विद्या
विद्या है वो जानकारी और गुण, जो हम देखने-दिखाने, सुनने-सुनाने, या पढ़ने-पढ़ाने (शिक्षा) के माध्यम से प्राप्त करते हैं । हमारे जीवन के शुरुआत में हम सब जीना सीखते है । शिक्षा लोगों को ज्ञान और विद्या दान करने को कहते हैं अथवा व्यवहार में सकारात्मक एंव विकासोन्मुख परिवर्तन को शिक्षा माना जाता है ।
विद्या
विद्या एक कला है। वह ऐसी कला है, जहाँ हम विद्या में बदलाव ला सकते है, और नया या मजबूती, वर्तमान ज्ञान ,व्यवहार , हुनर, कदर, और प्राथमिकता को अर्जित कर सकते है। विद्या में अलग-अलग जानकारी को संग्रहीत कर सकते है । विद्या की योग्यता को मानव, जानवर और यन्त्र से भूत्ग्रसत है। प्रगति एवं समय हमेशा विद्या की रेखा का पालन करते है । यह सब बिल्कुल , एक ही समय पर नहीं होता, बल्कि पहला ज्ञान पर निर्माण और गढा करता है। विद्या केवल एक संकलन तात्यपूर्ण और प्रक्रियात्मिक ज्ञान नहीं है, बल्कि वह एक विधि या प्रक्रिया है। विद्या हर एक जीव में बदलाव लाता है, और यह बदलाव हमेशा तुलनात्मक रूप से स्थिर है।
मानव की विद्या ज्ञान, निज की उन्नति या ट्रैनिंग का हि एक भाग होता है। वह एक लक्ष्या अभिविन्यस्त है और लगभग अभिप्रेरणा से सहायतयुक्तित है। किस तरह विद्या आता है वह शैक्षणिक मनोविज्ञान, नुरो साइकॉलजी, लर्निंग थियरी और पेडगोजी के भाग है। विद्या का अंतिम परिणाम अभ्यास और क्लॅसिकल कंडीशनिंग, जो हम जानवरो में देखते है या वह एक अंतिम परिणाम होता है, जहाँ बहुत सारे कला होते है जैसे खेलना, जो हम सिर्फ़ चतुर जानवरो में देखते है। विद्या में जागृत होकर या बिना जागृत होकर आता है। जो विद्या प्रतिकूल कार्यक्रम जिसको हम ताल नहीं सकते, इसको हम ज्ञानी असहायता कहते है। एक गवाह है जो मानव के सवभावजन्या है,जिसमे अभ्यास को देखा गया है, वो भी ३२ वीक्स है जहाँ गर्भकाल का समय है। यह संकेत करता है कि सेंट्रल नर्वस सिस्टम काफ़ी उन्नत और प्रथम विद्या के लिए हैं और चेतना को पहले उन्नत में आने की संकेत करता है। [१]
बहुत सारे विचारक कहते है कि खेल विद्या की पहली मुद्रा है। बच्चे दुनिया के साथ जांँच करते है, उसके तौर तरीके सीखते है और एक दूसरे से बातचीत करते है। ये सब खेल से ही होता या सीखते है। लेव वाइगस्की राज़ी होते है कि खेल बच्चो कि उन्नति के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, क्यो की वे एक उद्देश्या अपने वातावरण के साथ बनाते है जो ज्ञान के खेल से ही होता है। [२]
भारतीय चिन्तन में विद्या
विष्णुपुराण में १८ विद्याएँ गिनाई गयी हैं-
- अङ्गानि चतुरो वेदाः मीमांसा न्यायविस्तरः ।
- पुराणं धर्मशास्त्रञ्च विद्याः हि एताः चतुर्दशाः ॥ २८ ॥
- आयुर्वेदो धनुर्वेदो गान्धर्वश्चैव ते त्रयः ।
- अर्थशास्त्रं चतुर्थन्तु विद्या हि अष्टादशैव ताः ॥ २९ ॥
- ( छः वेदांग, चार वेद, मीमांसा, न्याय, पुराण और धर्मशास्त्र – ये ही चौदह विद्याएँ हैं ॥ २८ ॥ इन्ही में आयुर्वेद, धनुर्वेद और गान्धर्व इन तीनों को तथा चौथे अर्थशास्त्र को मिला लेने से कुल अठारह विद्या हो जाती हैं॥ २९ ॥)
इसी प्रकार 'लोकनीति' नामक पालि ग्रन्थ में १८ विद्याएँ गिनाई गयीं है, जो कुछ भिन्न हैं-
- सुति सम्मुति संख्या च, योगा नीति विसेसिका ।
- गंधब्बा गणिका चेव, धनुबेदा च पुरणा ॥
- तिकिच्छा इतिहासा च, जोति माया च छन्दति ।
- हेतु मन्ता च सद्दा च, सिप्पाट्ठारसका इमे ॥
- ( श्रुति, स्मृति, सांख्य, योग, नीति, वैशेषिक, गंधर्व (संगीत), गणित, धनुर्वेद, पुराण, चिकित्सा, इतिहास, ज्योतिष, माया (जादू), छन्द, हेतुविद्या, मन्त्र (राजनय), और शब्द (व्याकरण) - ये अठारह शिल्प (विद्याएँ) हैं।)[३]
भारत के विद्याविद् आचार्यो ने विद्या के चार विभाग बताए हैं- आन्वीक्षिकी, त्रयी, वार्ता और दण्डनीति। ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद को त्रयी कहते हैं। वार्ता से आशय अर्थशास्त्र से है। आन्वीक्षिकी का अर्थ है- प्रत्यक्षदृष्ट तथा शास्त्रश्रुत विषयों के तात्त्विक रूप को अवगत करानेवाली विद्या। इसी विद्या का नाम है- न्यायविद्या या न्यायशास्त्र ; जैसा कि वात्स्यायन ने कहा है :
- प्रत्यक्षागमाभ्यामीक्षितस्यान्वीक्षामन्वीक्षा, तया प्रवत्र्तत इत्यान्वीक्षिकीन्यायविद्यान्यायशास्त्रम् (न्यायभाष्य 1 सूत्र)
आन्वीक्षिकी में स्वयं न्याय का तथा न्यायप्रणाली से अन्य विषयों का अध्ययन होने के कारण उसे न्यायविद्या या न्यायशास्त्र कहा जाता है। आन्वीक्षिकी विद्याओं में सर्वश्रेष्ठ मानी गई है। वात्स्यायन ने अर्थशास्त्राचार्य चाणक्य के निम्नलिखित वचन को उद्धृत कर आन्वीक्षिकी को समस्त विद्याओं का प्रकाशक, संपूर्ण कर्मों का साधक और समग्र धर्मों का आधार बताया है-
- प्रदीप: सर्वशास्त्राणामुपाय: सर्वकर्मणाम्। आश्रय: सर्वधर्माणां सेयमान्वीक्षिकी मता। (न्या.भा. 1 सूत्र)
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