सत्याग्रह

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सत्याग्रह
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गांधी ने प्रसिद्ध 1 9 30 साल्ट मार्च का नेतृत्व किया, सत्याग्रह का एक उल्लेखनीय उदाहरण

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सत्याग्रह का शाब्दिक अर्थ सत्य के लिये आग्रह करना होता है। [१]

सत्याग्रह, उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम Jharkhandi Aj Creation दशक में गांधी जी के दक्षिण अफ्रीका के भारतीयों के अधिकारों की रक्षा के लिए कानून भंग शुरु करने तक संसार" नि:शस्त्र पतिकार' अथवा निष्क्रिय प्रतिरोध (पैंसिव रेजिस्टेन्स) की युद्धनीति से ही परिचित था।इसकी वजह केवल काले गोर के बीच भेद भाव था । यदि प्रतिपक्षी की शक्ति हमसे अधिक है तो सशस्त्र विरोध का कोई अर्थ नहीं रह जाता वे अहिंषा को मानते थे इसलिए वे यह लड़ाई लड़ रहे थे । सबल प्रतिपक्षी से बचने के लिए "नि:शस्त्र प्रतिकार' की युद्धनीति का अवलंबन किया जाता था। इंग्लैंड में स्त्रियों ने मताधिकार प्राप्त करने के लिए इसी "निष्क्रिय प्रतिरोध' का मार्ग अपनाया था। इस प्रकार प्रतिकार में प्रतिपक्षी पर शस्त्र से आक्रमण करने की बात छोड़कर उसे दूसरे हर प्रकार से तंग करना, छल कपट से उसे हानि पहुँचाना, अथवा उसके शत्रु से संधि करके उसे नीचा दिखाना आदि उचित समझा जाता था।

गांधी जी को इस प्रकार की दुर्नीति पसंद नहीं थी। दक्षिण अफ्रीका में उनके आंदोलन की कार्यपद्धति बिल्कुल भिन्न थी उनका सारा दर्शन ही भिन्न था अत: अपनी युद्धनीति के लिए उनको नए शब्द की आवश्यकता महसूस हुई। सही शब्द प्राप्त करने के लिए उन्होंने एक प्रतियोगिता की जिसमें स्वर्गीय मगनलाल गांधी ने एक शब्द सुझाया "सदाग्रह' जिसमें थोड़ा परिवर्तन करके गांधी जी ने "ह' शब्द स्वीकार किया। अमरीका के दार्शनिक थोरो ने जिस सिविल डिसओबिडियेन्स (सविनय अवज्ञा) की टेकनिक का वर्णन किया है, "सत्याग्रह' शब्द उस प्रक्रिया से मिलता जुलता था।

"सत्याग्रह' का मूल अर्थ है सत्य के प्रति आग्रह (सत्य अ आग्रह) सत्य को पकड़े रहना और इसके साथ अहिंषा को मानना । अन्याय का सर्वथा विरोध(अन्याय के प्रति विरोध इसका मुख्या वजह था ) करते हुए अन्यायी के प्रति वैरभाव न रखना, सत्याग्रह का मूल लक्षण है। हमें सत्य का पालन करते हुए निर्भयतापूर्वक मृत्य का वरण करना चाहिए और मरते मरते भी जिसके विरुद्ध सत्याग्रह कर रहे हैं, उसके प्रति वैरभाव या क्रोध नहीं करना चाहिए।'

"सत्याग्रह' में अपने विरोधी के प्रति हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं है। वे अहिंषा वादी थे । धैर्य एवं सहानुभूति से विरोधी को उसकी गलती से मुक्त करना चाहिए, क्योंकि जो एक को सत्य प्रतीत होता है, वहीं दूसरे को गलत दिखाई दे सकता है। धैर्य का तात्पर्य कष्टसहन से है। इसलिए इस सिद्धांत का अर्थ हो गया, "विरोधी को कष्ट अथवा पीड़ा देकर नहीं, बल्कि स्वयं कष्ट उठाकर सत्य का रक्षण।'

महात्मा गांधी ने कहा था कि सत्याग्रह में एक पद "प्रेम' अध्याहत है। सत्याग्रह की संधि में मध्यम पद का लोप है। सत्याग्रह यानी सत्य के लिए प्रेम द्वारा आग्रह। (सत्य + प्रेम + आग्रह = सत्याग्रह)

