वंश भास्कर

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
(वंश-भास्कर से अनुप्रेषित)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

वंश भास्कर उन्नीसवीं शताब्दी में रचित राजस्थान के इतिहास से सम्बंधित एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक पिंगल काव्य ग्रंथ है। इस में बूँदी राज्य एवं उत्तरी भारत का इतिहास वर्णित है। वंश भास्कर की रचना चारण कवि सूर्यमल्ल मिश्रण द्वारा की गई थी जो बूँदी के हाड़ा शासक महाराव रामसिंह के दरबारी कवि थे। अपूर्ण 'वंश भास्कर'[१] को महाकवि सूर्यमल्ल के दत्तक पुत्र मुरारीदान ने पूरा किया। उक्त ग्रन्थ की सर्वप्रथम टीका बारहठ कृष्णसिंह ने "उदधि मंथिनी टीका" के नाम से लिखी थी। वर्तमान में डॉ. चंद्रप्रकाश देवल ने वंश-भास्कर ग्रन्थ की अर्थ प्रबोधिनी टीका लिखी जो 9 खण्डों में प्रकाशित है।[२]

वंश भास्कर से उद्धृत एक छंद यहाँ प्रस्तुत है:

।।छंद - दुर्मिला।।
दुव सेन उदग्गन खग्ग समग्गन, अग्ग तुरग्गन बग्ग लई।
मचि रंग उतंगन दंग मतंगन, सज्जि रनंगन जंग जई।।
लगि कंप लजाकन भीरु भजाकन, बाक कजाकन हाक बढी।
जिम मेह ससंबर यों लगि अंबर, चंड़ अडंबर खेहू चढी।।१।।

फहरक्कि निसान दिसान बडे, बहरक्कि निसान ऊड़ैं बिथरैं।
रसना अहिनायक की निकसैं कि, परा झल होरिय की प्रसरैं।।
गज घंट ठनंकिय भेरि भनंकिय, रंग रनंकिय कोच करी।
पखरान झनंकिय बान सनंकिय, चाप तनंकिय ताप परी।।२।।

धमचक्क रचक्कन लग्गि लचक्कन, कोल मचक्कन तोल कढ्यो।
पखरालन भार खुभी खुरतालन, व्याल कपालन साल बढ्यो।।
डगमग्गि सिलोच्चय श्रृंग डुले, झगमग्गि कुपानन अग्गि झरी।
बजि खल्ल तबल्लन हल्ल उझल्लन, भुम्मि हमल्लन घुम्मि भरी।।३।।

सन्दर्भ

साँचा:reflist