विद्याधर (साहित्यशास्त्री)

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

विद्याधर 'एकावली' नामक ग्रंथ के रचयिता थे।

एकावली साहित्यशास्त्र का महत्वपूर्ण एवं विवेचनात्मक ग्रंथ है। एकावली की कारिकाएँ उनपर वृत्ति और प्रयुक्त उदाहरण ग्रंथकार द्वारा निर्मित हैं। एकावली के आठ उन्मेष हैं। प्रथम उन्मेष में काव्यहेतु, काव्यलक्षण और भामह आदि पूर्ववर्ती आचार्यों के मत का विवेचन है। द्वितीय में शब्द, अर्थ और अभिधा, लक्षणा एवं व्यंजना, तृतीय में ध्वनि एवं उसके भेद, चतुर्थ में गुणीभूत व्यंग्य, पंचम में तीन गुण और रीति, षष्ठ उन्मेष में दोष, सप्तम में शब्दालंकार और अष्टम उन्मेष में अर्थालंकारों का निरूपण किया गया है। विद्याधर ने रुय्यक द्वारा नवाविष्कृत परिणाम, विकल्प और विचित्र नाम के अलंकारों को भी स्वीकार किया है।

विद्याधर ने एकावली में प्रयुक्त स्वनिर्मित उदाहरणों में उड़ीसा के नरेश नरसिंह का वर्णन एवं प्रशस्तिगान किया है। इसका राज्यकाल ई. १२८०-१३३४ माना जाता है। विद्याधर ने रुय्यक और नैषधकार का भी उल्लेख किया है जो १२वीं सदी के हैं। सिंहभूपाल (ई. १३३०) ने अपने ग्रंथ 'रसार्णव' में एकावली का उल्लेख किया है। अत: विद्याधर का समय संभवत: १२७५-१३२५ ई. के लगभग स्वीकार्य होता है।

विद्याधर की एकावली पर तरला नाम की टीका प्रकाशित है। इसके टीककार कोलाचल मल्लिनाथ सूरि हैं, जिन्होंने, कालिदास, माघ, भारवि, श्रीहर्ष आदि के महाकाव्यों पर टीका की है। मल्लिनाथ का समय ईसा की १४वीं सदी का अंतिम चरण मान्य है। इन्होंने अपनी अन्य टीकाओं में भी एकावली के उद्धरण दिए हैं।

बाहरी कड़ियाँ