संरचनावादी आलोचना

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

संरचनावादी आलोचना साहित्य का संरचनावादी भाषा विज्ञान के मूल्यो के आधार पर विश्लेषण करने वाली आलोचना है। रोमन जैकोबसन और क्लॉड लेवी स्ट्राउस आदि संरचनावादी आलोचना पद्धति के प्रमुख आलोचकों में शामिल हैं। यह आलोचना विधि एक बड़े आंदोलन का हिस्सा है। इसमें साहित्य के पाठ के अर्थ को समझने के बजाय उससे पाठक के अर्थ ग्रहण करने की प्रक्रिया को समझने की चेष्टा की जाती है। रोलँड बार्त्स, गेरार्ड जेनेट्ट और जूलीया क्रिस्तेवा आदि ने इस आलोचना को महत्वपूर्ण आलोचना पद्धति के रूप में स्थापित कर दिया।

सिद्धांत

संरचनावाद बताता है की सांस्कृतिक घटनायें किसी निहित तत्व का परिणाम नही बल्कि संबंधित सत्वों का ऐसा ताना बना है जिसमे अर्थ सत्वों की असमानता से ही उजागर होता है। इन आलोचकों का सरोकार उन वस्तुओं से है जो अर्थ की सतह के नीचे विद्यमान हैं। संरचनावादी आलोचना के अनुसार साहित्य--जो की द्वितीय क्रम का संकेत उल्लेखन है, अपनी रचना प्रथम क्रमी भाषा के ज़रिए करता है। इसलिए साहित्य का विश्लेषण सस्यूर द्वारा दिए गये भाषा के सिद्धांतों पर भी किया जा सकता है। संरचनावादी आलोचना का मुख्य उद्देश्य पाठ की व्याख्या करना नही है बलकि ये समझना है की एक पाठक किसी पाठ का अर्थ कैसे समझ पाता है। वो क्या प्रक्रियायें है जिनपे पाठक अंजाने में महारत हासिल कर पाठ के अर्थ को समझने में सक्षम हो जाता है।

संरचनावाद इस सोच से असहमत है कि साहित्य, लेखक और पाठक के बीच संचार की एक विधि है। इस विचार में एक साहित्यिक "कृति" एक "पाठ" बन जाती है। लेखन की विधि साहित्यिक परंपराओं के 'कोड' मैं एक नाटक कि तरह गठित हैं। इन कारणों से वास्तविकता का भ्रम तो उत्तपन्न होता है परंतु इनमे कोई सच्चाई मूल्य नहीं है। इसके बजाय यह माना जाता है कि मानव के सचेत 'स्वयं' का निर्माण भाषा प्रणाली से ही हुआ है। मानव का मस्तिष्क में भाषा सम्मेलन के नियम हमेशा से मौजूद रहे हैं और यही नियम एक पाठ मैं मौजूद पाए जाते हैं। इन पर लेखक का कोई नियंत्रण नहीं होता। रोलँड बार्त्स ने इस संदर्भ में घोषणा की कि- "लेखक मर चुका है। संरचनावादी आलोचना लेखक के बजाय पाठक को मुख्य संचालक प्रमाणित करती है, इस कारण एक उद्देश्यपूर्ण, भावुक पाठक को अव्येक्तिक पठन का कार्य सौंपा जाता है। इस तरह पाठक द्वारा पढ़े गये पाठ का कोई स्पष्ट अर्थ नहीं है बल्कि वह एक लेखन की विधि है जिसे 'ecriture' कहते हैं।

इतिहास

संरचनावादी आलोचना पद्धति की शुरुआत सांस्कृतिक मनोविज्ञानिक क्लॉड लेवी स्ट्राउस ने की। स्ट्राउस ने संरचनावाद के तरीके का प्रयोग पौराणिक कहानियों तथा पारिवारिक संबंधों और अन्य सांस्कृतिक घटनाओं को समझने के लिए किया। अपने प्रारंभिक दौर में संरचनावाद ने सामाजिक और सांस्कृतिक प्रथाओं को जोड़कर साहित्यिक ग्रंथों, विग्यापनों तथा सामाजिक मरियादा का निष्पक्ष विवरण करने का प्रयत्न किया। इस तर्क के अनुसार सभी सामाजिक एवं सांस्कृतिक प्रक्रियाएं, चिन्हों का समुच्चय हैं। हर संप्रदाए इन चिन्हों को अपने सांप्रदायिक मूल्यों के अनुसार समझता है। संरचनावादी आलोचक इन सामाजिक प्रक्रियाओं और चिन्हों के संबंध को समझने, तथा उसके नियमों को स्पष्ट करने की चेष्ता करते हैं।

1960 के अंत में संरचनावादने अपना केंद्रिय स्थान डिकॉन्स्ट्रक्षन को सौंप दिया जिसने संरचनावाद के वैग्यानिक दावों को पलट दिया। इस परिवर्तन का सर्वश्रेष्ठ उधारण रोलँड बार्थ के लेखों में पाया गया है। बाद के लेख़नों में बार्त्स ने संरचनावाद की वैगयानिक शैली को त्याग दिया और लेखन कि वो शैलियाँ अपनाईं जैसे की पठनवादी शैली जिसमे अनुवादों को उनके स्पष्ट अर्थों में समझा जाता है और लेखिक पाठन जिसमे की शब्दों के सांकेतिक वर्णनो को उदेश्य बनाकर पाठकों को एक नही, अपितु विभिन्न कोडो द्वारा अर्थों के स्वनिर्धारण के लिए उत्साहित करना था। यद्यपि आज भी संरचनावाद शैली कई संगठनों मैं असर रखती है मुख्यतः सांस्कृतिक घटनाओं के semiotic विश्लेषण, stylistic ओर formal अन्वेषण में, जिनकी विविधिता में ही कथानक की संरचना आज भी की जाती है।

प्रमुख आलोचक

सन्दर्भ

इन्हें भी देखें