सरसा नदी (राजस्थान)

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सरसा नदी की मुख्य धारा राजस्थान के पूर्वोत्तर में स्थित अलवर जिले की तहसील थानागाजी के अन्तर्गत आने वाले अंगारी, गुढा किशोर दासमैजोड़ गाँवों की सीमाओं से निकल कर दक्षिण की ओर जयसिंहपुरा, डेरा, बामनवास, किशोरी, भीकमपुरा आदि गांव के समीप से गुजरती हुई पहले जैतपुर बाँध में, फिर अजबगढ़ के जयसागर में और फिर सरसा देवी बाँध में जाती है । यहाँ से यह धारा पूर्व दिशा में घूम कर धीरोड़ा, कीटला, श्यालूता, नांगल दासा होते हुए आगे को बढ़ती है ।। नांगल दासा से आगे यह पहले अरवरी नदी को अपने में मिलाती है और फिर कुछ ही दूरी पर रेडियो  व उरवाड़ी गाँवों के नीचे जहाज वाली नदी, भगाणीतिलदह नदियों को अपने में समेटती हुई बाँदीकुई की ओर चली जाती है । रेडिया के नीचे त्रिवेणी संगम से आगे बैजूपाड़ा तक यह नदी ‘सावा नदी' के नाम से जानी जाती है। वहीं बैजूपाड़ा के पास यह सावा नदी मैड़' से आने वाली बाणगंगा में मिल जाती है। बाणगंगा नदी बैजूपाड़ा से आगे, गम्भीरी नदी में मिलकर चम्बल के समानान्तर चलती हुई यमुना नदी में जाकर समा जाती है। यमुना नदी प्रयाग  में  गंगा' में समाहित हो जाती है. सरसा नदी को पुनर्जीवित करने में तरुण भारत संघ संघठन ने इस क्षेत्र के ग्रामीणों के साथ मिल कर कार्य किया।[१]

विश्व-भू-मानचित्र में सरसा नदी क्षेत्र 27 डिग्री, 03 मिनट, 54 सैकण्ड अक्षांश से 27 डिग्री, 21 मिनट, 01 सैकण्ड उत्तरी अक्षांश हैं । तथा 76 डिग्री 13 मिनट, 36 सैकण्ड देशांतर से 76 डिग्री, 23 मिनट, 44 सैकण्ड पूर्वी देशांना सीता है।सरसा नदी का जलागम क्षेत्र 278.8 वर्ग किलो मीटर है। इस क्षेत्र भारत संघ द्वारा सन् 1985 से मार्च 2013 तक जन सहभागिता से कल संरचनाओं का निर्माण हुआ है।

भूविज्ञान और जलविज्ञान

यह क्षेत्र अरावली श्रेणी के उत्तर पूर्वी भाग में स्थित हैं, जो एक उत्कृष्ट्र वलित पर्वत का बेल्ट हैं.  अलवर जिला समुद्र तल से २५० मीटर से ३७५ मीटर है.  यह श्रेत्र G.T Sheet No. 54A, 54E और  53D  हैं. भौगोलिक रूप से यह क्षेत्र अरावली की चट्टानों और दिल्ली सुपर ग्रुप (DSG) में आता है. [२]

इतिहास

सरसा नदी का नाम सरसा देवी के मंदिर के कारण पड़ा. यह मंदिर ऐतिहासिक गांव भानगढ़ में स्थित हैं.  

पुनर्जीवन की कहानी

सरसा नदी 1985  से पहले अपना अस्तित्व खो  चुकी थी. इसके बाद तरुण भारत संघ नामक संगठन के प्रयासों के फल स्वरुप 1985 में बाँध और जोहड़ बनाकर इसे पुनर्जीवित करने की शुरुआत की. जल पुरुष डॉ.राजेंद्र सिंह के अथक प्रयासों व उनकी दूरदर्शिता का ही नतीजा है की वर्त्तमान समय में इस नदी पर 274 बाँध हैं. इन् बांधों  के पानी के द्वारा इस इलाके के ग्रामीण सिंचाई, पशुपालन व घरेलु कार्य करते हैं. तरुण भारत संघ ग्रामीणों के साथ मिलकर बाँध बनाने, जोहड़ बनाने, वृक्षारोपण एवं जल साक्षरता का काम करते हैं. तरुण भारत संघ द्वारा नदियों को पुनर्जीवित करने की मुहीम की शुरुआत सरसा नदी से की गयी.

आर्थिक महत्त्व

सरसा नदी के जल  को इस क्षेत्र में रहने वाले ग्रामीण मुख्यतः कृषि एवं पशु पालन में प्रयोग करते हैं.दोमट काली मिट्टी फसल के लिए तथा पथरीली मिट्टी पेड़-पौधों के लिए उपजाऊ होती है यहाँ रबी की फसल में गेहूँ, जौ, सरसों व चना आदि होते हैं तथा खरीफ में मक्का, बाजरा, ज्वार, तिल आदि होते हैं। जायद में सब्जियाँ पैदा की जाती हैं। भूगर्भ स्थित जलप्राय वर्षा पर निर्भर है, लेकिन यदि वर्षा-जल को संरक्षित कर लिया जाता है, तो दो-तीन वर्ष के अकालों में भूजल की आपुर्ति करता रहता है ! सरसा नदी जलागम क्षेत्र के लगभग सभी गांवों में जल संरक्षण के अच्छे काम हुए हैं।

सन्दर्भ

  1. साँचा:cite book
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