सरस्वतीचन्द्र (उपन्यास)

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सरस्वतीचन्द्र गोवर्धनराम माधवराम त्रिपाठी द्वारा रचित एक प्रसिद्ध गुजराती उपन्यास है। जो 19 वीं सदी की पृष्ठभूमि में लिखा गया है।[१] ये उपन्यास गुजरात में अत्यंत लोकप्रिय है।[२] ये उपन्यास 15 साल की अवधि में लिखा गया था और १८८७ से १९०१ तक चार भागों में प्रसिद्ध हुआ था।[३] 1968 में जारी हिंदी फिल्म सरस्वतीचंद्र ये उपन्यास पर आधारित थी।[१][३]

उपन्यास की कहानी दो गुजराती ब्राह्मण परिवारों पर आधारित है। लक्ष्मीनंदन का परिवार बंबई में बसा है, उनका भरा पूरा व्यापार है और वे बहुत अमीर है। सरस्वतीचंद्र लक्ष्मीनंदन और चंद्रलक्ष्मी के पुत्र हैं। वह अत्यंत विद्वान हैं जो योग्यता से एक बैरिस्टर है और संस्कृत और अंग्रेज़ी साहित्य के ज्ञाता हैं। वे अपने पिता के व्यवसाय में सफलतापूर्वक योगदान दे रहे हैं। उनका भविष्य उज्ज्वल है। दूसरा परिवार, विद्याचतुर का है, जो रत्नानगरी के (काल्पनिक) साम्राज्य के राजा मणिराज की अदालत के विद्वान प्रधान मंत्री हैं। उन्हें और उनकी गुणवती पत्नी गुणसुंदरी की दो बेटियां हैं, कुमुदसंदरी (बड़ी) और कुसुमसुंदरी। सरस्वतीचंद्र की मां का देहावसान होता है, और लक्ष्मीनंदन दुबारा विवाह करते हैं। सौतेली माँ गुमान अत्यंत धूर्त महिला है और वह अपने सौतेले पुत्र को नापसंद करती हैं तथा संदेह की दृष्टि से देखती हैं। इस बीच, सरस्वतीचंद्र और कुमुदुसुरी शादी की तैयारियां चल रही हैं, जिसके कारण वे एक-दूसरे को देखे बिना ही पत्र व्यवहार करते हैं तथा उनमें प्रेम पनप उठता है। सरस्वती चन्द्र कुमुद सुंदरी के ज्ञान और गुणों की ओर आकर्षित हो जाते हैं।

इन्हीं घटनाओं के मध्य सरस्वतीचंद्र के घर का वातावरण बिगड़ता हैं, जब उसे पता लगता है कि उनके पिता को भी उस पर संदेह है कि वह उनकी संपत्ति पर कुदृष्टि रखता है और वह अपने घर छोड़ने का फैसला करता है। उनका सबसे अच्छा मित्र, चंद्रकांत, उसे रोकने की पूरी कोशिश करता है, लेकिन सरस्वतीचंद्र उसकी बात नहीं मानता और अपना घर छोड़ देता है। इस प्रकार वह न केवल घर और धन का त्याग करता है, बल्कि कुमुद को भी छोड़ देता है। वह समुद्र के रास्ते से (काल्पनिक) सुवर्णपुर के लिए निकल पड़ता है जब तक वह वहां पहुंचता है, तब तक कुमुद पहले से ही बुद्धिधन के उन्मत्त पुत्र प्रमदधन से ब्याही जा चुकी हैं, और बुद्धिधन सुवर्णपुर के प्रधान मंत्री बनने की तैयारी में है।

सन्दर्भ

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