ली कोर्बुज़िए
चार्ल्स एदुआर् जिआन्नेरे-ग्रि ली कोर्बुज़िए | |
व्यक्तिगत जानकारी | |
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नाम | चार्ल्स एदुआर् जिआन्नेरे-ग्रि ली कोर्बुज़िए |
राष्ट्रीयता | स्विस / फ़्रांसीसी |
जन्म तिथि | साँचा:birth date |
जन्म स्थान | ला शॉ-दे-फ़ॉ, Switzerland |
मृत्यु तिथि | साँचा:death date and age |
मृत्यु स्थान | रॉकब्रून-कै-मार्तीं, फ़्रांस |
कार्य | |
उल्लेखनीय इमारतें | विला सैवौय, फ़्रांस नोत्रे देम दु हॉ, फ़्रांस चंडीगढ़, भारत में इमारतें |
चार्ल्स एदुआर् जिआन्नेरे-ग्रि, जो खुद को ली कोर्बुज़िए कहलाना पसंद करते थे (६ अक्टूबर १८८७ – २७ अगस्त १९६५), एक स्विस-फ़्रांसीसी आर्किटेक्ट, रचनाकार, नगरवादी, लेखक व रंगकार, थे और एक नई विधा के अग्रणी थे, जिसे आजकल आधुनिक आर्किटेक्चर या अंतर्राष्ट्रीय शैली कहा जाता है। इनका जन्म स्विट्ज़र्लैंड में हुआ था, लेकिन ३० वर्ष की आयु के बाद वे फ़्रांसीसी नागरिक बन गए।
आधुनिक उच्च रचना की पढ़ाई के ये अग्रणी थे और भीड़ भाड़ वाले शहरों में बेहतर स्थितियाँ बनाने के प्रति समर्पित थे। उनका कार्य पाँच दशकों में निहित था और उनकी इमारते केंद्रीय यूरोप, भारत, रूस औ उत्तर व दक्षिण अमरीका में एक एक थीं। वे एक नगर नियोजक, चित्रकार, मूर्तिकार, लेखक, व आधुनिक फ़र्नीचर रचनाकार भी थे।
जीवन
प्रारंभिक जीवन व शिक्षा, १८८७-१९१३
इनका जन्म होने पर चार्ल्स एदुआर् जिआन्नेरे-ग्रि नाम दिया गया। जन्मस्थली थी ला शॉ-दे-फ़ौं, जो कि न्यूशाते कैंटन में पश्चिमोत्तरी स्विट्ज़र्लैंड में जुरा पर्वतमाला, के बीच है, यह जगह फ़्रांस की सरहद से केवल पाँच किलोमीटर के रास्ते पर है। इन्होंने फ़्रोबेलियाई विधियों का प्रयोग करने वाली एक पाठशाला में पढ़ाई की।
ली कोर्बुज़िए द्रष्टव्य कलाओं के प्रति आकर्षित थे और उन्होंने बुडापेस्ट व पेरिस में पढ़े शार्ल लीप्लात्तेनिय के अधीन ला शॉ दे फ़ौं कला विद्यालय में पढ़ाई की। कला विद्यालय में उनके आर्किटेक्चर के शिक्षक थे रेने शपला और उनकी प्रारंभिक कृतियों पर इनका गहरा असर रहा।
प्रारंभिक वर्षों में अपने शहर के कुछ संकीर्ण माहौल से निकलने के लिए वे यूरोप भ्रमण करते। १९०७ के आसपास वे पेरिस गए, जहाँ उन्हें सरियाजड़ित कंक्रीट के प्रणेता ऑगस्त पेरे के दफ़्तर में काम मिला। अक्तूबर १९१० और मार्च १९११ के दरमियान उन्होंने बर्लिन के आर्किटेक्ट पीटर बेह्रेंस के साथ काम किया और यहीं पर वे लुड्विग मिएस वैन डेर रोहे व वॉल्टर ग्रोपियस से मिले होंगे। उन्होंने जर्मन में निपुणता हासिल की। ये दोनो अनुभव भविष्य में उनके कार्य को प्रभावित करने वाले थे।
१९११ का अंत आते आते वे बाल्कन प्रदेश में गए और यूनान व तुर्की हो के आए, वहाँ उन्होंने जो देखा उससे उनकी अभ्यासपुस्तिकाएँ भर गईं। इनमें खास थे पार्थेनन के कुछ मशहूर रेखाचित्र, इस इमारत की तारीफ़ उन्होंने बाद में अपनी कृति एक आर्किटेक्चर की ओर (१९२३) में की।
प्रारंभिक कार्य: विला, १९१४-१९३०
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ली कोर्बुज़िए ने ला शॉ-दे-फ़ौं के अपने पुराने विद्यालय में अध्यापन किया और युद्ध खत्म होने पर पेरिस वापस लौटे। स्विट्ज़र्लैंड में इन चार वर्षों में उन्होंने सैद्धांतिक आर्किटेक्चर पर आधुनिक तकनीकों के जरिए काम किया।[१] इनमें से एक था "डॉम-इनो हाउस" (१९१५-१९१५) के लिए एक परियोजना। इस मॉडल में एक खुली तल योजना थी जिसमें कि कंक्रीट के स्लैब थे, जो किनारे किनारे न्यूनतम पतले सरियाजड़ित कंक्रीट के खंबों के जरिए टिके थे और हर फ़र्श पर एक किनारे पर सीढ़ियों के जरिए जाया जा सकता था।
