सर्बलोह ग्रंथ

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

सर्बलोह ग्रंथ (साँचा:lang-pa, साँचा:transl), जिसे मंगलाचरण पुराण या श्री मंगलाचरण जी भी कहा जाता है, एक उत्कृष्ट ग्रंथ है। इसमें 6,500 से अधिक काव्य श्लोक शामिल हैं।[१] सर्बलोह ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब और दशम ग्रंथ से एक अलग धार्मिक ग्रन्थ है। इसे गुरु गोविंद सिंह और अन्य कवियों के लेखन का समामेलन माना जाता है। सर्बलोह ग्रंथ का शाब्दिक अर्थ है गढ़ा हुआ लोहा[२]

खालसा महिमा इस ग्रन्थ में मौजूद है।[३] इस ग्रंथ का कोई भी भजन या रचना दैनिक सिख अनुष्ठान और अमृत संस्कार में इस्तेमाल नहीं की गई है।

इस ग्रन्थ की कोई पूर्ण टिप्पणी या विवरण उपलब्ध नहीं है और यह अभी भी अनुसंधान के अधीन है।[४] पूर्ण ग्रन्थ को सबसे पहले जत्थेदार संता सिंह निहंग ने बुद्ध दल प्रिंटिंग प्रेस, पटियाला में छापा था।

जो शब्द अक्सर हम सुनते हैं कि...

खालसा मेरउ रूप है खास । खलसे मह हौं करौं निवास।

खालसा मेरउ मुख है अंग। खालसे के हौं बसत सद संग।

यह शब्द श्री सरब्लोह प्रकाश ग्रंथ साहिब में से है।

। द्वारा लिखा गया -: गगनजोत सिंह पटिआला।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