वॉयेजर प्रथम
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लक्ष्य प्रकार | फ्लाईबाय |
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फ्लाईबाई ऑफ | बृहस्पति & शनि |
लॉन्च तिथि | ५ सितंबर १९७७ |
लॉन्च वाहन | टाइटन तृतीय ई/सेन्टॉर |
अभियान काल | अव्याखित |
गृह पृष्ठ | नासा वॉयेजर जालस्थल |
द्रव्यमान | साँचा:kg to lb |
शक्ति | ४२० वॉट |
वोयेजर प्रथम अंतरिक्ष यान एक ७२२ कि.ग्रा का रोबोटिक अंतरिक्ष प्रोब था। इसे ५ सितंबर, १९७७ को लॉन्च किया गया था।[१] वायेजर १ अंतरिक्ष शोध यान एक ८१५ कि.ग्रा वजन का मानव रहित यान है जिसे हमारे सौर मंडल और उसके बाहर की खोज के लिये प्रक्षेपित किया गया था। यह अब भी (मार्च २००७) कार्य कर रहा है। यह नासा का सबसे लम्बा अभियान है। इस यान ने गुरू और शनि ग्रहों की यात्रा की है और यह यान इन महाकाय ग्रहों के चन्द्रमाओं की तस्वीरें भेजने वाला पहला शोध यान है। वायेजर १ मानव निर्मित सबसे दूरी पर स्थित एक गतिशील वस्तु है और यह पृथ्वी और सूर्य दोनों से दूर अनंत अंतरिक्ष में अब भी गतिशील है। न्यू हॉराइज़ंस शोध यान जो इसके बाद छोड़ा गया था, वायेजर १ की तुलना में कम गति से चल रहा है इसलिये वह कभी भी वायेजर १ को पीछे नहीं छोड़ पायेगा।
वायेजर प्रथम यान
यह यान १२ अगस्त २००६ के दिन वायेजर सूर्य से लगभग १४.९६ x १० ९ किमी दूरी पर स्थित था और इस तरह वह हीलियोशेथ भाग में पहुंच चुका है। यह टर्मिनेशन शॉक सीमा को पार कर चुका है। यह वह सीमा है जहां सूर्य का गुरुत्व प्रभाव खत्म होना शूरू होता है और अंतरखगोलीय अंतरिक्ष प्रभाव प्रारंभ हो जाता है। यदि वायेजर १ हिलीयोपाज को पार करने के बाद भी कार्यशील रहता है तब वैज्ञानिकों को पहली बार अंतरखगोलीय माध्यम के सीधे मापे गये आंकड़े और दशा का पता चलेगा। इस दूरी से वायेजर १ से भेजे गये संकेत पृथ्वी तक पहुंचने में १३ घंटे का समय लेते हैं। वायेजर १ एक हायपरबोलिक पथ पर जा रहा है; इसने सौर मंडल के गुरुत्व से बाहर जाने योग्य गति प्राप्त कर ली है। वायेजर १ अब सौर मंडल में कभी वापिस नहीं आयेगा। इसी स्थिति में पायोनियर १०, पायोनियर ११, वायेजर २ भी हैं।
पथ
वायेजर १ का मूल और प्राथमिक अभियान लक्ष्य बृहस्पति और शनि ग्रह, उनके चन्द्रमा और वलयों का निरिक्षण करना था। इसके बाद का उद्देश्य हीलीयोपाज की खोज, सौर वायु तथा अंतरखगोलीय माध्यम के कणों का मापन है। अंतरखगोलीय माध्यम यह हाइड्रोजन और हीलियम के कणों का मिश्रण है जो अत्यंत कम घनत्व की स्थिती में सारे ब्रह्मांड में फैला हुआ है। वायजर यान दोनों रेडीयोधर्मी विद्युत निर्माण यंत्र से चल रहे हैं और अपने निर्धारित जीवन काल से अधिक कार्य कर चुके हैं। इन यानों की ऊर्जा निर्माण क्षमता इन्हें २०२० तक पृथ्वी तक संकेत भेजने में सक्षम रखने के लिये पर्याप्त है। वायेजर १ को मैरीनर अभियान के मैरीनर ११ यान की तरह बनाया गया था। इसका निर्माण इस प्रकार से किया गया था, कि यह ग्रहों के गुरुत्वाकर्षण की सहायता से कम ईंधन का प्रयोग कर यात्रा कर सके। इस तकनीक के तहत ग्रहों के गुरुत्वाकर्षण के प्रयोग से यान की गति बढ़ायी जाती है। एक संयोग से इस यान के प्रक्षेपण का समय महा सैर के समय से मेल खा रहा था, सौर मंडल के ग्रह एक विशेष स्थिति में एक सरल रेखा में आ रहे थे। इस विशेष स्थिति के कारण न्यूनतम ईंधन का उपयोग कर ग्रहों के गुरुत्वाकर्षण के प्रयोग से चारों महाकाय गैस पिंड गुरू, शनि, नेप्च्यून और युरेनस की यात्रा की जा सकती थी। बाद में इस यान को महा सैर पर भेजा जा सकता था। इस विशेष स्थिति के कारण यात्रा का समय भी ३० वर्षों से घटकर सिर्फ १२ वर्ष रह गया था। ५ सितंबर १९७७ को नासा के केप कार्नीवल अंतरिक्ष केन्द्र से टाइटन ३ सेन्टार राकेट द्वारा वायेजर १ को वायेजर २ से कुछ देर बाद छोड़ा गया। वायेजर १ को वायेजर २ के बाद छोड़ा गया था लेकिन इसका पथ वायेजर २ की तुलना में तेज रखा गया था जिससे वह गुरू और शनि पर पहले पहुंच सके।