अगले दस साल के उनके वास्तुकारी के लिए यह रचना ही आधार बनी। जल्दी ही उन्होंने अपने भाई पियेरे जॉन्नेरे (१८९६-१९६७) के साथ वास्तुकारी का काम शुरू किया, यह भागीदारी १९४० तक चली।
१९१८ में ली कोर्बुज़िए निराश क्यूबवादी चित्रकार अमेदेई ऑज़ेन्फ़ाँ से मिले, इनमें उन्हें अपने जैसा जुनून दिखा। ऑज़ेन्फ़्राँ ने उन्हें चित्रकारी करने को प्रोत्साहित किया और इस प्रकार दोनों ने कुछ समय का सहयोग आरंभ किया। क्यूबवाद को अतार्किक व "रूमानी" कह के तिरस्कृत करते इस जोड़ी ने अपना प्रस्ताव अप्रे ले क्यूबिस्मे प्रकाशित किया और एक नया कलात्मक आंदोलन, शुद्धतावाद शुरू हुआ। ऑज़ेन्फ़ाँ व जॉन्नरे ने शुद्धतावदी पत्रिका लेस्प्री नोव्यू की स्थापना की। वह क्यूबवादी कलाकार फ़र्नां लेज के अच्छे मित्र थे।
उपनाम चुना, १९२०
पत्रिका के पहले अंक में शार्ल-एदुवा जिआन्नेरे ने अपने लिए एक उपनाम चुना, जो कि उनके नाना "लेकोर्बेसिए" के नाम का एक बदला हुआ रूप था - "ली कोर्बुज़िए", यह उनकी इस मान्यता के आधार पर था कि कोई भी अपने आपको पुनराविष्कृत कर सकता है। कुछ इतिहासविदों का कहना है कि इस उपनाम का अर्थ है " कौआ-जैसा।"[२] खासतौर पर पेरिस में उस समय कई कलाकारों द्वारा अपनी पहचान के लिए केवल एक ही नाम चुनने का प्रचलन था।
१९१८ और १९२२ के बीच ली कोर्बुज़िए ने कुछ नहीं बनाया, वे केवल शुद्धतावादी सिद्धांतों और चित्रकारी में लगे रहे। १९२२ में ली कोर्बुज़िए और जिआन्नेरे ने ३५ र्यू दे सेव्रे में एक स्टूडियो खोला।[१]
उनका सैद्धांतिक अध्ययन जल्द ही एक परिवार वाले घरों की योजनाओं में परिवर्तित हुआ। उनमें एक था, मेइसाँ "सित्रोहाँ", जो कि फ़्रांसीसी कार निर्माता सित्रोएँ पर आधारित था, क्योंकि इस घर को बनाने के लिए ली कोर्बुज़िए ने आधुनिक औद्योगिक विधियों और पदार्थों की हिमायत की थी। यहाँ ली कोर्बुज़िए ने तीन मंज़िला ढाँचा प्रस्तावित किया, जिसमें दोहरी-ऊँचाई का मुख्य कक्ष, दूसरी मंजिल पर शयन कक्ष और तीसरे पर रसोई थी। छत पर धूप के लिए खुली जगह थी। बाहर की तरफ़ दूसरी मंज़िल पर चढ़ने के लिए सीढ़ी थी। इस अवधि की और परियोजनाओं की तरह, यहाँ भी उन्होंने ऐसी दीवारें बनाईं जिनमें कि बड़ी बड़ी बिना अवरोध की खिड़कियों का प्रावधान हो। घर का आकार चौकोर था और जिन बाहरी दीवारों में खिड़कियाँ नहीं थी, उन्हें सफ़ेद स्टकोड स्थान की तरह रखा गया। ली कोर्बुज़िए और जिआन्नेरे ने घर के अंदर काफ़ी कुछ खाली रखा, सारे फ़र्नीचर के ढाँचे ट्यूब वाली धातुओं के थे। रौशनी के लिए कवल एक एक बिना शेड के बल्ब थे। अंदर की दीवारें भी सफ़ेद ही थीं। १९२२ और १९२७ के बीच ली कोर्बुज़िए और पिएरे जिआन्नेरे ने पेरिस के आसपास कई मुवक्किलों के लिए ऐसे मकानों की रचना की। बोलोन-सु-सीन और पेरिस के १६वें एर्रोंडिस्में में ली कार्बूजियर और पिएरे जिएन्नेरे ने विला लिप्शी, मेसाँ कुक (विलियम एडवर्ड्स कुक देखें), मेसाँ प्लेनी और मेसाँ ला रोश/अल्बेर जिआन्नेरे (जिसमें अब फ़ॉण्डेशं ली कार्बूजियर है) की रचना और निर्माण किया।
ली कोर्बुज़िए ने १९३० में फ़्रांसीसी नागरिकता ले ली।[१]
नगरवाद की ओर
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कई सालों तक फ़्रांसीसी अधिकारी पेरिस की झुग्गियों की गंदगी से असफलतापूर्वक जूझते रहे। नगर में घरों की कमी को पूरा करने के लिए ली कार्बूजियर ने कई तरीके सोचे ताकि अधिक से अधिक लोगों को घर मिल सकें। उनका मानना था कि उनके नए वास्तुशिल्पी सुधार एक नया संगठनीय समाधान प्रदान करेंगे जिससे कि निम्न वर्ग के लोगों का जीवन स्तर बेहतर हो सकेगा। उनका इमूब्येल विला (१९२२) एक ऐसी ही परियोजना थी जिसमें कोशिका जैसे घर एक के ऊपर एक बने हुए थे, इनमें एक मुख्य कमरा, शयन कक्ष व रसोई तथा बगीचा था।
