व्यौहार राजेन्द्र सिंह

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
व्यौहार राजेन्द्र सिंह

व्यौहार राजेन्द्र सिंह (14 सितम्बर 1900 - 02 मार्च 1988 जबलपुर,मध्य प्रदेश) हिन्दी के मूर्धन्य साहित्यकार थे जिन्होने हिन्दी को भारत की राजभाषा बनाने की दिशा में अतिमहत्वपूर्ण योगदान दिया।[१] फलस्वरूप उनके ५०वें जन्मदिन के दिन ही, अर्थात 14 सितम्बर 1949 को, हिन्दी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया। पचासवें जन्मदिन पर उपहार स्वरुप यह शुभ-समाचार दिल्ली से सबसे पहले जबलपुर के तत्कालीन सांसद सेठ गोविन्ददास ने भेजा क्योंकि इस विशेष दिन को ही राजभाषा-विषयक निर्णय लिए जाने के लिए उन्होंने प्रयास किये थे।[२]

व्यौहार राजेन्द्र सिंह का जन्म जबलपुर में भाद्रपद शुक्लपक्ष षष्ठी विक्रम संवत्सर 1957, तदनुसार शुक्रवार 14 सितम्बर 1900, को हुआ था । उनका जन्मदिन प्रतिवर्ष हिंदी पंचांग की तिथि के अनुसार मनाया जाता था जो कि अक्सर 12 से 16 सितम्बर के बीच होता था, जबकि अंग्रेज़ी कलेंडर के अनुसार उनकी जन्मतिथि 14 सितम्बर ही है। वे जबलपुर के राष्ट्रवादी मॉडल हाई स्कूल के सबसे पहले बैच के छात्र थे। उनका विवाह 1916 में लखनऊ में हुआ। पत्नी राजरानी देवी का जन्म अवध रियासत के कुलीन अभिजात्य "दयाल" वंश में हुआ था।

यद्यपि व्यौहार राजेन्द्र सिंह का संस्कृत, बांग्ला, मराठी, गुजराती, मलयालम, उर्दू, अंग्रेज़ी आदि पर भी बहुत अच्छा अधिकार था परन्तु फिर भी हिंदी को ही राष्ट्रभाषा बनाने के लिए उन्होंने लंबा संघर्ष किया । स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित करवाने के लिए काका कालेलकर, मैथिलीशरण गुप्त, हजारीप्रसाद द्विवेदी, महादेवी वर्मा, सेठ गोविन्ददास आदि साहित्यकारों को साथ लेकर व्यौहार राजेन्द्र सिंह ने अथक प्रयास किए। इसके चलते उन्होंने दक्षिण भारत की कई यात्राएं भी कीं और लोगों को मनाया ।

व्यौहार राजेन्द्र सिंह अखिल भारतीय चरखा संघ, नागरी प्रचारिणी सभा, हरिजन सेवक संघ, नागरिक सहकारी बैंक, भूदान यज्ञ मण्डल, हिंदी साहित्य सम्मलेन, सर्वोदय न्यास, कायस्थ महासभा, चित्रगुप्त सभा जैसी अनेकों संस्थाओं के अध्यक्ष-उपाध्यक्ष रहे। उन्होंने अमेरिका के शिकागो में आयोजित विश्व सर्वधर्म सम्मलेन में भारत का प्रतिनिधित्व किया जहां उन्होंने सर्वधर्म सभा में हिन्दी में ही भाषण दिया जिसकी जमकर तारीफ हुई।

व्यौहार राजेन्द्र सिंह तथा राजरानी देवी के व्यक्तिगत निमंत्रण पर जबलपुर के वर्तमान हनुमानताल वार्ड स्थित व्यौहारनिवास-पैलेस (स्थानीय भाषा में "व्यौहार-राजवाडा" या "बखरी") में महात्मा गाँधी लगभग एक सप्ताह तक रहे । साथ में आचार्य जीवतराम कृपलानी, मौलाना अबुलकलाम आज़ाद, बाबू राजेन्द्र प्रसाद, पंडित जवाहरलाल नेहरू, एडिथ एलेन ग्रे, सरोजिनी नायडू, सर सैयद महमूद, वीर खुरशेद नरीमन, डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी, जमनालाल बजाज, मीरा बहन व अन्य थे। इस अवसर पर अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की कार्यकारिणी की बैठक भी उसी व्यौहारनिवास-पैलेस में हुई थी। यरवदा जेल में कारासेवन के कारण कस्तूरबा नहीं आ सकीं। व्यौहारनिवास-पैलेस के जिस दक्षिण-पूर्वी हिस्से में ये सब रहे कालान्तर में उसका नामकरण ही "गांधी मंदिर" कर दिया था।

रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर में महात्मा गाँधी पीठ की स्थापन हेतु उन्होंने अथक प्रयास किये थे। तत्कालीन साहित्यिक, राजनैतिक, सामाजिक जीवन में उनका अवदान तथा अपने समकालिक महत्वपूर्ण व्यक्तियों से उनके सम्बन्ध अपनी मिसाल आप थे।

व्यौहारनिवास-पैलेस में दुर्लभ पांडुलिपियों, पुस्तकों और पत्रों आदि का अनमोल संग्रह था। अतिविशिष्टता (वी.आई.पी. संस्कृति) के वो सख्त खिलाफ थे। हालांकि अपनी युवावस्था में वे "राजन" के नाम से संबोधित किये जाते थे परन्तु अपनी सादगी, अपनत्व व्यवहार के कारण कुछ आत्मीय जन उन्हें "काकाजी" भी संबोधित करते थे। वे इतने महान गांधीवादी थे कि वृद्धावस्था व रुग्णावस्था में भी उन्होंने किसी महानगर के अतिविशिष्ट या बहुविशेषज्ञता वाले अस्पताल में जाने से साफ़ इनकार कर दिया था। उनका निधन स्थानीय शासकीय विक्टोरिया जिला अस्पताल (अब सेठ गोविन्ददास जिला चिकित्सालय) में हुआ।

कृतियाँ

व्यौहार राजेन्द्र सिंह ने हिंदी के लगभग 100 से अधिक बौद्धिक ग्रंथों की रचना की, जो सम्मानित-पुरस्कृत भी हुईं और कई विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में अनिवार्य रूप से संस्तुत-समाविष्ट भी की गईं।

  • गोस्वामी तुलसीदास की समन्वय साधना (1928),
  • महात्मा जी का महाव्रत (1935),
  • त्रिपुरी का इतिहास (1939),
  • हिंदी गीता (1942),
  • आलोचना के सिद्धांत (1956),
  • हिंदी रामायण (1965),
  • सावित्री (1972)

सम्मान

'साहित्य वाचस्पति', 'हिन्दी भाषा भूषण', 'श्रेष्ठ आचार्य', 'कायस्थ रत्न' आदि कई अलंकरणों से व्यौहार राजेन्द्र सिंह को विभूषित किया गया। उनके नाम से ही जबलपुर के एक हिस्से को व्यौहार बाग के नाम से जानते हैं।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  2. हिन्दी दिवस विशेष: इनके प्रयास से मिला था हिन्दी को राजभाषा का दर्जा