अभिजात सिद्धान्त

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‘शक्ति’ एवं ‘सत्ता’ की अवधारणा समाजशास्त्र, राजनीतिक समाजशास्त्र और राजनीति शास्त्र की मूल अवधारणा है। मानव के सार्वजनिक और राजनीतिक व्यवहार को समझने में इस अवधारणा का अतुलनीय महत्व है। यद्यपि इन दोनों का प्रयोग पर्यायवाची की तरह किया जाता है पर राजनीतिक समाजशास्त्र में इनका विशिष्ट अर्थ है। प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था में शक्ति केवल कुछ लोगों अथवा अल्पसंख्यक समूह में ही केन्द्रित होती है। यह किस प्रकार होता है? राजनीतिक समाजशास्त्र में इन प्रश्न का उत्तर ढूँढने के प्रयासों के परिणाम-स्वरूप ही अभिजन (संभ्रांतजन या श्रेष्ठजन) सम्बन्धी सिद्धान्तों का विकास हुआ है।

अभिजात सिद्धान्त इस तथ्य पर आधारित हैं कि प्रत्येक समाज में मोटे तौर पर दो भिन्न वर्ग पाये जाते हैं- एक, थोड़े या अल्पसंख्यक लोगों का वर्ग जो अपनी क्षमता के आधार पर समाज को सर्वोच्च नेतृत्व प्रदान करता है तथा शासन करता है, तथा दूसरा, जन-समूह या असंख्य साधारणजनों का वर्ग, जिसके भाग्य में शासित होना लिखा है। प्रथम वर्ग को अभिजन वर्ग (एलीट) और दूसरे को जनसमूह (मासेस) कहा जाता है। अभिजन की अवधारणा को पहले केवल राजनीतिक दृष्टि से ही देखा जाता था तथा केवल शासक वर्ग एवं शक्तिशाली अभिजनों की ओर ध्यान दिया जाता था, परन्तु आज ऐसा नहीं हैं। आज अभिजनों में शक्तिशाली अभिजन वर्ग, पूँजीपति वर्ग, सैनिक अभिजन, शासक-वर्ग, बुद्धिजीवी वर्ग, नौकरशाहों तथा प्रबन्धकों को भी सम्मिलित किया जाता है। शक्ति के असमान वितरण के अतिरिक्त सामाजिक स्तरीकरण के अध्ययनों ने भी अभिजन सिद्धान्तों के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। आज अभिजन का संप्रत्यय राजनीति शास्त्र, समाजशास्त्र एवं राजनीतिक समाजशास्त्र में एक मौलिक संप्रत्यय माना जाता है। यह संप्रत्यय सामाजिक-राजनीतिक यथार्थ को समझने में काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि प्रत्येक समाज में किसी न किसी प्रकार का सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक संस्तरण पाया जाता है।

समाज में शक्ति विभाजन के अभिजन सिद्धान्त

अभिजन (elite) शब्द का प्रयोग सत्रहवीं शताब्दी मेें विशेष एवं सबसे उत्तम वस्तुओं अथवा गुणों के लिए किया जाता था इस अर्थ में यह शब्द वज्र क्रैक सैनिक दस्तों अथवा अभिजात वर्ग जैसे उच्च स्तर के व्यक्तियों के लिए प्रयुक्त्त होता था। उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त तक इस शब्द का प्रयोग सामाजिक एवं राजनीतिक लेखों में व्यापक रूप से नहीं हुआ था। बीसवीं शताब्दी में द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् पश्चिमी देशों एवं अमरीका में अभिजन की अवधारणा एवं इसके सिद्धान्त काफी लोकप्रिय हुए तथा तभी से अभिजन की अवधारणा व्यापक रूप से सामाजिक विज्ञान में प्रयुक्त की जाने लगी।

अभिजन सिद्धान्तों के साथ पैरेटो (Vilfredo Pareto), मोस्का (Gaetano Mosca), सी0 राइट मिल्स, एडवर्ड शिल्स, शुम्पीटर, रॉबर्टा मिचेल्स (Robert Michels), जेम्स बर्नहम, रेमण्ड एरन, कार्ल मैनहाइम (Karl Mannheim), हेरॉल्ड लैसवेल (Harold Dwight Lasswell) इत्यादि विद्वानो के नाम जुड़े हुए हैं। यहाँ पर कतिपय प्रमुख विद्वानों के विचारों का संक्षिप्त विवेचन ही समुचित होगा।

विलफ्रेडो पैरेटो ने अभिजन को परिभाषित करते हुए कहा है कि प्रत्येक विशिष्ट मानवीय क्रिया (यथा न्यायालय, व्यापार, कला, राजनीति आदि) में अगर हम व्यक्तियों की गतिविधियों (धन्धे) के क्षेत्र के सूचकों को अंक दे दें तो जो व्यक्ति सर्वोच्च अंक प्राप्त करते हैं, उन्हें अभिजन कहा जाता है। दूसरे शब्दों में, अभिजनों में उन सभी सफल व्यक्तियों को सम्मिलित किया जाता है जो प्रत्येक गतिविधि में और समाज के प्रत्येक स्तर पर सर्वोच्च होते हैं। इनके शब्दों में जिन व्यक्तियों को किसी विशिष्ट मानवीय गतिविधि के क्षेत्र में सर्वोच्च अंक मिलें यदि उनका एक वर्ग बनाया जाय तो उस वर्ग को अभिजन वर्ग का नाम दे सकते हैं।