गांधी जी ने लार्ड इंटर के सामने सत्याग्रह की संक्षिप्त व्याख्या इस प्रकार की थी-"यह ऐसा आंदोलन है जो पूरी तरह सच्चाई पर कायम है और हिंसा के उपायों के एवज में चलाया जा रहा।' अहिंसा सत्याग्रह दर्शन का सबसे महत्वपूर्ण तत्व है, क्योंकि सत्य तक पहुँचने और उन पर टिके रहने का एकमात्र उपाय अहिंसा ही है। और गांधी जी के ही शब्दों में "अहिंसा किसी को चोट न पहुँचाने की नकारात्मक (निगेटिव) वृत्तिमात्र नहीं है, बल्कि वह सक्रिय प्रेम की विधायक वृत्ति है।'

सत्याग्रह में स्वयं कष्ट उठाने की बात है। सत्य का पालन करते हुए मृत्यु के वरण की बात है। सत्य और अहिंसा के पुजारी के शस्त्रागार में "उपवास' सबसे शक्तिशाली शस्त्र है। जिसे किसी रूप में हिंसा का आश्रय नहीं लेता है, उसके लिए उपवास अनिवार्य है। मृत्यु पर्यंत कष्ट सहन और इसलिए मृत्यु पर्यत उपवास भी, सत्याग्रही का अंतिम अस्त्र है।' परंतु अगर उपवास दूसरों को मजबूर करने के लिए आत्मपीड़न का रूप ग्रहण करे तो वह त्याज्य है : आचार्य विनोबा जिसे सौम्य, सौम्यतर, सौम्यतम सत्याग्रह कहते हैं, उस भूमिका में उपवास का स्थान अंतिम है।

"सत्याग्रह' एक प्रतिकारपद्धति ही नहीं है, एक विशिष्ट जीवनपद्धति भी है जिसके मूल में अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अस्तेय, निर्भयता, ब्राहृचर्य, सर्वधर्म समभाव आदि एकादश व्रत हैं। जिसका व्यक्तिगत जीवन इन व्रतों के कारण शुद्ध नहीं है, वह सच्चा सत्याग्रही नहीं हो सकता। इसीलिए विनोबा इन व्रतों को "सत्याग्रह निष्ठा' कहते हैं।

"सत्याग्रह' और "नि:शस्त्र प्रतिकार' में उतना ही अंतर है, जितना उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव में। नि:शस्त्र प्रतिकार की कल्पना एक निर्बल के अस्त्र के रूप में की गई है और उसमें अपने उद्देश्य की सिद्धि के लिए हिंसा का उपयोग वर्जित नहीं है, जबकि सत्याग्रह की कल्पना परम शूर के अस्त्र के रूप में की गई है और इसमें किसी भी रूप में हिंसा के प्रयोग के लिए स्थान नहीं है। इस प्रकार सत्याग्रह निष्क्रिय स्थिति नहीं है। वह प्रबल सक्रियता की स्थिति है। सत्याग्रह अहिंसक प्रतिकार है, परंतु वह निष्क्रिय नहीं है।

अन्यायी और अन्याय के प्रति प्रतिकार का प्रश्न सनातन है। अपनी सभ्यता के विकासक्रम में मनुष्य ने प्रतिकार के लिए प्रमुखत: चार पद्धतियों का अवलंबन किया है-

पहली पद्धति है बुराई के बदले अधिक बुराई। इस पद्धति से दंडनीति का जन्म हुआ जब इससे समाज और राष्ट्र की समस्याओं के निराकरण का प्रयास हुआ तो युद्ध की संस्था का विकास हुआ। 
दूसरी पद्धति है, बुराई के बदले समान बुराई अर्थात् अपराध का उचित दंड दिया जाए, अधि नहीं। यह अमर्यादित प्रतिकार को सीमित करने का प्रयास है। 
तीसरी पद्धति है, बुराई के बदले भलाई। यह बुद्ध, ईसा, गांधी आदि संतों का मार्ग है। इसमें हिंसा के बदले अहिंसा का तत्व अंतर्निहित है। 
चौथी पद्धति है बुराई की उपेक्षा। 

अचार्य विनोबा कहते हैं- "बुराई का प्रतिकार मत करो बल्कि विरोधी की समुचित चिंतन में सहायता करो। उसके सद्विचार में सहकार करो। शुद्ध विचार करने, सोचने समझने, व्यक्तिगत जीवन में उसका अमल करने और दूसरों को समझाने में ही हमारे लक्ष्य की पूर्ति होनी चाहिए। सामनेवाले के सम्यक् चिंतन में मदद देना ही सत्याग्रह का सही स्वरूप है।' इसे ही विनोबा सत्याग्रह को सौम्यतर और सौम्यतम प्रक्रिया कहते हैं। सत्याग्रह प्रेम की प्रक्रिया है। उसे क्रम-क्रम, अधिकाधिक निखरते जाना चाहिए।