केवल कुछ घरों की रचना करने से संतुष्ट न हो के ली कोर्बुज़िए ने संपूर्ण नगरों का अध्ययन शुरू किया। १९२२ में उन्होंने ३० लाख लोगों की "आधुनिक नगरी" (विले कोंतेंपोरैन) की योजना प्रस्तुत की। इस योजना के केंद्र में था साठ मंजिला गगनचुंबियाँ, जो कि स्टील के ढाँचे के दफ़्तरों की इमारतें थी और इनकी दीवारें काँच की थी। ये इमारतें बड़े, चौकोर उद्यान रूपी हरे क्षेत्रों के बीच में थी। ठीक बीच में एक यातायात केंद्र था, जिसमें अलग अलग स्तरों पर बस, ट्रेन, व सड़कों के चौराहे थे और सबसे ऊपर एक हवाई अड्डा था। उनकी यह मान्यता थी कि व्यावसायिक हवाईजहाज़ गगन चुंबियों के बीच उतर पाएँगे। ली कोर्बुज़िए ने पैदल रास्ते सड़कों से अलग किए और यातायात के लिए कारों को अधिक मान्यता दी। केंद्रीय गगन चुंबियों से दूर जाते जाते छोटे, कम ऊँचाई वाले घर शुरू होते थे जो कि सड़क से थोड़ी दूर हरियाली में बने थे, जहाँ नागरिक रहते थे। ली कोर्बुज़िए की आशा थी कि राजनैतिक-महत्वाकांक्षा वाले फ़्रांसीसी उद्योगपति इस दिशा में आगे बढ़ेंगे और टेलरवादी व फ़ोर्डवादी नीतियों का अमरीकी उद्योगों से नकल कर के समाज को नया रूप देंगे। नॉर्मा इवेंसन न कहा है, "प्रस्तावित शहर कुछ लोगों के लिए एक महत्वाकांक्षी दूरदृष्टि थी और कुछ औरों के लिए प्रचलित नागरिक वातवरण का एक विशाल अस्वीकरण।"[३]
इस नए औद्योगिक माहौल में ली कोर्बुज़िए ने एक नई पत्रिका "लेस्प्री नोव्यू" में योगदान दिया, आधुनिक औद्योगिक तकनीकों के इस्तेमाल की हिमायत की गई और समाज को एक अधिक प्रभावी वातावरण में परिवर्तित करने की भी हिमायत हुई, जससे कि सभी सामाजिक-आर्थिक स्तरों में जीवन बेहतर हो सके। उन्होंने यह दलील दी कि इस बदलाव न होने पर विद्रोह भड़क सकता है, जो समाज को हिला के रख देगा। उनका ब्रह्मवाक्य, "वास्तुशिल्प या क्रांति", जो कि इस पत्रिका के लेखों के आधार पर तैयार हुआ, उन्हीं की पुस्तक "व उन आर्कितेक्चर" ("एक वास्तुशिल्प की ओर," जिसका पहले अंग्रेज़ी में "एक नए वास्तुशिल्प की ओर" नाम से गलत अनुवाद हुआ था, इसी विचार को आगे बढ़ाती है, इस पुस्तक में उनके "लेस्प्री नोव्यू" में १९२० से १९२३ के बीच छपे लेख हैं। इस किताब में ली कोर्बुज़िए पर वाल्टर ग्रोपियस का प्रभाव दिखता है और उन्होंने इसमें कई उत्तर अमरीकी कारखानों व अनाज वाहक की तस्वीरें भी छापी हैं।[४]
सैद्धांतिक नागरिक योजनाओं में ली कोर्बुज़िए की दिलचस्पी बनी रही। १९२५ में एक और वाहन निर्माता द्वारा प्रायोजित होने पर उन्होंने "प्लाँ वोइसीं" का प्रदर्शन किया। इसमें उन्होंने सीन के उत्तर में अधिकतर केंद्रीय पेरिस को तोड़ कर अपने आधुनिक नगर के साठ मंजिली गगनचुंबियों को स्थापित करने की योजना प्रस्तावित की। ये इमारतें चौकोर खानों में बागों की हरियाली में होतीं और आसपास सड़कें। फ़्रांस के नेताओं और उद्योगपतियों ने इस योजना की छीछालेदर ही की, हालाँकि वे इन रचनाओं के पीछे के टेलरवाद व फ़ोर्डवाद के हिमायती ही थे। फिर भी इसके जरिए शहर के घिचपिच वाले और गंदे इलाकों से निपटने से संबंधित चर्चाएँ तो छिड़ी ही।
१९३० के दशक में ली कोर्बुज़िए ने नगरवाद के अपने विचारों को और विस्तृत व परिमार्जित किया और अंततः १९३५ में "ला विल रेडियूस" (ओजस्वी नगर) में प्रकाशित किया। शायद आधुनिक नगर व ओजस्वी नगर में सबसे बड़ा फ़र्क यह था कि नए विचार में वर्ग आधारित विभाजन नहीं है, मकान परिवार के आकार के आधार पर निश्चित किए गए हैं, आर्थिक स्थिति के आधार पर नहीं।[५] "ला विल रेडियूस" से ली कोर्बुज़िए का अर्थवाद से असंतुष्टि की ओर मोड़ का भी पता चलता है, अब वे ह्यूबर्ट लगर्देल के दाम-पंथी सिंडिकलवाद की ओर सम्मुख हुए। विची शासन के दौरान ली कोर्बुज़िए को एक योजना समिति में स्थान मिला और उन्होंने अल्जियर्स व अन्य शहरों की रचना की। केंद्र सरकार ने उनकी रचनाओं को अस्वीकार किया और १९४२ के बाद ली कोर्बुज़िए ने राजनैतिक गतिविधियों में भाग लेना बंद कर दिया।[६]
