पटलक्लोमी

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द्विकपाटी प्राणी

द्विकपाटी, या पटलक्लोमी (Lamellibranchia/लैमेलिब्रैंकिया या Bivalvia) अकशेरुकी तथा जलीय प्राणी हैं। यह मोलस्का (Molausca) संघ का एक वर्ग (class) है। इसे लैमेलिब्रैंकियाटा, द्विकपाटी (Bivalve), या पेलेसिपोडा (Pelecypoda) भी कहते हैं। चूँकि इनके पाद चपटे होने के बजाय नवतलित अधरीय होते हैं, इसलिए ये 'पैलेसिपोडा' कहलाते हैं। इस वर्ग के प्राणियों में सिर नहीं होता, अत: यह वर्ग मोलस्का के अन्य वर्गों से भिन्न है। इनमें लेबियल स्पर्शकों (labial palp) के द्वारा सिर का प्रतिनिधित्व होता है। ये द्विपार्श्व सममित प्राणी है। इनके सभी अंश जोड़े में अथवा मध्यस्थ होते हैं। लैमेलिब्रैंकिया स्थानबद्ध प्राणी हैं। कुछ द्विकपाटी चट्टानों से बद्ध रहते हैं, जब कि अन्य धागे सदृश पुलिंदे से जमीन से संलग्न रहते हैं। इस पुलिंदे को सूत्रगुच्छ (Byssus) कहते हैं। यह सूत्रगुच्छ पाद की एक गुहिका से स्रवित होता है। अधिकांश द्विकपाटियों के पाद बिल बनाने, या गमन के लिए व्यवहृत होते हैं। कुछ द्विकपाटी अपने कवचों को एकाएक बंद कर, पानी को बाहर निकालने के द्वारा तैरते हैं।

लैमेलिब्रैंकिया के १०० से अधिक कुल एवं ७,००० स्पीशीज ज्ञात हैं।

परिचय

इनके कवक में दो प्रारूपिक, समान कपाट होते हैं। दोनों कपाट एक प्रत्यास्थ स्नायु (elastic ligament) के द्वारा जुड़े रहते हैं। यदि स्नायु आंतरिक होते हैं, तो ये रेसिलियम (resilium) कहलाते हैं। ये स्नायु कपाटों को अलग रखते हैं, जबकि दो अभिवर्तनी (adductor) पेशियाँ कवचों का बंद रखने का प्रयास करती हैं। कवच के आंतर पृष्ठीय भाग, या हिंजपट्ट (hinge plate) में हिंज दाँत होते हैं, जो अंतर्कीलित होते हैं। दाँतों का साधारण रूप अनेक समान दाँतों का बहुदंती (taxodont) हिंज है। कुछ विभेदित दाँतों का उच्चतम विकास हुआ हैं। अनेक द्विकपाटियों में अधर और पार्श्विक उपांत के सूक्ष्म दंत द्वारा कपाटों का ठीक-ठीक बंद होना सहापित होता है।

प्रावार (mantle) के स्राव के कवच का निर्माण होता है। प्रावार संपूर्ण शरीर को ढँक लेता है। इसकी दाईं एवं बाईं दो पालियाँ होती हैं। ये पालियाँ प्रावार पेशियों (pallial muscles), या वर्तुल (orbicular) पेशियों के द्वारा कपाटों से जुड़ी रहती हैं। कवच का प्रावार (pallial) क्षतचह्न संलगनी रेखा (line of attachment) को प्रकट करता है। प्रावार रेखा के अंत में अनुप्रस्थ अभिवर्तनी पेशियाँ होती हैं। प्रावार पालि के स्वतंत्र अधर, सीमांत दो, तीन या चार छिद्रक छोड़ते हुए, अंशत: जुड़े रहते हैं।

अपवाही (exhalant) तथा अंतर्वाही (inhalant) धाराओं के लिए पश्चछिद्रक होते है। इन दो छिद्रकों पर प्रावार प्राय: दो पेशीय ट्यूब के रूप में बढ़ा रहता है। ऊपरवाला ट्यूब अपवाही या गुदानाल तथा नीचेवाला ट्यूब अंतर्वाही या क्लोमनाल (देखें चित्र २.) होता है। तीसरे छिद्र से पाद का बहिर्बेधन होता है। प्रावार गुहिका में दो मुख्य धाराएँ होती है। अंतर्वाही छिद्रक से मुँह को ढँकनेवाले लेवियल स्पर्शकों तथा गिलों की ओर एक धारा पश्चत: दिष्ट होती है। दूसरी धारा उलटी दिशा में अपवाही नाल की ओर दिष्ट होती है। बालू, या बजरी में गड़े रहनेवाले पिन्ना (pinna) और सोलेन (solen) में अपवाही धाराएँ पक्ष्माभिकामय नाल द्वारा जाती हैं। प्रावार की कोर पर प्राय: ग्रंथियाँ, स्पर्शक, वर्णक चकत्ता (pigment spot) तथा आँखें होती हैं।

