मिहिर भोज

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
(सम्राट मिहिर भोज से अनुप्रेषित)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

साँचा:infobox मिहिर भोज (साँचा:abbr 836 ई. - 885 ई.), अथवा प्रथम भोज, गुर्जर-प्रतिहार राजवंश के राजा थेसाँचा:sfnसाँचा:sfn जिन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी हिस्से में लगभग 49 वर्षों तक शासन किया और इनकी राजधानी कन्नौज (वर्तमान में उत्तर प्रदेश में) थी। इनके राज्य का विस्तार नर्मदा के उत्तर में और हिमालय की तराई तक, पूर्व में वर्तमान बंगाल की सीमा तक माना जाता है।

भोज को प्रतिहार वंश का सबसे महान शासक माना जाता है और अरब आक्रमणों को रोकने में इनकी प्रमुख भूमिका रही थी। स्वयं एक अरब इतिहासकार के मुताबिक़ इनकी अश्वसेना उस समय की सर्वाधिक प्रबल सेना थी।

इनके पूर्ववर्ती राजा इनके पिता रामभद्र थे। इनके काल के सिक्कों पर आदिवाराह की उपाधि मिलती है, जिससे यह अनुमान लगाया जाता है कि ये विष्णु के उपासक थे। इनके बाद इनके पुत्र प्रथम महेंद्रपाल राजा बने।


नाम एवं उपाधि

मिहिर भोज का सबसे आम नाम भोज है।साँचा:sfn इसी नाम के अन्य राजाओं से विभेदित करने के लिए उसे प्रथम भोज (भोज I) कहा जाता है। इतिहासकार सतीशचंद्र के मुताबिक़ उसे उज्जैन के शासक "भोज परमार से भिन्न दिखाने के लिए कभी-कभी मिहिर भोज भी कहा जाता है।"साँचा:sfn हालाँकि, रमा शंकर त्रिपाठी ग्वालियर से प्राप्त अभिलेख के हवाले से लिखते हैं कि इस इसमें में उसका प्रथम नाम (अभिधान) "मिहिर" लिखा गया हैसाँचा:sfn जो सूर्य का पर्यायवाची शब्द है। उपाधि के बारे में सतीश चन्द्र का कथन है कि "भोज विष्णुभक्त था और उसने 'आदि वाराह' की उपाधि धारण की जो कि उसके कुछ सिक्कों पर भी अंकित मिलती है"।साँचा:sfn

शासनकाल

साँचा:multiple image भोज का शासनकाल भारतीय इतिहास के मध्यकाल का वह दौर है जिसे "तीन साम्राज्यों के युग" के नाम से जाना जाता है। यह वह काल था जब पश्चिम-उत्तर भारत (इसमें वर्तमान पाकिस्तान के भी हिस्से शामिल हैं) क्षेत्र में गुर्जर-प्रतिहारों का वर्चस्व था, पूर्वी भारत पर बंगाल के पाल राजाओं का आधिपत्य था और दक्कन में राष्ट्रकूट राजा प्रभावशाली थे। इन तीनों राज्यक्षेत्रों के आपसी टकराव का बिंदु कन्नौज पर शासन था। इतिहासकार इसे कन्नौज त्रिकोण के नाम से भी बुलाते हैं।

भोज के आरंभिक समय में कन्नौज प्रतिहारों के आधिपत्य में नहीं था। अतः भोज के वास्तविक शासनकाल की शुरूआत उसकी कन्नौज विजय से माना जाता है जो 836 ईसवी में हुई। इसके पश्चात उसने 885 ईसवी तक (49 साल) यहाँ राज्य किया।

एक इतिहासकार के अनुसार भोज ने अपने पिता रामभद्र की हत्या करने के बाद नेतृत्व अपने हाथ में लियासाँचा:sfn और इसके उपरांत अपने राज्य के वो इलाके पहले हस्तगत करके सुदृढ़ किये जो उस समय उनके हाथ से निकल गये थे या जिनपर नियंत्रण कमजोर हो चुका था। इसके उपरान्त उसने कन्नौज पर आधिपत्य स्थापित किया और दक्षिण की ओर राज्य का विस्तार करना चाहा। दक्षिण विजय राष्ट्रकूट शासकों द्वारा विफल कर दी गयी और उसके पश्चात भोज ने पूर्व की ओर विस्तार करना चाहा जिसे बंगाल के पाल शासक देवपाल ने रोक दिया।

साँचा:clear

हालिया विवाद

मिहिर भोज को लेकर हाल में कई विवादित घटनायें घटित हुई हैं जिनमें इनके गुर्जर होने अथवा राजपूत होने को लेकर कई जगहों पर विवाद का मुद्दा बनाया गया है। जहाँ गुर्जर समुदाय के लोगों का दावा है कि मिहिर भोज गुर्जर थे वहीं राजपूत समुदाय के लोग यह दावा करते हैं कि ये राजपूत क्षत्रिय थे और गुर्जर नाम केवल गुर्जरादेश के, एक क्षेत्र के नाम, के कारण प्रयोग किया जाता है।

उपरोक्त दोनों ही दावों को लेकर अलग-अलग इतिहासकारों के मतों का प्रमाण हाल में उद्धृत किया गया है।[१] और वर्तमान में यह दोनों समुदायों के बीच एक कटु संघर्ष का मुद्दा बना हुआ है।[२]

संदर्भ

साँचा:reflist

स्रोत ग्रंथ

साँचा:refbegin

साँचा:refend