वादमार्ग
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चरकसंहिता में वैद्य-समुदाय के बीच चर्चा एवं वादविवाद के उद्देश्य से संभाषणविधि को विकसित किया गया एवं वादमार्ग की स्थापना की गयी है।
आचार्य चरक ने ज्ञान प्राप्ति के लिए तीन कार्य बताए हैं [१]
- (१) अध्ययन
- (२) अध्यापन
- (३) तद्विद्यसम्भाषा (seminars/symposium/debate)[२]
वाद के द्वारा नये सृजनात्मक विचारों का जन्म होता है (अनुसन्धान)। इसके लिए 'वादमार्ग' के नाम से ४४ मार्ग दिये गये हैं जो निम्नलिखित हैं-[३]
- वाद, द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष, समवाय, प्रतिज्ञा, स्थापना, प्रतिष्ठापना, हेतु, दृष्टान्त, उपनय, निगमन, उत्तर, सिद्धान्त, शब्द, प्रत्यक्ष, अनुमान, ऐतिह्य, औपमेय, संशय, प्रयोजन, सव्यभिचार, जिज्ञासा, व्यवसाय, अर्थप्राप्ति, सम्भव, अनुयोज्य, अननुयोज्य, अनुयोग, प्रत्यनुयोग, वाक्यदोष, वाक्यप्रशंसा, छल, अहेतु, अतीतकथा, उपालम्भ, परिहार, प्रतिज्ञाहनि, अभ्यनुज्ञा, हेत्वन्तर, अर्थान्तर, निग्रहस्थान।[४][५]
सन्दर्भ
- ↑ तत्रोपायान् अनुव्याख्यास्यामः अध्ययनं अध्यापनं तद्विद्यसम्भाषा च इति उपायाः ।....चरक विमानस्थान
- ↑ तद्विद्यसम्भाषा बुद्धिवर्धनानाम् (चरकसंहिता १.२५.४०)
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- ↑ प्राचीन भारत के वैज्ञानिक कर्णधार, पृष्ट १६४/१६५ स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। (लेखक- स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती) -- सभी शब्दों का वर्णन भी किया गया है।
- ↑ SYSTEMATISED ANALYSIS OF VADAMARGPADAS : SCOPE AND UTILIZATION FOR RESEARCHसाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link]