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, ली कोर्बुज़िए ने अपनी नागरिक योजनाओं को छोटे स्तर पर लागू करने के लिए फ़्रांस के कुछ इलाकों में "यूनिते"(ओजस्वी नगर की एक रिहाइशी इकाई) की एक शृंखला का निर्माण किया। इनमें सबसे मशहूर थी मार्सिली की यूनिते द हाबितेशॉ (१९४६-१९५२)। १९५० के दशक में ओजस्वी नगर को एक विशाल रूप में साकार करने का असर चंडीगढ़ के निर्माण के दौरान मिला। यह शहर पंजाब और हरियाणा नामक भारतीय राज्यों की राजधानी थी। अल्बर्ट मेयर की योजना का क्रियान्वयन करने के लिए ली कार्बूजियर को बुलाया गया।
मृत्यु
डॉक्टरों के निर्देशों को न मानते हुए २७ अगस्त १९६५ को ली कोर्बुज़िए रोकब्रून-कै-मार्तीं, फ़्रांस में भूमध्य सागर में तैरने चले गए। उनका शव अन्य तैराकों को मिला और उन्हें ११ बजे मृत घोषित कर दिया गया। यह माना गया कि उन्हें सतत्तर वर्ष की आयु में दिल का दौरा पड़ा है। उनका अंतिम संस्कार लूव्र महल के अहाते में १ सितंबर १९६५ को लेखक व विचारक आंद्रे मालरॉ के निर्देशन में संपन्न हुआ, वे उस समय फ़्रांस के संस्कृति मंत्री थे।
ली कोर्बुज़िए की मृत्यु का सांस्कृतिक व राजनैतिक दुनिया में बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। और कला की दुनिया में ली कोर्बुज़िए के सबसे बड़े विरोधी, जैसे कि सल्वदोर दाली ने भी उनकी महत्ता को पहचाना (दाली ने पुष्पांजली दी)। उस समय के संयुक्त राज्य के राष्ट्रपति लिंडन बी जांसन ने कहा : "उनका प्रभाव वैश्विक था और उनके द्वारा किए कार्यों में ऐसा स्थायित्व है जो कि इतिहास में कुछ ही कलाकार दे पाए हैं।" जापानी टीवी चैनलों ने संस्कार का सीधा प्रसारण टोक्यो के पाश्चात्य कला का राष्ट्रीय संग्रहालय में किया, उस समय के लिए यह समाचार माध्यमों द्वारा अनोखी श्रद्धांजलि थी।
उनकी कब्र दक्षिण फ़्रांस में मेंटन व मोनाको के बीच रोक्ब्रून-कै-मार्तीं में कब्रगाह में है।
फ़ोंडेशं ली कोर्बुज़िए (या ऍफ़ऍलसी) उनकी आधिकारिक कार्यकारिणी के तौर पर काम करती है[७]। फ़ोंडेशं ली ली कोर्बुज़िए में संयुक्त राज्य सर्वाधिकार का आधिकारिक प्रतिनिधि आर्टिस्ट्स राइट्स सोसाइटी[८] है।
विचार
वास्तुशिल्प के पाँच बिंदु
ली कोर्बुज़िए की विला सेवोय (१९२९-१९३१) ने उनके वास्तुशिल्प संबंधी पाँच बिंदुओं का सारांश प्रदान किया है। इन बिंदुओं के बारे में उन्होंने अपनी पत्रिका लेस्प्री नोव्यू और पुस्तक वर्स ऊन आर्कितेक्चर में लिखा है, इनका विकास वे १९२० के दशक में कर रहे थे। पहला, ली कोर्बुज़िए ने अधिकतर ढाँचे को ज़मीन के ऊपर कर दिया, सहारे के लिए पिलोतियों – सरियाजडित कंक्रीट के खंबे के जरिए। ये पिलोती घर का ढाँचा संभालते और इनकी बदौलत अगली दो बिंदुओं को समर्थन मिलता - एक मुक्त दीवाल, यानी ऐसी दीवारें जिन्हें वज़न उठानी की ज़रूरत न ती और वास्तुशिल्पी उन्हें जैसे चाहे बना सकता था और एक खुला फ़र्श, यानी हर फ़र्श को जैसे चाहे कमरों में बाँटा जा सकता था, दीवारों की चिंता करने की ज़रूरत नहीं थी। विला सेवॉय की दूसरी मंज़िल में खिड़कियों की लंबी पट्टियाँ ती जो कि चारों और मौजूद खाली स्थान को बिना अवरोध के देखने में मदद करतीं। यह खाली स्थान उनकी प्रणाली की चौथी बिंदु था। पाँचवी बिंदु है छत पर बागीचा - इमारत ने जो हरियाली नष्ट की उसके एवज में छत पर हरियाली। निचले स्तर से तीसरी मंजिल की छत तक जाता एक रैंप ढाँचे को एक वास्तुशिल्पी प्रॉमिनेड प्रदान करता है। सफ़ेद नलीदार रेलिंग "समद्री जहाज़" वाली औद्योगिक सुंदरता की याद दिलाता है जो ली कोर्बुज़िए को बहुत पसंद थी। आधुनिक उद्योग को श्रद्धंजलि प्रदान करती हुई विस्मयकारी चीज़ थी निचले तल पर गाड़ी ले जाने निकालने की जगह, जो कि अर्धगोलाकार थी और गोलाई १९२७ की सित्रोएँ गाड़ी के घुमाव के आधार पर बनाई गई थी।
