संपीडित वायु
वायु में दबाव होता है। साधारणतया इसकी अनुभूति हमें नहीं होती। यदि हमारे शरीर के किसी अंग से वायु निकाल ली जाए, तब वायु के दबाव की अनुभूति हमें सरलता से हो जाती है। समुद्रतल पर वायु के दबाव की मात्रा ७६० मिमी पारे से दाब के तुल्य होती है। जैसे जैसे हम वायु में ऊपर उठते हैं, तैसे तैसे दबाव कम होता जाता है। यहाँ तक कि कुछ पहाड़ के शिखरों पर दबाव की मात्रा प्रति वर्ग इंच 9 पाउंड भार तक पाई गई है।
वायु को दबाया भी जा सकता है। दबाने से उसका दबाव बढ़ जाता है। ऐसी दबी हुई वायु का संपीडित वायु (compressed air) कहते हैं। दबाने की इस क्रिया का 'संपीडित करना' कहते हैं। संपीडन से वायु का आयतन कम हो जाता है और दबाव बढ़ जाता है। इस प्रकार वायु का दबाव काफी ऊँचा बढ़ाया जा सकता है।
उपयोग
संपीडित वायु का उपयोग आज बहुत अधिक कामों में हो रहा है। ऐसा कहा जाता है कि दो सौ से अधिक कामों में हो रहा है। ऐसा कहा जाता है कि दो सौ से अधिक कामों में हो रहा है। तथा दिन दिन बढ़ रहा है। इसके उपयोग मे कोई खतरा नहीं है। यह मशीनों द्वारा प्रत्येक स्थान में बड़ी सरलता से पहुँचाई जा सकती है। इसकी कुछ मशीनें बड़ी सरल हैं और कुछ जटिल भी हैं। संपीडित वायु का उपयोग दो प्रकार से हो सकता है : (1) मशीनों में संपीड़ित वायु तैयार कर, कामों में ऐसी वायु सीधे लगाई जा सकती है, अथवा संपीडित वायु सिलिंडरों में भरकर संचित रखी जा सकती है और आवश्यकतानुसार उसे भिन्न-भिन्न कामों में लगाया जा सकता है। संपीडित वायु प्राप्त करने की मशीनों को वायु संपीडक (air compresser) कहते हैं।
वायु संपीदक
वायु को संपीडित करने का सबसे सरल उपकरण बाइसिकिल या मोटरकार के ट्यूबों में हवा भरने का वायु पंप (air pump) है। पर वायु पंप से अधिक दबाव वाली संपीडित वायु नहीं प्राप्त हो सकती। अधिक दबाव के लिए ज़टिल वायु संपीडक बने हैं। पहले पहल इनका उपयोग संपीडित वायु द्वारा चालित ड्रिलों से पहाड़ों को काटकर सुरंग बनाने में हुआ था। पीछे रेल के ब्रेकों में भी इनका उपयोग शु डिग्री हुआ। सामान्य वायुसंपीडक से प्रति वर्ग इंच 60 से 100 पाउंड की दबाववाली वायु प्राप्त होती है। ऐसे भी संपीडक बने हैं जिनसे हजारों पाउंड दबाव की वायु प्राप्त हो सकती है।
संपीडक में सिलिंडर के अंदर एक पिस्टन होता है। सिलिंडर के एक छोर पर दो वाल्व, एक भीतर की ओर खुलनेवाला और दूसरा बाहर की ओर खुलनेवाला होता है। सिलिंडर के पिस्टन को जब खींचकर ऊपर के छोर पर लाया जाता है, तब सिलिंडर के अंदर की वायु का दबाव कम हो जाता है और वायुमंडल से वायु इस वाल्व द्वारा खींच ली जाती है। जब पिस्टन को नीचे किया जाता है, तब दबाव के बढ़ जाने के कारण अंदर खुलनेवाला वाल्व बंद हो जाता है और बाहर से खुलनेवाला वाल्व खुल जाता है, जिससे सिलिंडर की वायु निकलकर "वायुकक्ष" में चली जाती है। इस प्रक्रिया को कई बार दोहराने से वायुकक्ष की वायु का दबाव धीरे धीरे बढ़ने लगता है। उपयुक्त दबाव की वायु को नल द्वारा निकालकर काम में लाया जा सकता है।
वायु संपीडकों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है :
- (1) प्रत्यागमनी वायुसंपीडक (Reciprocating Air Compressor),
- (2) घूर्णी किस्म के संपीडक (rotary type), और
- (3) टर्बो संपीडक (Turbo Compressor)।
प्रत्यागमनी वायुसंपीडक अधिक उपयोग में आते हैं। इनका सिद्धांत वैसा ही है जैसा ऊपर वर्णित है।
वायुसंपीडकों के उपयोग
वायु पंप द्वारा ही साइकिल और मोटर गाड़ियों के ट्यूब में हवा भरी जाती है। वायु संपीडकों से प्राप्त संपीडित वायु द्वारा चालित ड्रिलों से पहाड़ों में छेद कर सुरंग बनाई जा सकती है। वायु संपीडक द्वारा ही थियेटर, सिनेमाघरों, बड़ी बड़ी इमारतों और खानों में संवातन (Ventilation) किया जाता है, जिससे अशुद्ध वायु निकलकर उसका स्थान शुद्ध वायु ले लेती है। इसी सहायता से पिसाई भी हो सकती है। संपीडित वायु से बड़े हथौड़े चलाकर कोयला, पत्थर, बालू, कंक्रीट आदि तोड़े और पीसे जाते हैं। वायु संपीडक से प्राप्त संपीडित वायु से रिवेट किया जा सकता है और लोहा तथा इस्पात छीले जा सकते हैं। संपीडित वायु की सहायता से बड़े बड़े जहाजों, वायुयानों, मोटरकारों आदि पर पॉलिश को जा सकती है और वार्निश चढ़ाई जा सकती है। घरों की सफाई, दीवारों की सफेदी तथा रँगाई ओर फर्निचर पर वार्निश चढ़ाई, वायुसंपीडकों से प्राप्त संपीडित वायु की सहायता से कम खर्च में हो जाती है। अनेक सामानों की सफाई तथा मकानों की बुहराई भी इसकी सहायता से होती है। रेल के ब्रेक संपीडित वायु के बल से कार्य करते हैं। संपीडित वायु की सहायता से अनेक सामानों, जैसे अनाज, कोयले आदि, को एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजा जा सकता है।
संपीडित वायु की उपयोगिता की सूची काफी लंबी है। संपीडित वायु का उपयोग आधुनिक विज्ञान की एक महत्वपूर्ण देन है।