सराक
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समाज क एक जैनधर्मावलंवी समुदाय है। इस समुदाय के लोग बिहार, झारखण्ड, बंगाल एवं उड़ीसा के लगभग १५ जिलों में निवास करते हैं। इनकी संख्या लगभग १५ लाख है। सराक संस्कृत के शब्द श्रावक का अपभ्रंश रूप है। जैनधर्म में आस्था रखने वाले श्रद्धालु को श्रावक कहते है। सराक जैनधर्म के २३वें तीर्थंकर, पार्श्वनाथ के तीर्थकाल के प्राचीन श्रावकों की वंश परंपरा के उत्तराधिकारी हैं। सराक जाति पिछले दो हज़ार वर्षों से देश में व्यवस्थित शासन के अभाव, अराजकता, नैतिक अस्थिरता आदि परिस्थितियों में धर्मद्रोहियों से बचने के लिए जंगलों में भटकती रही है। समय की मार, क्रूर शासको के अत्याचारों के साथ-साथ अनेक झंझावातों एवं विपरीत परिस्थितियों को झेलते हुए भी उन्होंने अपने मूल संस्कारों जैसे-नाम/ गोत्र/ भक्ति/ उपासना/ पुजपध्दति/ जलगालन/ रात्रिभोजन त्याग/ अहिंसा की भावना को नहीं छोड़ा। निर्ग्रन्थ साधुयों का साथ न मिलने के कारण वे जैन समाज की मूलधारा से कटकर आदिवासी और जनजाति की श्रेणी में आ गए l