वर्गमूल

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संख्या के साथ उसके वर्गमूल का आलेख

गणित में किसी संख्या x का वर्गमूल (square root (<math>\sqrt{x}</math>) या <math>x^{\frac{1}{2}}</math>) वह संख्या (r) होती है जिसका वर्ग करने पर x प्राप्त होता है; अर्थात् यदि r‍‍2 = x हो तो r को x का वर्गमूल कहते हैं।

उदाहरण-
  • १०० का वर्गमूल १० है क्योंकि १० = १००
  • १६ का वर्गमूल ४ है क्योंकि ४ = १६
  • (क + ख + २ क ख) का वर्गमूल (क+ख) है क्योंकि (क+ख) = (क + ख + २ क ख)
कुछ संख्यायों के वर्गमूल
वर्ग और वर्गमूल
संख्या वर्गमूल संख्या वर्गमूल
1 1 121 11
4 2 144 12
9 3 169 13
16 4 196 14
25 5 225 15
36 6 256 16
49 7 289 17
64 8 324 18
81 9 361 19
100 10 400 20

गुण

  • <math>\sqrt{a\cdot b}=\sqrt{ a}\cdot\sqrt{ b}\;</math> जहाँ <math>\; 0\leq a, \, 0\leq b</math>.
  • <math>\sqrt{a\cdot b}=\sqrt{-a}\cdot\sqrt{-b}\;</math> जहाँ <math>\; a\leq 0, \, b\leq 0</math>.
  • <math>0\leq a<b \;\Longleftrightarrow\; 0\leq \sqrt{a}<\sqrt{b}</math>, अर्थात वर्गमूल फलन, बढ़ते ही जाने वाला (strictly increasing) फलन है।
  • <math>\sqrt{a^2}=|a|</math> किसी भी वास्तविक संख्या <math>a</math> के लिए सत्य है।
  • इसके विपरीत <math>(\sqrt{a})^2=a</math> केवल अऋणात्मक <math>a</math> के लिए सत्य है।

इतिहास

प्राचीन भारत में कम से कम शुल्बसूत्र के समय से ही वर्ग एवं वर्गमूल के सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक पक्षों का ज्ञान था। शुल्ब सूत्रों की रचना ८०० ईसापूर्व से ५०० ईसापूर्व तक बतायी जाती है किन्तु ये इससे भी बहुत पुराने हो सकते हैं। बौधायन का शुल्बसूत्र में २ और ३ के वर्गमूल का बहुत ही शुद्ध मान निकालने की विधि दी गयी है।[१] आर्यभट ने आर्यभटीय के खण्ड २.४ में अनेकों अंकों वाली संख्याओं के वर्गमूल निकालने की विधि दी है ।

समिश्र संख्या का प्रधान वर्गमूल

<math> z=r e^{i \varphi} \text{ with } -\pi < \varphi \le \pi, </math>

तो z का प्रधान वर्गमूल निम्नलिखित ढंग से परिभाषित किया जाता है:

<math>\sqrt{z} = \sqrt{r} e^{i \varphi / 2}.</math>

इसे त्रिकोणमितीय फलन के रूप में भी अभिव्यक्त कर सकते हैं-

<math>\sqrt{r \left(\cos \varphi + i \sin \varphi \right)} = \sqrt{r} \left ( \cos \frac{\varphi}{2} + i \sin \frac{\varphi}{2} \right ) .</math>

सन्दर्भ

  1. Joseph, ch.8.

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