लुण्ठित व्यंजन

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लुण्ठित व्यंजन (trill consonant) ऐसा व्यंजन वर्ण होता है जिसमें मुँह के एक सक्रीय उच्चारण स्थान और किसी अन्य स्थिर उच्चारण स्थान के बीच कंपकंपी या थरथराहट कर के व्यंजन की ध्वनि पैदा की जाती है। हिन्दी में इसका सबसे बड़ा उदाहरण "र" की ध्वनि है जिसमें जिह्वा का सबसे आगे का भाग कंपकंपाया या थरथराया जाता है।[१][२]

इसके अलावा कई अन्य लुण्ठित व्यंजन सम्भव हैं जो अन्य भाषाओं में तो पाए जाते हैं लेकिन हिन्दी में नहीं। दोनों होंठो को जोड़कर भी फड़फड़ाने से एक लुण्ठित व्यंजन की ध्वनि बनती है जिसका अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला में चिन्ह /ʙ/ है। नया गिनी की केले भाषा में "म्बुलिम" (जिसमें 'ब' के स्थान पर होंठो को फड़फड़ाकर लुण्ठित ध्वनि बनाएँ, उच्चारण [ᵐʙulim]) का अर्थ "मुख" होता है।[३] ऐसी भी लुण्ठित ध्वनियाँ हैं जिनका प्रयोग किसी मानव भाषा में न होने के बावजूद लगभग सभी मानव उनसे अवगत हैं, मसलन खर्राटों की आवाज़ भी एक लुण्ठित व्यंजन है।

उत्क्षिप्त व्यंजनों से अंतर

उत्क्षिप्त व्यंजनों (flap consonants) में भी किसी उच्चारण स्थान को हिलाकर किसी अन्य उच्चारण स्थान से मारा जाता है लेकिन इनमें ध्वनि के लिए ऐसा केवल एक बार करा जाता है और किसी प्रकार की कम्पन या थरथराहट नहीं करी जाती। इसलिए लुण्ठित और उत्क्षिप्त व्यंजन की श्रेणियाँ ध्वन्यात्मक दृष्टि से बिलकुल भिन्न मानी जाती हैं।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. John Esling (2010) "Phonetic Notation", in Hardcastle, Laver & Gibbon (eds) The Handbook of Phonetic Sciences, 2nd ed., p 695.
  2. Ladefoged, Peter; Maddieson, Ian (1996). The Sounds of the World's Languages. Oxford: Blackwell. ISBN 0-631-19814-8.
  3. Ladefoged, Peter (2005). Vowels and Consonants (Second ed.). Blackwell.