लोढी माता
लोढी माता एक देवी का नाम है, जिनका मन्दिर मध्यप्रदेश [[शिवपुरी]] जिले के नरवर स्थान पर है। यहां पर लोग अपनी नई शादी होने पर, या बच्चा होने पर पूजा करने के लिए आते हैं। कुछ राज्यो में जैसे मध्य प्रदेश, राजस्थान आदि जगह जगह मन्दिर बने हुए है उन मंदिरों में पुजारिन पूजा करती है और भक्तों की समस्या भी हल भी करती है।
लोक कथा [१]
किसी प्रचलित लोककथा के अनुसार नरवर के तत्कालीन राजा से बेडनी समाज की एक नृत्यांगना ने शर्त लगाई कि वह नरवर किले से किले के सामने वाली ऊँची पहाडी तक कच्चे धागे पर नाचती हुई जा सकती है। राजा ने शर्त में अपना संपूर्ण राज पाठ लगा दिया। राजा को छूट दी गयी थी कि वह किसी भी धारदार हथियार से धागे को काट सकता है। नृत्यांगना ने जैसे ही नृत्य करते हुए उस पार जाने की तैयारी की राजा चिन्तित हो उठे। बेडनी अपन गंतव्य तक पहुँचने ही वाली थी। तभी राजा ने धारदार हथियार से धागे को काटना चाहा। वह धागा न काट पाया। उसने सारे धारदार हथियार आजमा लिए। मान्यता है कि उस बेडनी ने अपनी मंत्र शक्ति से सभी हथियारों की धार बाँध दी थी। उन्हें नाकाम कर दिया था। किन्तु एक चर्माकार का औजार (रांपी) जूते जोडने के कुंडे में डले होने से अशुद्ध होने के कारण मंत्रों के प्रभाव से बच गया। उसकी धार न बाँधी जा सकी। राजा ने चर्मकार की उस रांपी से धागा काट दिया। किले की ऊँचाई से नीचे गिरकर बेडनी की मृत्यु हो गयी। जिस जगह गिर कर बेडनी का देहान्त हुआ, संभवतः उसी जगह आज एक मन्दिर बना हुआ है। जिसे लोढी माता का मन्दिर कहा जाता है। इस घटना के पश्चात् यह कहावत लोढी माता के सन्दर्भ में प्रचलित हुई।
नरवर चढे न बेडनी, एरच पके न ईंट गुदनौरा भोजन नहीं, बूँदी छपे न छींट।
Or
माँ नरवर वाली जोहर काला भवानी,धर्मसिंह की पत्रानी नरवर की महारानी तुम दुखियो के दुख हरे, मां मेरी सुख करे मां सात कलश धरणी जय जय हो तिहारी भवानी मा बंगालो पड़नी !!!
वर्तमान स्थिति
आज भी लोढी माता के दर्शन हेतु यह स्थान प्रसिद्ध है। यहाँ देश भर से लोग पूजा करने के लिए आते हैं। नृत्याँगना के साथ हुए इस छल के कारण आज भी बेडिया समाज के लोग नरवर में नाचने के लिए आते हैं। नरवर के इतिहास से जुडी एसी अनेकों कथाएँ समाज में प्रचलित हैं। इतिहासकार डॉ. मनोज माहेश्वरी बताते हैं कि, लोढी माता की कथा अत्यन्त प्राचीन है और जनमानस में खूब रची बसी है।