विजयनगर साहित्य
विजयनगर साहित्य से आशय विजयनगर साम्राज्य में रचित कन्नड, तेलुगु संस्कृत और तमिल साहित्य से है। यह काल दक्षिण भारत के साहित्यिक इतिहास का स्वर्ण काल था। इस काल में राजाओं ने विभिन्न भाषाओं के साहित्यकारों को आश्रय दिया जिन्होने जैन, वीरशैव और वैष्णव सम्प्रदाय की परम्पराओं के ग्रन्थों की रचना की। इस काल में सैकड़ों ग्रन्थों की रचना हुई जो भारतीय संस्कृति, धर्म, जीवनचरित, प्रबन्ध, संगीत, व्याकरण, कविता, आयुर्वेद आदि से सम्बन्धित थे।
विजयनगर-सम्राट् संस्कृत, तेलुगु, तमिल एवं कन्नड़ सभी भाषाओं के संरक्षक थे। उनके प्रोत्साहनपूर्ण आश्रय में साहित्य की कुछ सर्वश्रेष्ठ कृतियों की रचना हुई। वेदों के प्रसिद्ध भाष्यकार सायण तथा उनके भाई माधव विजयनगर के शासन के प्रारम्भिक काल में प्रादुर्भूत हुए तथा राज्य से उनका घनिष्ठ सम्बन्ध था। कृष्णदेवराय का राज्यकाल अन्य क्षेत्रों की तरह साहित्य के क्षेत्र में भी विशेष रूप से महत्वपूर्ण था। यह दक्षिण भारत के साहित्यिक इतिहास में एक नवीन युग का उषाकाल था। वह स्वयं विद्वान्, संगीतज्ञ एवं कवि था। वह अपने को कवियों, दार्शनिकों एवं धार्मिक शिक्षकों से घिरा रखना पसन्द करता था तथा उन्हें भूमि एवं धन के उदारतापूर्ण दानों से सम्मानित करता था। उसने अपनी सबसे महत्वपूर्ण कृति आमुक्तमाल्यदा तेलुगु में लिखी, जिसकी भूमिका में, उसने संस्कृत में लिखी अपनी पाँच पुस्तकों की चर्चा की है। यह पुस्तक केवल धार्मिक महत्व की ही नहीं, बल्कि कृष्णदेवराय के राज्यकाल के लिए विशेष ऐतिहासिक महत्व की है। उसके दरबार में अष्टदिग्गज थे, जिन पर (तेलुगु) साहित्य का संसार टिका था। कृष्णदेवराय के राजकवि पेद्दन की बड़ी ख्याति थी तथा तेलुगु लेखकों में उसका स्थान ऊँचा था। आरवीडु-वंश के शासकों तक ने कवियों एवं धार्मिक उपदेशकों को आश्रय दिया तथा उनके अधीन तेलुगु साहित्य बहुत उन्नत हुआ।
छोटे नायकों एवं सम्राटों के सम्बन्धियों में भी लेखक थे। मनुचरित और स्वारोचीस सम्भव पेद्दन की महत्त्वपूर्ण कृतियाँ है। इसकी एक महत्त्वपूर्ण कृति हरिकथा शरणम् है। तेलुगु के एक दूसरे विद्वान् नदितिम्मन ने परिजातापहरण की रचना की। कृष्णदेवराय ने तेलुगु भाषा में एक महत्त्वपूर्ण कृति अमुक्तमाल्यदा की रचना की। कृष्णदेवराय ने एक संस्कृत में भी ग्रंथ लिखा था जिसका नाम था जाम्वतीकल्याणम्।
उस काल में संगीत पर भी महत्त्वपूर्ण ग्रंथों की रचना हुई। लक्ष्मीनारायण ने संगीतसूर्योदय नामक ग्रंथ लिखा। कृष्णदेवराय और रामराय एक अच्छे संगीतज्ञ थे। कृष्णदेवराय के दरबार में तेनालीराम नामक विदुषक रहता था। उसने पोदुरंग महात्मय नामक ग्रंथ की रचना की। महामात्य माधव के भाई सायण के नेतृत्व में महत्त्वपूर्ण विद्वानों ने चारों वेदों पर टीकायें लिखी। माना जाता है कि वेल्लोर के नायकों के अधीन अप्पयदीक्षित नामक विद्वान् रहते थे। उन्होंने शैवाद्वैत पर टीका लिखी। संगीत-नृत्य, नाटक, व्याकरण, न्याय, दर्शन इत्यादि के ग्रंथों को सम्राटों एवं उनके मत्रियों से प्रोत्साहन मिला। संक्षेप में, विजयनगर-साम्राज्य दक्षिण भारतीय संस्कृति का एक समन्वय था।
अष्टदिग्गज
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- अल्लसिन पेड्डना तेलगु भाषा के पितामह कहलाते हैं। नकी पुस्तकें ‘स्वरोचितसंभव' या 'मनुचरित’ तथा 'हरिकथासरनसम्’ है।
- नन्दीनिम्मन – परिजातहरण
- भट्टमूर्ति – नरसभूआलियम
- धुर्जटी - कालहस्तिमहात्म्य
- मल्लन – राजशेखरचरित
- अच्युतरामचन्द्र – सकलकथा सारसंग्रह
- जिंगलीसुरन्न – राघवपाण्ड्य
- तेनालीराम – पांडुरंग महात्म्य