मॉड्युलोर
ली कोर्बुज़िए ने वास्तुशिल्पी अनुपात की नाप के लिए अपने मॉड्युलोर प्रणाली में सुनहरे अनुपात का इस्तेमाल किया। इस प्रणाली को उन्होंने वित्रुवियस, लियोनार्दो द विंची के "वित्रुवियन पुरुष", लिओन बतिस्ता अल्बर्ती और अन्यों के काम को आगे बढ़ाने की तरह ही माना, जो कि वास्तुशिल्प के प्रदर्शन और काम को सुधारने में मानव शरीर के अनुपातों का प्रयोग करते आ रहे थे। सुनहरे अनुपात के अलावा, ली कार्बूजियर ने इस प्रणाली को मानवीय नाप, फ़िबोनाची संख्याएँ, व दोहरी इकाई के जरिए भी सुधारा।
वे लियोनार्दो के मानवीय अनुपातो में सुनहरे अनुपात के सुझाव को दूसरी हद तक ले गए। उन्होंने मानव शरीर की लंबाई को नाभि पर दो विभागों में सुनहरे अनुपात के आधार पर विभाजित किया, फिर इन विभागों को पैरों व गले पर फिर से सुनहरे अनुपात में विभाजित किया; इन सुनहरे अनुपातों का उन्होंने मॉड्युलोर प्रणाली में इस्तेमाल किया।
ली कोर्बुज़िए की १९२७ की गार्चे में विला स्तेईं, मोड्यूलोर प्रणाली का उदाहरण बनी। शहर का चौकौर आकार, ऊँचाई और आंतरिक ढाँचा अंदाज़न सुनहरे चौकोरों के बराबर हैं।[९]
ली कोर्बुज़िए ने अनुपात व तारतम्य की प्रणालियों को अपनी रचना दर्शन के केंद्र में रखा और उनका ब्रह्मांड के गणितीय विधान में आस्था सुनहरे अनुपात और फ़िबोनाची शृंखला से जुड़ा था, इन्हें वे "आँखों के सामने मौजूद लय और आपस में संबंधों में भी स्पष्ट। और ये लय ही मनुष्य की सभी गतिविधियों का आधार हैं। ये मनुष्य में अवश्यंभावी है, यही अवश्यंभाविता बच्चों, बूढ़ों और असभ्यों और शिक्षितों द्वारा सुनहरे अनुपात की खोज व प्रयोग से जुड़ी है।"[१०]
फ़र्नीचर
ली कोर्बुज़िए ने कहा था: "कुर्सियाँ वास्तुशिल्प हैं, सोफ़े बुर्जुआ।"
ली कोर्बुज़िए ने फ़र्नीचर रचना के साथ प्रयोग १९२८ में शुरू किए जब उन्होंने वास्तुशिल्पी शार्लोट पेरियाँ को अपने स्टूडियो में आमंत्रित किया। उनके भाई पियरे जाँनरे ने भी कई रचनाओं में योगदान दिया। पेरियाँ के पहले अपने परियोजनाओं में ली कोर्बुज़िए बने बनाए फ़र्नीचर का इस्तेमाल करते थे, जैसे कि थोने द्वारा निर्मित छोटे फ़र्नीचर के सामान। यह कंपनी उनकी रचनाओं का १९३० के दशक में निर्माण करती थी।
१९२८ में ली कोर्बुज़िए और पेरियाँ, ली कोर्बुज़िए की १९२५ की पुस्तक "ला देकोरेति दॉजूर्द्हुई" में दिए निर्देशों को अमल में लाने लगे। इस पुस्तक में तीन प्रकार के फ़र्नीचर वर्णित ते - "प्रकार-ज़रूरी", "प्रकार-फ़र्नीचर" और "मानवीय-अंग"। मानवीय-अंग वस्तुओं की उन्होंने यह परिभाषा दी थी "हमारे हाथ पैर की तरह ही और मानवीय कामों के लिए प्रयुक्त। प्रकार-ज़रूरी, प्रकार-कार्य, अतः प्रकार-वस्तु और प्रकार-फ़र्नीचर। मानवीय-अंग वस्तु एक आज्ञाकारी नौकर है। अच्छा नौकर काम भी करता है और अपने स्वामी के रास्ते में नहीं आता है। निश्चित ही कलाकृतियाँ, उपकरण हैं, सुंदर उपकरण। और भली भाँति चुने, सही अनुपात में बने, रास्ते में अटकाव न बनने वाले और चुपचाप काम करने वाले ये उपकरण लंबे चलेंगे"।
इस सहयोग के पहले परिणाम थे तीन क्रोम-चढ़ी नलीदार स्टील की कुर्सियाँ, जो उनकी दो परियोजनाओं के लिए तैयार की गई थीं - पेरिस की मेइसों ला रोश और बार्बर व हेन्री चर्च के लिए एक पेविलियन। ली कोर्बुज़िए के १९२९ सेलों दातोम्ने, "घर के लिए उपकरण" परियोजना के लिए इस फ़र्नीचर को और विस्तृत किया गया।
