लोधी

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लोधी (या लोधा, लोध) भारत में पायी जाने वाली एक किसान जाति है। ये मध्य प्रदेश में बहुतायत में पाये जाते हैं, जहां यह लोग उत्तर प्रदेश से विस्थापित होकर आ बसे है।[१] लोधी 'अन्य पिछड़े वर्ग' की एक जाति है, परंतु इस जाति के लोग राजपूतो से संबधित होने का दावा करते हैं तथा 'लोधी-राजपूत' कहलाना पसंद करते हैं। [२] जबकि, इनके राजपूत मूल से उद्धृत होने का कोई साक्ष्य नहीं है और न ही इन लोगो में राजपूत परंपराए प्रचलित है।[३]

शब्द व्युत्पत्ति शास्त्र

ब्रिटिश शासन के एक प्रशासक, रोबर्ट वेन रुसेल ने लोधी शब्द के कई संभव शाब्दिक अर्थों का जिक्र किया है, उदहरणार्थ लोध वृक्ष के पत्तों से रंगो का निर्माण करने का कार्य करने के कारण ये लोग लोधी कहलाए। रुसेल ने यह भी कहा है कि 'लोधा' मूल शब्द है जो कि बाद में मध्य प्रदेश में 'लोधी' में रूपांतरित हो गया। .[४] एक अन्य सिद्धान्त के अनुसार, लोधी अपने गृह निवास पंजाब के लुधियाना शहर के नाम से लोधी कहलाए। [५]

इतिहास

ब्रिटिश स्रोतो में लोधियों को उत्तर भारत से विस्थापित होना बताया गया है,जहाँ से यह लोग मध्य भारत में आ बसे। ऐसा करने में उनके सामाजिक स्तर उत्थान हुआ, और यह लोग ब्राह्मण, बनिया व राजपूत आदि से नीचे के स्थानीय शासक तथा जमीदार बने। इनमे से कुछ बड़े जमींदार ' ठाकुर' की पदवी पाने में सक्षम रहे, तथा दमोह व सागर जिलो में कुछ लोधी परिवारो को पन्ना के मुस्लिम शासक द्वारा राजा, दीवान व लंबरदार करार दिया गया।[५] इस तरह शक्तिशाली बने लोधियों ने बुंदेला उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।[६]

1857 की क्रांति

1857 कि क्रांति मे, लोधी भारत के विभिन्न भागो में अंग्रेज़ो के खिलाफ लड़े। हिंडोरिया रिसायत के लोधी तालुकदार जिले के मुख्य कार्यालय की तरफ कूच करने व खजाने को लूटने में शामिल थे, जबकि शरपुरा आदि के लोधियों ने स्थानीय पुलिस को खदेड़ दिया व उन्होने घुघरी गाँव को भी लूटा।[७]

20वी शताब्दी की जातिगत राजनीति

1911 की भारत कि जनगणना के बाद, लोधी राजनैतिक रूप से एकजुट होना शुरू हुये तथा 1921 कि जनगणना से पूर्व उन्होने 'फतेहगढ़' के एक सम्मेलन में 'लोधी राजपूत' नाम के लिए दावा किया।[८] 1929 के सम्मेलन मे, " अखिल भारतीय लोधी क्षत्रिय(राजपूत) महासभा' बनी।[९] शताब्दी के प्रथम भाग मे लोधीयों के राजपूत या क्षत्रिय दावे के समर्थन मे महासभा द्वारा कई पुस्तके प्रकाशित की गयी, जिनमे 1912 की "महलोधी विवेचना" व 1936 की "लोधी राजपूत इतिहास" प्रमुख है।[१०]

प्रसिद्ध जन

सन्दर्भ