गिटानो मोस्का प्रथम विद्वान हैं जिन्होंने ‘अभिजन’ तथा ‘जनसमूह’ शब्दों का प्रयोग विशिष्ट अर्थो में किया है। इनके शब्दों में , सभी समाजों में उन समाजों से लेकर जिनका अभी बहुत कम विकास हुआ है और जो अभी तक सभ्यता की पहली किरणों का संस्पर्श भी ठीक से नहीं कर पाये हैं, उन समाजों तक जो सबसे अधिक विकसित एवं शक्तिशाली है, सभी समाजों में केवल दो प्रकार के वर्गों के लोग पाये जाते हैं। एक, उस वर्ग के लोग जो शासन करते हैं और दूसरे, जिन पर शासन किया जाता है पहले वर्ग के लोग अल्पसंख्यक होते हुए भी सभी प्रकार के राजनीतिक कार्यों का नियन्त्रण अपने हाथों में रखते हैं, सारी सत्ता उनके हाथों में केन्द्रित होती है तथा सत्ता के लाभों का रस भी उन्हें ही मिलता है, जबकि दूसरा वर्ग बहुसंख्यक होते हुए भी प्रथम वर्ग द्वारा कभी वैध तरीकों से और कभी अधिक या कम मात्रा में स्वेच्छाचारी एवं हिंसक तरीकों से निर्देशित व नियन्त्रित रहता है। मोस्का के अनुसार सभी प्रकार के शासन में नियन्त्रण सदैव से सम्भ्रांत वर्ग के हाथ में होता है। साथ ही शासक वर्ग में कोई न कोई ऐसा गुण होता है जिसके कारण वह समाज में सम्मानित एवं प्रभावशाली माना जाता है, भले ही वे गुण यथार्थ हों अथवा महज दिखावे मात्र के रूप में ही बचे हों।

हेरॉल्ड डी0 लैसवेल ने राजनीतिक अभिजनों पर विशेष ध्यान दिया है। इनके शब्दों में राजनीतिक अभिजनों में राजनीतिक निकाय के सत्ताधारियों का समावेश होता है। सत्ताधारियों में वह नेतृत्व तथा सामाजिक रचना भी सम्मिलित है जिसमें नेताओं का उद्भव होता है तथा जिसके प्रति किसी निश्चित अवधि तक वे उत्तरदायी होते हैं।

रेमण्ड एस ने भी लैसवेल के समान अभिजन वर्ग को मुख्यतः शासक वर्ग ही माना है जो अल्प-संख्या में होता है। इन्होंने अभिजन वर्ग एवं अन्य समाजिक वर्गो के बीच सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयास किया है तथा बुद्धिजीवी अभिजनों के सामाजिक प्रभाव का विवेचन किया है जो कि राजनीतिक सत्ता की व्यवस्था का अंग नहीं होते।

टी0बी0 बॉटोमोर ने उपर्युक्त विद्वानों के विचारों से इस आधार पर असहमति प्रकट की है कि उन्होंने अभिजन के सिद्धान्त में निहित विचारधारा की ओर कोई ध्यान नहीं दिया है। बॉटोमोर के अनुसार अभिजन की अवधारणा प्रजातंत्र के महत्व के विरोध में विकसित हुई है। इनके अनुसार ‘आज अभिजन शब्द का प्रयोग आमतौर पर वस्तुतः उन प्रकार्यात्मक, मुख्यतः व्यावसायिक समूहों के लिए किया जाने लगा है जिनको समाज में (किसी भी कारण वश) उच्च स्थान प्राप्त है। इनके विचारों में अधिक नवीन काल के समाजशास्त्रियों ने अभिजन शब्द का प्रयोग अधिक छोटे व अधिक संगठित समूहों के लिए किया है जो कम अथवा अधिक रूप से पारस्परिक रूप से सयुंक्त सामाजिक वर्गों से सम्बन्धित हो सकते हैं। बाटोमोर के विचार में रेमण्ड एरन ही एक मात्र विद्वान हैं जिन्होंने अभिजन वर्ग में सम्बन्ध का अध्ययन किया है तथा यह बताने की चेष्टा की है कि वर्गो के उन्मूलन (उत्पादन के साधनों के निजी स्वामित्व को समाप्त करने के अर्थ में ) से सामाजिक स्तरीकरण, अभिजनों का निर्माण एवं राजनैतिक सत्ता की विषमताओं की समस्या का समाधान नहीं होगा। दूसरे शब्दों में अभिजनों का अस्तित्व प्रत्येक प्रकार के समाज एवं राजनीतिक व्यवस्था में बना रहेगा।

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि अभिजन की कोई एक सर्वमान्य परिभाषा नहीं हैं तथा सामान्यतः संभ्रातजनों में उन व्यक्तियों को सम्मिलित किया जाता है जो सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक दृष्टि से अन्य व्यक्तियों अर्थात जन साधारण की अपेक्षा उच्च स्थिति रखते हैं इस विवेचन से हमें पता चलता है कि संभ्रातजन विविध प्रकार के हैं जैसे कि शासक वर्ग, शक्तिशाली संभ्रांतजन, बुद्धिजीवी वर्ग, प्रबन्धक, नौकरशाह तथा सैनिक अधिकारी इत्यादि।

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