१९६४ में ली कोर्बुज़िए के जीवन काल में ही मिलान की कसिना ऍसपीए ने उनकी सभी फ़र्नीचर रचनाओं के निर्माण के वैश्विक अधिकार प्राप्त कर लिए। आज के दिन कई प्रतियाँ मौजूद हैं, लेकिन कसिनी ही एकमात्र उत्पादक है जिसे "फ़ोंडेशं ली कोर्बुज़िए" द्वारा अधिकार प्राप्त हैं।
राजनीति
ली कोर्बुज़िए १९३० के दशक में फ़्रासीसी राजनीती के चरम-दक्षिणपंथियों में शामिल हुए। उन्होंने जॉर्ज वेलोई ऑर ह्यूबर्ट लगर्देल के साथ सहयोग किया और कुछ समय के लिए सिंडिकलिस्ट पत्रिका प्रेल्यूद के संपादक भी रहे। १९३४ में उन्होंने रोम में वास्तुशिल्प पर एक भाषण दिया, जिसके लिए उन्हें बेनितो मुसोलिनी ने बुलाया था। नागरिक योजना में उन्होंने विची शासन से जगह माँगी और उन्हें नगरवाद पर अध्ययन करने वाली एक समिति में स्थान दिया गया। उन्होंने अल्जियर्स की पुनर्रचना की योजनाएँ बनाईं, इनमें उन्होंने यूरोपियनों और अफ़्रीकियों के रहन सहन में फ़र्क मानने का विरोध किया और इस बात का वर्णन किया कि यहाँ "'सभ्य' लोग चूहों की तरह बिलों में रहते हैं और "जाहिल" लोग एकांत में मजे से रहते हैं।"[११] यह योजना और अन्य शहरों की पुनर्रचना की योजनाएँ नज़रंदाज़ की गईं। इस हार के बाद ली कोर्बुज़िए राजनीति से प्रायः दूर ही रहै।
हालाँकि लगर्देल और वेलोई की राजनीति में फ़ासीवाद, यहूदी-विरोधीवाद और अपर-आधुनिकवाद के अंश थे, ली कोर्बुज़िए का इन सब आंदोलनों से कितना जुड़ाव था यह कहना कठिन है। 'ला विल रेडियूस में वे एक अराजनैतिक समाज की परिकल्पना करते हैं, जिसमें आर्थिक प्रशासन की नौकरशाही पूरी तरह से राज्य का स्थान ले लेती है।[१२]
ली कोर्बुज़िए उन्नीसवीं सदी के फ़्रांसीसी यूटोपियाइओं सें-सिमोन व चार्ल्स फ़ूरियर से काफ़ी प्रभावित थे। यूनिते और फ़ूरियर के फ़लंत्सरी में काफ़ी समानता है।[१३] फ़ूरियर से ली कोर्बुज़िए ने कम से कम आंशिक रूप से राजनैतिक के बजाय प्रशासनिक सरकार का विचार लिया।
आलोचनाएँ
मृत्योपरांत ली कोर्बुज़िए के योगदान पर काफ़ी विवाद हुआ है, क्योंकि वास्तुशिल्प मूल्य और इससे जुड़े परिमाण आधुनिक वास्तुशिल्प में काफ़ी अलग अलग है, अलग अलग विचारधाराओं में भी और अलग अलग वास्तुशिल्पों में भी।[१४] निर्माण के स्थर पर उनके बाद के काम से आधुनिकता के जटिल प्रभाव की अच्छी समझ प्रकट होती है, लेकिन उनकी नागरिक रचनाओं की कइयों ने आलोचना भी की है।
तकनीकी इतिहासविद व वास्तुशिल्स मसीक्षक लुइस ममफ़ोर्ड ने बीते कल का आने वाले कल का शहर में कहते हैं,
नव नगरवाद आंदोलन के सदस्य जेम्स हॉवर्ड कुंस्ट्लर, ने ली कार्बूजियर की नगर आयोजन योजना को विनाशकारी व व्ययशील बताया है:
उनके विचारों द्वारा प्रभावित सार्वजनिक गृह परियोजनाओं में यही समस्या पाई गई है कि गरीब समुदायों को एकरूपी गगन चुंबियों तक सीमित कर दिया गया, जिससे कि समुदाय के विकास के लिए आवश्यक सामाजिक संबंध टूट गए। उनके सबसे अधिक प्रभावी विरोधी रही हैं जेन जैकब्स, जिन्होंने ली कोर्बुज़िए की नागरिक रचना सिद्धांतों की कड़ी आलोचना अपनी बौद्धिक रचना महान अमरीकी शहरों की मृत्यु वा जन्म में की है।
प्रभाव
इस लेख की तटस्थता इस समय विवादित है। कृपया वार्ता पन्ने की चर्चा को देखें। जब तक यह विवाद सुलझता नहीं है कृपया इस संदेश को न हटाएँ। (जुलाई 2008) |
ली कोर्बुज़िए नगर नियोजन में बहुत अधिक प्रभावी थे और "कांग्रेस इंटर्नेशनल दार्किटेक्चर मोदर्न" (सीआईएएस) के संस्थापक सदस्य थे।