सत्याग्रह कुछ नया नहीं है, कौटुंबिक जीवन का राजनीतिक जीवन में प्रसार मात्र है। गांधी जी की देन यह है कि उन्होंने सत्याग्रह के विचार का राजनीतिक जीवन में सामूहिक प्रयोग किया। कहा जाता है। लोकतंत्र में, जहाँ सारा काम "लोक' की राय से, लोकप्रतिनिधियों के माध्यम से चल रहा है, सत्याग्रह के लिए कोई स्थान नहीं है। विनोबा कहते हैं-वास्तव में सामूहिक सत्याग्रह आवश्यकता तो उस तंत्र' में नहीं होगी, जिसमें निर्णय बहुमत से नहीं, सर्वसम्मति से होगा। परंतु उस दशा में भी व्यक्तिगत सत्याग्रह पड़ोसी के सम्यक् चिंतन में सहकार के लिए तो हो ही सकता है। परंतु लोकतंत्र में जब विचारस्वातंत्र्य और विचारप्रधान के लिए पूरा अवसर है, तो सत्याग्रह को किसी प्रकार के "दबाव, घेराव अथवा बंद,' का रूप नहीं ग्रहण करना चाहिए। ऐसा हुआ तो सत्याग्रह की सौम्यता नष्ट हो जाएगी। सत्याग्रही अपने धर्म से च्युत हो जाएगा।

आज दुनिया के विभिन्न कोनों में सत्याग्रह एवं अहिंसक प्रतिकार के प्रयोग निरंतर चल रहे हैं। द्वितीय महायुद्ध में हजारों युद्धविरोधी पैसेफिग्ट' सेना में भरती होने के बजाय जेलों में गए हैं। बट्र्रेंड रसेल जैसे दार्शनिक युद्धविरोधी सत्याग्रहों के कारण जेल के सीखचों के पीछे बंद हुए थे। अणुअस्त्रों के कारखाने आल्डर मास्टन से लंदन तक, प्रतिवर्ष 60 मील की पदयात्रा कर हजारों शांतिवादी अणुशस्त्रों के प्रति अपना विरोध प्रकट करते हैं। नीग्रो नेता मार्टिन लूथर किंग के बलिदान की कहानी सत्याग्रह संग्राम की अमर गाथा बन गई है। इटली के डैनिलो डोलची के सत्याग्रह की कहानी किसको रोमंचित नहीं कर जाती। ये सारे प्रयास भले ही सत्याग्रह की कसौटी पर खरे न उतरते हों, परंतु ये शांति और अहिंसा की दिशा में एक कदम अवश्य हैं।

सत्याग्रह का रूप अंतरराष्ट्रीय संघर्ष में कैसा होगा, इसके विषय में आचार्य विनोबा कहते हैं-मान लीजिए, आक्रमणकारी हमारे गाँव में घुस जाता है, तो मैं कहूँगा कि तुम प्रेम से आओ-उनसे मिलने हम जाएँगे, डरेंगे नहीं। परंतु वे कोई गलत काम कराना चाहते है तो हम उनसे कहेंगे, हम यह बात मान नहीं सकते हैं-चाहे तुम हमें समाप्त कर दो। सत्याग्रह के इस रूप का प्रयोग अभी अंतरराष्ट्रीय समस्याओं के समाधान के लिए नहीं हुआ है। परंतु यदि अणुयुग की विभीषिका से मानव संस्कृति की रक्षा के लिए, हिंसा की शाक्ति को अपदस्थ करके अहिंसा की शक्ति को प्रतिष्ठित होना है, तो सत्याग्रह के इस मार्ग के अतिरिक्त प्रतिकार का दूसरा मार्ग नहीं है। इस अणुयुग में शस्त्र का प्रतिकार शस्त्र से नहीं हो सकता। मगर आज का युग कहा से कहा पहुच गया है वो ये सब पर बिलकुल भी भरोषा नहीं कार्य है । अमेरिका में एस्सा कहा जाता है की "अगर तुम्हे कोई एक थप्पड़ मरे तो उससे सूली पे चढ़ा दो " भला ये भी कोई बात है ये तो सारा सर हिंशा को बढ़ावा है और "अगर कोई एक थप्पड़ मरे तो दूसरा गाल दे दो वे खुद सरमा जाये गा"

इन्हें भी देखें

किससे मिली

सन्दर्भ

  1. http://www.gandhifoundation.net/about%20gandhi6.htm “Truth (satya) implies love, and firmness (agraha) engenders and therefore serves as a synonym for force. I thus began to call the Indian movement Satyagraha, that the is to say, the Force which is born of Truth and Love or nonviolence, and gave up the use of the phrase “passive resistance”, in connection with it, so much so that even in English writing we often avoided it and used instead the word “satyagraha” itself or some other equivalent English phrase.”

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