लैंगिक असमानता

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

लैंगिक असमानता का तात्पर्य लैंगिक आधार पर महिलाओं के साथ भेदभाव से है। परंपरागत रूप से समाज में महिलाओं को कमज़ोर वर्ग के रूप में देखा जाता रहा है। वे घर और समाज दोनों जगहों पर शोषण, अपमान और भेद-भाव से पीड़ित होती हैं। महिलाओं के खिलाफ भेदभाव दुनिया में लगभग हर जगह प्रचलित है[१] - इसके प्रकार और तीव्रता में अंतर देखे गए हैं।

स्वरूप

प्रत्येक बच्चे का अधिकार है कि उसकी क्षमता के विकास का पूरा मौका मिले। लेकिन लैंगिक असमानता की कुरीति की वजह से वह ठीक से फल फूल नहीं पते है साथ हैं। भारत और कई अन्य देशों में में लड़कियों और लड़कों के बीच न केवल उनके घरों और समुदायों में बल्कि हर जगह लिंग असमानता दिखाई देती है। पाठ्यपुस्तकों, फिल्मों, मीडिया आदि सभी जगह उनके साथ लिंग के आधार पर भेदभाव किया जाता है। यही नहीं अनकी देखभाल करने वाले पुरुषों और महिलाओं के साथ भी भेदभाव किया जाता है।[२] जीवन के अवसरों की प्राप्ती में भी यही असमानता देखी गई है।[३]

वर्तमान आंकड़े

विश्व आर्थिक मंच ने पंद्रहवीं वैश्विक लैंगिक असमानता सूचकांक 2021 की रिपोर्ट जारी की है। इसमें एक सौ छप्पन देशों में पुरुषों की तुलना में महिलाओं की आर्थिक सहभागिता, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी जरूरतों तक उनकी पहुंच और राजनीतिक सशक्तिकरण जैसे मुख्य संकेतकों व लैंगिक भेदभाव को कम करने की दिशा में उठाए जा रहे कदमों का जिक्र किया गया था। रिपोर्ट बताती है कि इस सूचकांक में आइसलैंड, फ़िनलैंड, नार्वे, न्यूज़ीलैंड और स्वीडन शीर्ष पांच देशों में शामिल हैं, जबकि लैंगिक समानता के मामले में यमन, इराक और पाकिस्तान सबसे फिसड्डी देश साबित हुए। हालांकि यह रिपोर्ट भारत के संदर्भ में भी लैंगिक समानता की तस्वीर कोई अच्छी नहीं है। इस सूचकांक में भारत पिछले साल के मुकाबले अट्ठाईस पायदान फिसल कर एक सौ चालीसवें स्थान पर पहुंच गया है। गौरतलब है कि वर्ष 2020 में लैंगिक समानता के मामले में भारत एक सौ तिरपन देशों की सूची में एक सौ बारहवें स्थान पर था। इससे पहले वर्ष 2006 में जब पहली बार यह रिपोर्ट जारी की गई थी, तब इस सूचकांक में भारत अनठानबेवें स्थान पर था। जाहिर है, लैंगिक समानता के मामले में पिछले डेढ़ दशक में भारत की स्थिति लगातार खराब होती गई है। राजनीतिक क्षेत्र में स्त्री-पुरुष समानता के मामले में भारत का स्थान इक्यावनवां है। इस संदर्भ में विश्व आर्थिक मंच का कहना है कि राजनीतिक क्षेत्र में लैंगिक समानता स्थापित करने में भारत को अभी एक सदी से ज्यादा वक्त लग जाएगा। पुरुषों और महिलाओं की समान भागीदारी सुनिश्चित करके ही राष्ट्र के सर्वांगीण विकास का लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। विश्व आर्थिक मंच की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में लैंगिक असमानता अभी तिरसठ फीसद से ज्यादा है। लैंगिक असमानता न केवल महिलाओं के विकास में बाधा पहुंचाती है, बल्कि राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक विकास को भी प्रभावित करती है। स्त्रियों को समाज में उचित स्थान न मिले तो एक देश पिछड़ेपन का शिकार हो सकता है। लैंगिक समानता आज भी वैश्विक समाज के लिए एक चुनौती बनी हुई है। [४]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