ली कोर्बुज़िए मानवीय बस्तियों में ऑटोमोबाइल की वजह से बदलाव आने की संभावना को सबसे पहले समझने वालों में से थे। भविष्य के नगर को ली कोर्बुज़िए ने बड़े अपार्टमेंट इमारत, जो कि पार्क जैसी चीज़ से घिरा होगा और पिलोतियों पर टिका होगा, ऐसा सोचा। ली कोर्बुज़िए के सिद्धांतों को पश्चिमी यूरोप व संयुक्त राज्य में सार्वजनिक रिहाइश के निर्माताओं ने अपनाया। इमारतों की रचना में ली कार्बूजियर ने किसी भी प्रकार की सजावट का विरोध किया। इन बड़ी बड़ी इमारतें जो कि शहर में तो हैं पर शहर की नहीं हैं, का उबाऊ होने और पदयात्री के लिए कठिन होने का आरोप है।
कई सालों तक, कई वास्तुशिल्पी ली कोर्बुज़िए के स्टूडियो में उनके साथ काम करते रहे और इनमें से कई अपने आप में भी जाने गए, जैसे कि चित्रकार-वास्तुशिल्पी नादिर अफ़ोंसो जिन्होंने ली कोर्बुज़िए के विचारों को अपनी सुंदरता सिद्धांत में आत्मसात किया। लूशियो कोस्टा की ब्रासिलिया की नगर योजना और फ़्रांतिसेक लिडी गहुरा द्वारा चेक गणराज्य में योजनाबद्ध ज़्लिन नामक औद्योगिक शहर उनके विचारों पर बनी कुछ योजनाएँ हैं और इस वास्तुशिल्पी ने स्वयं ही भारत में चंडीगढ़ की योजना बनाई। ली कोर्बुज़िए की सोच ने सोवियत संघ में शहरी योजना व वास्तुशिल्प को भी प्रभावित किया, खास तौर पर निर्माणवादी युग में।
ली कोर्बुज़िए शताब्दी के प्रारंभ में औद्योगिक शहरों में आई समस्याओं से काफ़ी प्रभावित थे। उनका सोचना था कि औद्योगिक गृह तकनीकों से भीड़, गंदगी और अनैतिकता फैलती है। वे समाज में बेहतर घर बना के बेहतर समाज पैदा करने की आधुनिकतावाद के अग्रणी हिमायती थे। एबेनेज़र हॉवर्ड के गार्डन सिटीज़ ऑफ़ टुमॉरो ने ली कार्बूजियर और उनके समकालीनों को काफ़ी प्रभावित क्या है।
ली कोर्बुज़िए ने इस विचार को भी लयबद्धता दी कि स्थान, गंतव्यों का एक समूह है जिसमें मानव लगभग लगातार ही आते जाते रहते हैं। अतः वे ऑटोमोबाइल को एक वाहक के तौर पर जायज़ ठहरा पाए और शहरी स्थानो में फ़्रीवे को महत्व दे पाए। अमरीका के द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के समय के शहरी विकास कर्ताओं के हितों के लिए उनका यद दर्शन उपयोगी सिद्ध हुआ, क्योंकि इसके जरिए वे पारंपरिक शहरी स्थान को नष्ट करके अधिक घनत्व वाले अधिक मुनाफ़ा देने वाले व्यावसायिक व रिहायशी शहरी इलाकों को वास्तुशिल्पी व बौद्धिक समर्थन की हिमायत करने में सफल हुए। ली कोर्बुज़िए के विचारों के जरिए पारंपरिक शहरी स्थानों का विनाश और अधिक स्वीकृत हो गया, क्योंकि इस नए नगर को कम घनत्व, कम खर्च (और अधिक मुनाफ़े) वाले उपनगरीय और ग्रामीण इलाकों में चौड़ी सड़कें बनी, जिनकी बदौलत मध्यम वर्गीय एक परिवारीय घरों का निर्माण संभव हुआ।
इस आंदोलन में निम्न मध्यम वर्ग व कामगीर वर्गों के अलग थलग पड़े नगरी ग्रामों का अन्य इलाकों से जुड़ाव, अर्थात उपनगरीय व ग्रामीण इलाकों का नगरीय व्यावसायिक केंद्रों से जुड़ाव के लिए ली कार्बूजियर के नियोजन में कोई जगह नहीं थी। ऐसा इसलिए था क्योंकि नियोजन के अनुसार सड़कें कामगीर व निम्न मध्यम वर्गीय वर्गों के रिहायिशी इलाकों के ऊपर से, नीचे से या बगल से निकलती थीं। इस तरह की परियोजनाएँ व इलाकों में सड़क से निकलने का कोई रास्ता नहीं था और सड़कों तक इनके पहुँचने का भी रास्ता नहीं था, जैसे कि कब्रिनी ग्रीन गृह परियोजना में लोग नौकरियों पाने और सेवा प्रदान करने के अवसरों से कट गए क्योंकि ये सब ली कोर्बुज़िए के यातायात-अंत-बिंदुओं तक सीमित थे। जैसे जैसे नौकरियाँ इन सड़कों के अंत में आने वाले उपनगरीय अंतों पर पहुँचते गए, नगरीय ग्रामवासियों ने यह पाया कि उनके समुदाय इन बड़ी सड़कों से कटते गए; न ही इनके पास सार्वजनिक यातायात की सुविधा थी जिससे कि वे किफ़ायत से उपनगरीय केंद्रों में नौकरियाँ कर पाते।
युद्धोपरांत काफ़ी समय बाद उपनगरीय केंद्रों ने पाया कि कामगीरों की कमी एक बड़ी समस्या है, अतः वे स्वयं ही नगर से उपनगर की बस सेवाएँ चलाने लगे ताकि वे सब काम करने वाले लोग उपनगरों में पहुँच सकें जिनसे इतनी कमाई नहीं होती है कि लोग कारों में आ जा सकें।
