सरहिन्द का इतिहास

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फतेहगढ़ साहिब का ही पुराना नाम सरहिन्द था। यह दिल्ली से लाहौर जाने वाले राजमार्ग पर स्थित है। इसकी जनसंख्या लगभग ६१ हजार है और यह पंजाब के फतेहगढ जिले का जिला-मुख्यालय है।

इसका इतिहास कम से कम छटी शताब्दी तक जाता है। सरहिन्द का नाम सम्भवतः 'सैरिन्ध' के नाम पर पड़ा है। वराहमिहिर द्वारा रचित बृहत्संहिता में सैरिन्ध जनजाति का उल्लेख मिलता है। चीनी यात्री ह्वेन सांग के अनुसार सरहिन्द, शतद्रु जनपद की राजधानी था। बाद में त्रिगत राज्य का भाग बन गया जिसकी राजधानी जालन्धर थी।

सन १७१० में बाबा बंदा सिंह बहादुर ने सोनीपत, कैथल, समाना, घुढ़ाम, ठसका, शाहबाद, मुस्तफाबाद, कपूरी, सफोरा और छतबनूढ़ पर कब्जा किया। 12 मई 1710 को भयंकर युद्ध में सूबेदार वजीर खाँ मारा गया। 14 मई, 1710 ई को सिख विजयी बनकर सरहिंद में दाखिल हुए थे प्रथम खालसा राज्य की स्थापना की थी। वजीर खान ने ही गुरु गोबिन्द सिंह के दो पुत्रों को दीवार में चिनवा दिया था। बाबा बंदा बहादुर ने वजीर खान और उसकी फौज को मात देकर इसका बदला लिया था। यह क्रांतिकारी घटना थी, पहला राज था, जहाँ किसानों को जमीन का स्वामित्व का अधिकार दिया गया। यह पहली राजसत्ता थी जो राज नहीं, सेवा पर आधारित थी।

किन्तु 7 दिसंबर, 1715 को मुगल फौज ने गुरदास नंगल की गढ़ी पर कब्जा कर लिया। मुगल फौज ने बंदा बहादुर को कैद कर लिया। उनको एक बड़े लोहे के पिंजरे में बंद कर दिया गया। 9 जून, 1716 को जुलूस की शक्ल में बाबा बंदा सिंह बहादुर तथा उनके चार वर्षीय पुत्र अजय को अनेक सिखों के साथ कुतुबमीनार के समीप ले जाया गया। मुगलों ने अजय का उनके पिता के ही सामने टुकड़े कर दिए उनका दिल निकालकर उनके पिता बन्दा बहादुर के मुंह में डाला गया। 9 जून, 1716 को दिल्ली में अनेक कष्ट झेलते हुए बाबा बंदा सिंह बहादुर शहीद हो गए।

मार्च १७४८ में पर अहमद शाह दुर्रानी ने घेरा डाला किन्तु बाद में मुगल सेना ने उसे पराजित कर दिया। १७५६-५७ में दुर्रानी ने इसे पुनः जीता। १७५८ के आरम्भिक काल में मराठों के साथ मिलकर सरहिन्द को अपने अधिकार में कर लिया और अहमद शाह के बेटे तिमुर को भागना पड़ा।

२ अगस्त १७६४ को यहाँ पर सरदार आला सिंह ने पटियाला राज्य की स्थापना की।