स्थापित करना चाहते है,जिहादी सल़फी न के बराबर हैं।

सलाफी आंदोलन को मुख्य रूप से प्रतिक्रिया रूपी राजनीति के आधार पर समझ सकते हैं। प्रतिक्रिया रूपी राजनीति ना केवल हिंसात्मक होती है बल्कि रैडिकल बदलावों जिसमें सार्वभौमिकता और समतावाद शामिल है उसे खारिज करती है। साथ ही ये राजनीतिक भूतकाल के आदर्श रूप और सामाजिक स्थिति को मान्यता देती है।

सलाफी आंदोलन का महत्वपूर्ण रूप जो आज प्रसिद्ध है वे वहाबवाद है जो इब्न अब्द अल वहाब के विचारों से जुड़ा है। इसका उदय समाज में फैली नैतिक भरस्टाचार की प्रकिर्या, मौलिक धार्मिक कर्तव्यों के त्याग को दूर करने की प्रतिक्रिया स्वरूप में हुआ। आज वहाबवाद(आज का सल़ाफीवाद) सऊदी अरब की राजनैतिक विचारधारा बन गया है जिसका प्रयोग वह अपने राष्ट्रीय हितों को पूरा करने के लिए करता है। ये भी कुरान और सुन्ना की असल व्याख्या पर ज़ोर देता है। आज वहाबवाद के दो दुश्मन हैं, पहला शिया मुसलमानों का इस्लाम और दूसरा सेक्युलर-सार्वभौमिकतवादी पश्चिमी विचार।

सलाफी आंदोलन ने रेडिकल इस्लाम को उसका आधार दिया है क्योंकि रैडिकल इस्लामी भी इस्लाम की जड़ों को मान्यता देते हैं और इस्लाम की असल शुद्धता को प्राप्त करना चाहते हैं।

वही जिहादी सलाफी जो इस्लाम की शुद्धता की प्राप्ति के लिये जिहाद को एक आवश्यक हथियार मानते हैं उनका विस्तार काफी तेज़ी से हुआ है जो ना केवल आंतरिक बल्कि बाहरी रूपों के जिहाद को स्थापित किया है अत: आज सलाफी आंदोलन का केन्द्र शुद्ध रूपी सलाफी बन गए हैं।

सल़फी आंदोलन विश्व के अनेक देशों मे पुर्णत: सफल हो चुका है। सऊदी अरब का राजधर्म सल़फी इस्लाम ही है। ब्रुनेई, कतर, मालद्विप, बहरीन, मलेशिया, एवं संयुक्त अरब अमीरात, जैसे देशों मे भी इसे अधिकारिक मान्यता मिल चुकी है। इस्लाम धर्म का सर्वाधिक प्रचार प्रसार सल़फीयों ने ही किया है।

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