कोठारी आयोग

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
(शिक्षा आयोग से अनुप्रेषित)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

सन् 1964 में भारत की केन्द्रीय सरकार ने डॉ दौलतसिंह कोठारी की अध्यक्षता में स्कूली शिक्षा प्रणाली को नया आकार व नयी दिशा देने के उद्देश्य से एक आयोग का गठन किया। इसे कोठारी आयोग के नाम से जाना जाता है। डॉ कोठारी उस समय विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष थे। आयोग ने स्कूली शिक्षा की गहन समीक्षा प्रस्तुत की जो भारत के शिक्षा के इतिहास में आज भी सर्वाधिक गहन अध्ययन माना जाता है। कोठारी आयोग (1964-66) या राष्ट्रीय शिक्षा आयोग, भारत का ऐसा पहला शिक्षा आयोग था जिसने अपनी रिपार्ट में सामाजिक बदलावों को ध्यान में रखते हुए कुछ ठोस सुझाव दिए।

आयोग ने 29 जून 1966 को अपनी रिपोर्ट को प्रस्तुत किया।[१] इसमें कुल 23 संस्तुतियाँ थीं।

सुझाव

  • समान पाठयक्रम के जरिए बालक-बालिकाओं को विज्ञानगणित की शिक्षा दी जाय। दरअसल, समान पाठयक्रम की अनुशंसा बालिकाओं को समान अवसर प्रदान करती है।
  • 25 प्रतिशत माध्यमिक स्कूलों को ‘व्यावसायिक स्कूल’ में परिवर्तित कर दिया जाए।
  • सभी बच्चों को प्राइमरी कक्षाओं में मातृभाषा में ही शिक्षा दी जाय। माध्यमिक स्तर (सेकेण्डरी लेवेल) पर स्थानीय भाषाओं में शिक्षण को प्रोत्साहन दिया जाय।
  • 1 से 3 वर्ष की पूर्व प्राथमिक शिक्षा दी जाए
  • 6 वर्ष पूरे होने पर ही पहली कक्षा में नामांकन किया जाए
  • पहली सार्वजनिक परीक्षा 10 वर्ष की विद्यालय शिक्षा पूरी करने के बाद ही हो
  • विषय विभाजन कक्षा नौ के बदले कक्षा 10 के बाद हो
  • उच्च शिक्षा में 3 या उससे अधिक वर्ष का स्नातक पाठ्यक्रम हो और उसके बाद विविध अवधि के पाठ्यक्रम हों
  • माध्यमिक विद्यालय दो प्रकार के होंगे, उच्च विद्यालय और उच्चतर विद्यालय।
  • कॉमन स्कूल सिस्टम लागू किया जाए तथा स्नातकोत्तर तक की शिक्षा मातृभाषा में दी जाए
  • शिक्षक की आर्थिक, सामाजिक व व्ययसायिक स्थिति सुधारने की सिफारिश की।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1986)

स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।

24 जुलाई 1986 को भारत की प्रथम राष्ट्रीय शिक्षा नीति घोषित की गई। यह पूर्ण रूप से कोठारी आयोग के प्रतिवेदन पर आधारित थी। सामाजिक दक्षता, राष्ट्रीय एकता एवं समाजवादी समाज की स्थापना करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया। इसमें शिक्षा प्रणाली का रूपान्तरण कर 10+2+3 पद्धति का विकास, हिन्दी का सम्पर्क भाषा के रूप में विकास, शिक्षा के अवसरों की समानता का प्रयास, विज्ञान व तकनीकी शिक्षा पर बल तथा नैतिक व सामाजिक मूल्यों के विकास पर जोर दिया गया।

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ

सन्दर्भ

  1. "Indian Education Commission 1964-66". PB Works. 2015. Retrieved 20 June 2015.