विषुक्कणि

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विषुक्कणी उस झाँकी-दर्शन को कहते हैं, जिसका दर्शन विषु के दिन प्रात:काल सर्वप्रथम किया जाता है। ऐसा विश्वास है कि विषुक्कणी का प्रभाव वर्ष भर रहता है। विषु की पूर्व संध्या को 'कणी' दर्शन की सामग्री इकट्ठी करके सजा दी जाती है। एक काँसे के डेगची या अन्य किसी बर्तन में चावल, नया कप़ड़ा, ककड़ी, कच्चा आम, पान का पत्ता, सुपारी, कटहल, आइना, अमलतास के फूल आदि सजा कर रख दिए जाते हैं। इस बर्तन के पास एक लम्बा दीपक जलाकर रखा जाता है। प्रातः काल परिवार का कोई बुजुर्ग व्यक्ति एक-एक करके परिवार के सदस्यों की आँखें मूंद 'विषुक्कणी' तक ले आकर आँखें खुलवाते हैं। उपर्युक्त 'कणी' का दर्शन कराने के बाद घर के बुजुर्ग परिवार के सभी सदस्यों को 'कैनीट्टम' या भेंट में कुछ रुपये देते हैं। इस अवसर पर दावत भी दी जाती है। उत्तरी केरल में विषु के दिन आतिशबाजी का आयोजन भी होता है।

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