प्राय: लैमेलिब्रैंकिया के गिल, या क्लोम, कंकत क्लोम (Ctenidium) कहलाते हैं, क्योंकि अब इनका मुख्य कार्य श्वसन नहीं है। श्वसन मुख्यत: प्रावार से होता है। ये पक्ष्माभिकी गति के द्वारा अंतर्वाही छिद्रक से एक धारा उत्पन्न करते हैं, जो, सूक्ष्म जीवों को भोजन के लिए छाँटकर लेबियल स्पर्शक पर पहुँचा देती है। लेबियल स्पर्शक मुहँ के ओष्ठ, या युग्मित पालियुक्त प्रक्षेपण है। दो गिलों में से प्रत्येक में एक केंद्रीय अक्ष होता है, जिसमें तंतुओं की दो श्रेणियाँ होती हैं, जिन्हें अर्धक्लोम, (demibranchs) कहते हैं। प्रोटोब्रैंक, (protobranch) द्विकपाटियों में तंतु साधारण पट्टिकाएँ दंड होते हैं, फिलिब्रैंक (filibranch) गिलों में तंतु समांतर दंड होते हैं, जो अंतर्कीलित पक्ष्माभिकी टफ (ciliary tuff) द्वारा जुड़े रहते हैं तथा यूलैमेलिब्रैक गिलों में दंड संवहनी (vascular) संधियों द्वारा जुड़े रहते हैं।

प्राय: नर और मादा पृथक् पृथक् होते हैं। समुद्री लैमेलिब्रैंकिया में ट्रोकोस्फीयर (trochosphere) एवं वेलीजर (veliger) लार्वां होते हैं। अलवण जल के लैमेलिब्रैंकिया की विशेषता ऊष्मायन (incubation) है।

वर्गीकरण

हिंज दाँतों के रूपों, गिलों की संरचनाओं तथा विशेषत: पक्ष्माभिकी गुणों के आधार पर लैंमेलिब्रैंकिया को चार गणों (orders) में विभक्त किया गया है, जो निम्नलिखित हैं :

  • (१) प्रोटोब्रैंकिएटा (Protobranchiata) - इस गण के लैमिलिब्रैकियाओं के गिल में चपटे अपरावर्तित तंतु होते हैं, जो क्लोम अक्ष की उल्टी ओर, दो पक्तियों में विन्यस्त रहते हैं। इस गण के उदाहरण हैं : सोलेनोमिया (Solenomya), न्यूकुला (Nucula) तथा योल्डिया (Yoldia)।
  • (२) फिलिब्रैंकिएटा (Filibranchiata) - इस गण के लैमेलिब्रैंकियाओं में गिल समांतर, अधरीय दिष्ट तथा परावर्तित तुतु बनाता है। आंतर पक्ष्माभिकी संधियों द्वारा क्रमिक तंतु आपस में जुड़े रहते हैं। इस गण के उदाहरण हैं : अनोमिया (Anomia), आर्का (Arca), मिटिलस (Mytilus) तथा पेक्टेन (Pecten)। जनक के कवच से बाहर निकलने पर दो से छह सप्ताह तक बच्चे मछलियों के परजीवी रहते हैं। इस मसलों (Mussel) में बहुधा मोती पाए जाते हैं।
अलवणीय मसल (Margaritifera margaritifera) की शरीररचना
  • (३) यूलैमेलिब्रैंकिएटा (Eulamellibranchiata) - इस गण के यूलैमेलिब्रैंकियाओ के गिल के तंतु समान अंतरों पर संवाहनी संधियों द्वारा जुड़े रहते हैं। ये संधियाँ रेखीय तंतु जैसे स्थान की गवाक्षों (fenestrae) में रूपांतरित कर देती है। इस गण के उदाहरण हैं : ऐनोडोंटा (Anodonta), ऑस्ट्रिया (Ostrea), टेलिना (Tellina), कार्डियम (Cardium) तथा फोलैस (Pholas)।
  • (४) सेप्टिब्रैकिएटा (Septibranchiata) - इस गण के प्राणियों के गिल श्वसन अंग के रूप में नहीं रहते हैं। अब ये पेशीय पट (septum) बनाते हैं, जो अभिवर्तनी पेशी से लेकर साइफनों के परस्पर पृथक् होने के स्थान तक जाते हैं। इस गण के उदाहरण हैं : पोरोमाइया (Poromya) तथा कस्पीडेरिया (Cuspidaria)।