संविदा श्रम (विनियमन एवं उन्मूलन), अधिनियम 1970
संविदा श्रम (विनियमन एवं उन्मूलन), अधिनियम का उद्देश्य संविदा श्रम के नियोजन को विनियमित करना है ताकि इसे काम की स्थितियों और कुछ अन्य लाभों के संदर्भ में सीधे नियोजन श्रम-शक्ति के समकक्ष लाया जा सके। संविदा श्रम का अर्थ है प्रयोक्ता उद्यमों के लिए ठेकेदार द्वारा काम में लगाए गए कामगार। ये कामगार आमतौर पर कृषि प्रचालनों, बागानी, निर्माण उद्योग, पत्तन और गोदी ऑयल फील्ड कारखानों, रेलवे, नौवहन, एयरलाइनों, सड़क परिवहन इत्यादि में लगाए जाते हैं।
यह अधिनियम ऐसी प्रत्येक स्थापना/ठेकेदार पर लागू होता है जो संविदा श्रम के रूप में बीस या अधिक कामगार नियोजित करता है या जहां पिछले महीनों में किसी भी दिन बीस या अधिक कामगार नियोजित किए गए थे। प्रत्येक स्थापना और ठेकेदार को, जिस पर यह अधिनियम लागू होता है, संविदा श्रम करवाने के लिए लाइसेंस प्राप्त करेन हेतु स्वयं को पंजीकृत कराना होगा।
संविदा कामगारों के हितों की मज़दूरी, काम के घण्टे, कल्याण, स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा के संदर्भ में रक्षा की जाती है। संविदा श्रम को दी जाने वाली सुविधाआं में शामिल हैं- कैंटीन, विश्राम गृह, प्रथम उपचार सुविधाएं और कार्य-स्थल पर अन्य बुनियादी आवश्यकताएं जैसे पेय जल इत्यादि। मज़दूरी की अदायगी और अन्य लाभ सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी मुख्यालय ठेकेदार की होती है और उसके न होने पर मुख्य नियोक्ता की होती है।
यह अधिनियम केन्द्र और राज्य सरकारों दोनों द्वारा कार्यान्वित किया जाता है। केन्द्र सरकार को अधिकार क्षेत्र में रेलवे-बैंक, खानों इत्यादि जैसी स्थापना हैं और राज्य सरकारों को उस राज्य में स्थित यूनिटों पर न्यायाधिकार प्राप्त है। केन्द्रीय क्षेत्र में, मुख्य श्रम आयुक्त (केन्द्रीय) की अध्यक्षता में केन्द्रीय औद्योगिक संबंध तंत्र (सीआईआरएम) और उनके अधिकारियों को अधिनियम के प्रावधानों तथा उसके तहत बनाए गए नियमों का प्रवर्तन करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
संविदा श्रम के लाभ के लिए अधिनियम के तहत किए गए विनियामक उपायों के अलावा, अधिनियम के तहत उपयुक्त सरकार को सरकारी राजपत्र में अधिसूचना के ज़रिए प्राधिकृत किया जा सकता है जैसा भी मामला हो, कि वह किसी प्रक्रिया, प्रचालन या अन्य कार्य में किसी स्थापना में संविदा श्रम के नियोजन को प्रतिबंधित कर सकती है।
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