प्रक्षेपण
बृहस्पति
वायेजर १ ने बृहस्पति के चित्र जनवरी १९७९ में भेजना आरंभ किया था। यह ५ मार्च १९७० को बृहस्पति से सबसे न्यूनतम दूरी (३४९,००० किमी) पर था। इस यान ने बृहस्पति, उसके चन्द्रमा और वलयों की श्रेष्ठ रिज़ॉल्यूशन चित्र खींच कर पृथ्वी पर भेजे थे। इस यान द्वारा बृहस्पति के चुंबकीय क्षेत्र, विकिरण की भी जानकारी मिली। अप्रैल १९७९ में इसका बृहस्पति अभियान पूर्ण हुआ और इसने बृहस्पति और उसके चन्द्रमाओं की अत्यंत महत्वपूर्ण सूचनाएं भेजीं जिनमें से सबसे आश्च्यर्यजनक खोजों में से एक आयो पार चन्द्रमा पर ज्वालामुखी की खोज थी। इस ज्वालामुखी की खोज पायोनियर १० और ११ द्वारा भी नहीं की जा सकी थी।
यान दिखा महान लाल धब्बा
एक ज्वालामुखी क्रेटर से लवा बहता हुआ
शनि
बृहस्पति के गुरुत्वाकर्षण ने वायेजर को शनि की ओर धकेल दिया था। शनि के पास वायेजर नवंबर १९८० में पहुंचा और १२ नवम्बर को वायजर १ शनि से सबसे न्यूनतम दूरी (१२४,००० किमी) पर था। इस यान द्वारा शनि की जटिल वलय संरचना का अध्ययन किया गया। शनि के चन्द्रमा टाईटन और उसके घने वातावरण के भी चित्र भेजे। टाईटन के गुरुत्व का प्रयोग कर यह यान शनि से दूर अपने पथ पर आगे बढ़ गया।
अंतरखगोलीय यात्रा
वैज्ञानिकों ने उर्जा की बचत और इस यान का जीवन काल बढ़ाने के लिये इसके उपकरण क्रमशः बंद करने का निर्णय लिया है।
- २००३ में : स्केन प्लेटफार्म और पराबैंगनी निरीक्षण बंद कर दिया गया
- 2010: इसके एंटीना को घुमाने की प्रक्रिया (Gyro Operation) बंद कर दिया जाएगा
- २०१० : DTR प्रक्रिया बंद कर दी जायेगी।
- २०१६ : उर्जा को सभी उपकरण बांट कर उपयोग करेंगे।
- २०२० : संभवतः उर्जा का उत्पादन बंद हो जायेगा
हीलीयोपाज
वायेजर १ अभी अंतरखगोलीय अंतरिक्ष की ओर गतिशील है और उसके उपकरण सौर मंडल के अध्ययन में लगे हुये हैं। जेट प्रोपल्शन प्रयोगशाला में विज्ञानी वायेजर १ और २ पर प्लाज़्मा तरंग प्रयोगों से हीलीयोपाज की खोज कर रहे हैं। जॉन हॉपकिंस विश्वविद्यालय की भौतिकी प्रयोगशाला के वैज्ञानिकों के अनुसार वायेजर १ फ़रवरी २००३ में टर्मीनेशन शाक सीमा पार कर गया। वायेजर १ ने टर्मीनेशन शाक सीमा दिसंबर २००४ में पार की है। वायेजर अब हीलीयोसेथ क्षेत्र में है और २०१५ में हीलीयोपाज तक पहुंच जायेगा।
स्थिति
१२ अगस्त २००६ की स्थिति के अनुसार वायेजर सूर्य से १०० खगोलीय इकाई की दूरी पर था। यह किसी भी ज्ञात प्राकृतिक सौर पिंड से भी दूर है, सेडना ९०३७७ भी सूर्य से ९० खगोलीय इकाई की दूरी पर था। वायेजर १ से आने वाले संकेत जो प्रकाश गति से यात्रा करते हैं पृथ्वी तक पहुंचने में १३.८ घंटे ले रहे हैं। तुलना के लिये चन्द्रमा पृथ्वी से १.४ प्रकाश सेकंड दूरी पर, सूर्य ८.५ प्रकाश मिनिट दूरी पर और प्लूटो ५.५ प्रकाश घंटे की दूरी पर है। नवंबर २००५ में यह यान १७.२ किमी प्रति सेकंड की गति से यात्रा कर रहा था जो कि वायेजर २ से १०% ज्यादा है। यह किसी विशेष तारे की ओर नहीं जा रहा है लेकिन आज से ४०००० वर्ष बाद यह जिराफ़ तारामंडल (उर्फ़ केमीलोपार्डीस/Camelopardis तारामंडल) के ग्लीज़ ४४५ तारे से लगभग १.६ प्रकाश वर्ष की दूरी से गुज़रेगा। इस काल में यह तारा स्वयं भी हमारी ओर तेज़ गति से आ रहा है और जब वॉयेजर प्रथम इस के पास से निकलेगा उस समय यह तारा हमारे सूरज से लगभग ३.४५ प्रकाश वर्षों की दूरी पर होगा।[२]