भारतीय महाकाव्य

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
(संस्कृत महाकाव्य से अनुप्रेषित)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
भारतीय महाकाव्य रामचरितमानस
भारतीय महाकाव्य महाभारत खंड 1
भारतीय महाकाव्य महाभारत खंड 2

भारत में संस्कृत तथा अन्य भाषाओं में अनेक महाकाव्यों की रचना हुई है। भारत के महाकाव्यों में वाल्मीकि रामायण, व्यास द्वैपायन रचित महाभारत, तुलसीदासरचित रामचरितमानस, आदि ग्रन्थ परमुख हैं।

संस्कृत के महाकाव्य

रघुवंश, कुमारसम्भव, कीरातार्जुनीयम्, शिशुपालवध और नैषधचरित को 'पंचमहाकाव्य' कहा जाता है।

प्राकृत और अपभ्रंश के महाकाव्य

हिन्दी के महाकाव्य

हिंदी में पृथ्वीराज रासो (चंद बरदाई), पद्मावत (जायसी), रामचरितमानस (तुलसीदास), रामचंद्रिका (केशवदास), प्रियप्रवास (अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध'), साकेत (मैथिलीशरण गुप्त), साकेत संत (डॉ॰ बलदेव प्रसाद मिश्र), कामायनी (जयशंकर प्रसाद), गांधी पारायण (अंबिका प्रसाद 'दिव्य'), दैत्यवंश (हरदयाल सिंह), हल्दीघाटी (श्याम नारायण पांडेय), कुरूक्षेत्र (रामधारी सिंह दिनकर), आर्यावर्त (मोहनलाल महतो), नूरजहां (गुरूभक्त सिंह), सुभाषचंद्र बोस, विवेक श्री, भगतसिंह आदि 12 महाकाव्य (श्रीकृष्ण सरल), कुणाल (सोहनलाल द्विवेदी), वर्धमान (महाकवि अनूप) ने उदात्त परम्परा को गति प्रदान की है।

समय, रूचि तथा क्रियाशीलता के अभाव के बाद भी हिंदी साहित्य में महाकाव्य लेखन की परम्परा गति तथा विस्तार पा रही है। इस दशक के महाकाव्यों में डॉ॰ काबरा की 3 कृतियों के अतिरिक्त पुरूषोत्तम श्रीराम चरित व श्रीकृष्ण चरित (जगमोहन प्रसाद सक्सेना 'चंचरीक'), स्वयं धरित्री ही थी (रमाकांत श्रीवास्तव), वैज्ञानिक आध्यात्म व प्रकृति और पुरूष (जसपाल सिंह 'संप्राण'), देवयानी (वासुदेव प्रसाद खरे), सूतपुत्र व महामात्य (दयाराम गुप्त 'पथिक'), रत्नजा व भूमिजा (डॉ॰ सुशीला कपूर), वीरवर तात्या टोपे (वीरेंद्र अंशुमाली), वीरांगना दुर्गावती (गोविंद प्रसाद तिवारी), क्षत्राणी दुर्गावती (विमल), दधीचि (आचार्य भगवत दूबे), मानव (डॉ॰ गार्गीशरण 'मराल'), खजुराहो (डॉ॰ पूनम चंद्र तिवारी),श्रीमान मानव की विकास यात्रा (नन्दलाल सिंह 'कांतिपति') ने महाकाव्य प्रासाद को जीवंतता प्रदान की है।

हिंदी महाकाव्य सृजन की परंपरा में महाकाव्य के 3 तत्व कथावस्तु, नायक तथा रस मान्य हैं। कथावस्तु के 3 अंग विस्तार, विशालता व छंद वैविध्य, नायक के 3 अंग गुण धीरोदात्तता, शालीनता, प्रासंगिकता तथा रस के 3 गुण भाषा-शैली, अलंकार तथा भावानुभाव हैं।

तमिल के महाकाव्य

कन्नड के महाकाव्य

स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।

मणिपुरी के महाकाव्य

स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।

इन्हें भी देखें