साम्भर झील

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भारत के राजस्थान राज्य में जयपुर नगर के समीप स्थित यह लवण जल (खारे पानी) की झील है। यह झील समुद्र तल से 1,200 फुट की ऊँचाई पर स्थित है। जब यह भरी रहती है तब इसका क्षेत्रफल 90 वर्ग मील रहता है। इसमें चार नदियाँ (रुपनगढ,मेंथा,खारी,खंड़ेला) आकर गिरती हैं। इस झील से बड़े पैमाने पर नमक का उत्पादन किया जाता है।

मध्यकाल में यह क्षेत्र भील राज्य का प्रमुख व्यावसायिक केंद्र रहा [१] अनुमान है कि अरावली के शिष्ट और नाइस के गर्तों में भरा हुआ गाद (silt) ही नमक का स्रोत है। गाद में स्थित विलयशील सोडियम यौगिक वर्षा के जल में घुसकर नदियों द्वारा झील में पहुँचाता है और जल के वाष्पन के पश्चात झील में नमक के रूप में रह जाता है।

पौराणिक उल्लेख

साम्भर नमक झील का नासा के वर्ल्डविंड द्वारा वर्ष 2010 में लिया गया उपग्रह चित्र।

महाकाव्य महाभारत के अनुसार यह क्षेत्र असुर राज वृषपर्व के साम्राज्य का एक भाग था और यहाँ पर असुरों के कुलगुरु शुक्राचार्य निवास करते थे। इसी स्थान पर शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी का विवाह नरेश ययाति के साथ सम्पन्न हुआ था। देवयानी को समर्पित एक मंदिर झील के पास स्थित है। अवेध बोरवेल के चलते तथा परवासी परिंदों को सुरक्षित रखने के लिए नरेश कादयान द्वारा जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर केर दी है। एक अन्य हिंदू मान्यता के अनुसार, शाकम्भरी देवी जो कि चौहान राजपूतों की रक्षक देवी हैं, ने यहां स्थित एक वन को बहुमूल्य धातुओं के एक मैदान में परिवर्तित कर दिया था। लोग इस संपदा को लेकर होने वाले संभावित झगड़ों के लेकर चिंतित हो गये और इसे एक वरदान के स्थान पर श्राप समझने लगे। लोगों ने देवी से अपना वरदान वापस लेने की प्रार्थना की तो देवी ने सारी चांदी को नमक में परिवर्तित कर दिया। यहाँ शाकम्भरी देवी को समर्पित एक मंदिर भी उपस्थित है। वैसे माता शाकम्भरी देवी का मुख्य मंदिर सहारनपुर मे है चौहानों ने यहां पर भी माँ शाकम्भरी देवी की स्थापना की थी

भूगोल

इस झील में पाँच नदियों मेड़ता, समौद, मंथा, रूपनगढ़, खारी और खंडेला से पानी आता है। झील का कुल जलग्रह क्षेत्र 5700 वर्ग किलोमीटर है।[२]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. साँचा:cite book
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