वायुराशि

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उत्तरी अमेरिका एवं अन्य महाद्वीपों को प्रभावित करने वाली वायुराशियाँ ; ये दूसरे वायुराशियों से एक सीमारेखा द्वारा अलग होती हैं।

वायुराशि हवा का वह घना भाग है जिसका ताप एवं आर्द्रता एक समान एवं समतल हो। कुछ निश्चित स्थानों पर वायुमंडल में हवाओं की सामान्य गति के कारण वायु की विशाल राशि एकत्र हो जाती है, जिसकी अपनी विशेषताएँ और भौतिक दशाएँ, विशेषकर ताप और आर्द्रता, निश्चित तथा स्पष्ट होती हैं। विश्व के मानचित्र पर से स्थायी रूप से एक निश्चित स्थान पर पाई जाती हैं। इनकी स्थिति में थोड़ा बहुत परिवर्तन सूर्य की किरणों के साथ हुआ करता है।

वायुराशि के उत्पत्तिस्थान को स्रोतक्षेत्र (source regions) कहते हैं। प्रतिचक्रवातीय क्षेत्र इस प्रकार की वायुराशि की उत्पत्ति के लिए उपयुक्त स्थान है, जैसे वायुराशि के प्रमुख क्षेत्र कैनाडा का हिमाच्छादित ध्रुववृत्तीय मैदान, शीतकाल में साइबेरिया, उष्ण कटिबंधी महासागरों के विस्तृत क्षेत्र तथा गरम एवं शुष्क सहारा क्षेत्र। वायुराशि अधिक समय तक अपने उत्पत्ति स्थान पर नहीं ठहर सकती है, बल्कि शीघ्रता से बाहर की ओर चलना प्रारंभ कर देती है। इसका क्षेत्र इतना विशाल एवं गति इतनी मंद होती है कि चलते समय इसकी विशेषताओं में अंतर होता जाता है। जब दो वायुराशियों के ताप और आर्द्रता में अंतर होता है, तो ये सरलता से आपस में नहीं मिल पाती हैं और इनके बीच में सीमांत क्षेत्र बन जाता है, जिसके दोनों ओर दो प्रकार के ताप पाए जाते हैं।

वायुराशि के भेद

ताप के आधार पर

(1) गरम वायुराशि (I) warm stable air mass (ii)warm unstable air mass (2) शीतल वायुराशि (I) cold stable air mass (ii)cold unstable air mass

उत्पत्ति अक्षांश के आधार पर

(1) आर्कटिक वायुराशि

(2) ध्रुवीय वायुराशि

(3) उष्णकटिकंधी वायुराशि

(4) विषुवतीय वायुराशि

उत्पत्ति स्थान के आधार पर

(1) समुद्री वायुराशि

(2) महाद्वीपी वायुराशि

अवस्थाएँ

प्रत्येक वायुराशि के जीवन की तीन अवस्थाएँ होती हैं :

1. परिवर्तन - आक्रांत भूमि के गुणों के अनुसार वायुराशि में परिवर्तन होने की अवस्था।

2. मध्यगत - वायुराशि के निजी मूल गुणों के समाप्त हो जाने पर, आक्रांत भूमि की वायु में परिवर्तन होनेवाली अवस्था।

3. अस्तित्वहीनता - जब वायुराशि का अस्तित्व समाप्त हो जाता है और नवीन रूप धारण कर लेती है।