सरमा
हिंदू पौराणिक कथाओं में, सरमा एक पौराणिक पात्र है जिसे 'देव-शुनि' कहा गया है। पहली बार ऋग्वेद में इसका प्रसंग आता है। इसके बाद महाभारत और कुछ पुराणों में भी सरमा का संक्षिप्त उल्लेख आया है।
विद्वानों ने सरमा-पाणि संवाद की अलग-अलग व्याख्याएं की हैं। 'गौ' के अलग-अलग अर्थ लेकर ही कथा के अलग अर्थ निकाले गये हैं। कुछ लोग गौ का सीधा अर्थ गाय लेते हैं। वे गाय को मुक्त कराने की कथा मानते हैं। पर 'गौलोक' का अर्थ 'किरण लोक' है और गौ मतलब किरण है। इस अर्थ को मानने वाले रात्रि के बाद उषा का रूपक मानते हैं।
सरमा-पणि संवाद
सरमा-पणि संवाद ऋग्वेद का एक सुप्रसिद्ध आख्यान है। 'पणि' उस समय का कोई जनसमुदाय था। पणियों ने इन्द्रदेव की गायें चुरा ली थी और बृहस्पति ने देख लिया। बृहस्पति की सूचना पर इन्द्र ने सरमा नामक शुनि (कुतिया) को गायों की खोज के लिये भेजा। 'सरमा' का शाब्दिक अर्थ यास्क ने 'शीघ्रगामी' लगाया है।
इन्द्र की दूती सरमा पणियों के पास 'रसा' नामक एक जलयुक्त क्षेत्र को पार कर जाती है। सरमा पणियों को इन्द्र के तेज से आतंकित करती है जबकि पणि इन्द्र से मित्रता चाहते हैं।
इस रूपक के द्वारा मेघों के धिरने व बारिश होने को दर्शाया गया है। इन्द्र या वायु के सहारे मेघों की गर्जना या चेतना ही यहां इन्द्र की दूती है जो मेघ रूप पणि से जलधारा को मुक्त कराती हैं।[१]
पणि : हे सरमा ! तुम यहाँ क्यों आयी हो? यहाँ आने में तुम्हारा क्या व्यक्तिगत स्वार्थ है? तुमने बहुत से कष्ट झेले होंगे, क्या तुम यहाँ सुविधाओं के लिए आयी हो?
सरमा : ऐ पणि ! मैं राष्ट्र को बनाने वाले इन्द्र की दूत हूँ। तुमने क्या-क्या छुपायाहै, मैं वह सब जानना चाहती हूँ। यह सही है कि मैने बहुत कष्ट उठाएं हैं, परन्तु अब मैं उस सबकी अभ्यस्त हो चुकी हूँ।
पणि : ओ सरमा! तुम्हारा स्वामी इन्द्र कितना शक्तिशाली एवं सम्पन्न है? हम उससे मैत्री करना चाहते हैं। वह हमारे व्यापार को स्वयं भी कर सकता है और धन कमा सकता है।
सरमा : इन्द्र जिसकी मैं दूत हूँ, उस तक कोई पहुँच नहीं सकता, उसे कोई डिगा नहीं सकता। भ्रमित जल-प्रवाह उसे बहा के नहीं ले जा सकते। वह तुम्हारा मुकाबला करने में सक्षम है।
पणि : ओ सरमा ! हमारे साथ तुम भी सम्पन्न होने की कगार पर हो। तुम जो चाहो हमसे ले सकती हो। कौन बिना झगड़ा किये अपने धन से अधिकार छोड़ता है? हम अपने धन के कारण बहुत शक्तिशाली भी हैं।
सरमा : ओ पणि ! तुम्हारे सुझावों को ईमानदार सेवक पसंद नहीं करते। तुम्हारा व्यवहार कुटिल है। अपने को इन्द्र के दण्ड से बचाओ। यदि तुम आत्म-समर्पण नहीं करोगे तो बहुत मुश्किलों में आ जाओगे।
पणि : ओ सरमा ! तुम्हारे स्वामी भी हमसे डरते हैं। हम तुम्हें बहुत पसन्द करते है। तुम जब तक चाहो यहाँ रह सकती हो और हमारे ऐश्वर्य में से हिस्सा ले सकती हो।
सरमा : ओ पणि ! तुम अपने रास्तों को बदलो। तुम्हारे काले कारनामों से जनता दुखी है। शासन तुम्हारे सभी राज जान चुका है। अब तुम पहले की तरह काम नहीं कर पाओगे।