यातायात के बढ़ते खर्च (जिसमें ईंधन केवल एक ही हिस्सा है) और मध्यम व उच्च वर्ग के लोगों का उपनगरीय व ग्रामीण जीवनशैली के प्रति मन उचटने की वजह से ली कोर्बुज़िए के विचारों पर प्रश्न चिह्न खड़ा हुआ है। अब नगरीय इलाके ज़्यादा वांछित हैं। कई जगह नगर में कोंडोमिनियम में रहना लोग अधिक पसंद कर रहे हैं। कई केंद्रीय व्यावसायिक केंद्रों में अब रिहाइशी इलाके भी बन गए हैं या बन रहे हैं।
ली कोर्बुज़िए ने जानबूझ के अपने बारे में मिथक खड़े किए और अपने जीवन काल में उनका काफ़ी आदर हुआ ही, मृत्योपरांत उनके भक्तों ने उन्हें फ़रिश्ते का जामा पहनाया जो कुछ गलत कर ही नहीं सकते थे। लेकिन १९५० के दशक में पहली शंकाएँ उठनी शुरू हुईं, खास तौर पर उनके अपने ही शिष्यों द्वारा निबंधों में, जैसे कि जेम्स स्टिर्लिंग व कॉलिन रो द्वारा, जिन्होंने उनके नगर संबंधी विचारों को खतरनाक बताया। बाद के आलोचकों ने उनके वास्तुशिल्प में तकनीकी खामियाँ भी निकालीं। ब्रायन ब्रेस टेलर ने अपनी किताब "आर्मे दु सालू" में ली कोर्बुज़िए की तिकड़मी हथकंडों के बारे में लिखा है जिनकी बदौलत उन्होंने अपने लिए आयोग बनवाया। उन्होंने निर्माण विधि और कई बेहूदे समाधानों के बारे में भी लिखा है।
प्रमुख भवन व परियोजनाएँ
- १९०५: विला फ़ाले, ला शॉ-दे-फ़ॉ, स्विट्ज़र्लेंड
- १९१२: विला जियानेरे-पेरे, ला शॉ-दे-फ़ॉ [१]
- १९१६: विला श्वॉ, ला शॉ-दे-फ़ॉ
- १९२३: विला ला रोश/विला जियानरे, पेरिस
- १९२४: पाविलों दे लेस्प्री नोव्यू, पेरिस (नष्ट हो चुका है)
- १९२४: क्वार्तिए मोदर्न फ़्रुजे, पेसा, फ़्रांस
- १९२५: विला जियानरे, पेरिस
- १९२६: विला कू, बोलोनिया-सु-सीन, फ़्रांस
- १९२७: वेइसेन्होफ़ एस्टेट, स्टटगार्ट, जर्मनी में विला
- १९२८: विला सेवॉय, पोइसी-सु-सीन, फ़्रांस नक्शे में देखें
- १९२९: आरेमे दु सालू, सिते दे रेफ़ुज, पेरिस
- १९३०: पेविलों सुइस, सिते यूनिवर्सितेर, पेरिस
- १९३०: मेसों इर्राज़ुरि, चिली
- १९३१: सोवियतों का महल, मास्को, यूएसएसआर (परियोजना)
- १९३१: इमेउब्ले क्लार्ते, जनेवा, स्विट्ज़र्लेंड नक्शे में देखें
- १९३३: सेंत्रोसोयूज़, मास्को, यूएसएसआर
- १९३६: राष्ट्रीय शिक्षा व सार्वजनिक स्वास्थ्य मंत्रालय का महल, रियो दे जेनेरियो (लूशियो कोस्ता, ऑस्कर निएमेयर व अन्यों के सलाहकार के तौर पर)
- १९३८: "कार्टेसियन" गगनचुंबी (परियोजना)
- १९४५: उसीन क्लॉद ए दुवा, सें-दिए-दे-वोस्गे, फ़्रांस
- १९४७–१९५२: यूनिते द्हाबितेशाँ, मार्सिली, फ़्रांस 0,-5.777772317930098 नक्शे में देखें, पूर्वनिर्मित घर का इतिहास
- १९४८: कुरुचेत हाउस, ला प्लाता, अर्जेंटीना
- १९४९-१९५२: संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय, न्यू यॉर्क शहर, संयुक्त राज्य (सलाहकार)
- १९५०-१९५४: शैपेल नोत्रे देम दु हॉ, रांशैं, फ़्रांस नक्शे में देखें
- १९५१: कबनों दे वेकेंसे, रोकब्रून-कै-मार्तीं
- १९५१: मेसों जाओ, न्यूइली-सु-सीन, फ़्रांस
- १९५१: मिल मालिक संघ की इमारत, विला साराभाई व विला शोदन, अहमदाबाद, भारत
- १९५२: नान्ते-रेज़े की यूनिते दहाबितेशों, नान्ते, फ़्रांस नक्शे में देखें
- १९५२-१९५९: चंडीगढ़, भारत में भवन
- १९५२: न्याय भवन (चंडीगढ़)
- १९५२: कला वीथी व संग्रहालय (चंडीगढ़)
- १९५३: सचिवालय (चंडीगढ़)
- १९५३: राज भवन (चंडीगढ़)
- १९५५: विधान सभा (चंडीगढ़)
- १९५९: राजकीय कला महाविद्यालय (जीसीए) व चंडीगढ़ वास्तुशिल्प महाविद्यालय (सीसीए) (चंडीगढ़)
- १९५६: अहमदाबाद में संग्रहालय, अहमदाबाद, भारत
- १९५६: सद्दाम हुसैन व्यायामशाला, बग़दाद, ईराक़
- १९५७: ब्रिए एं फ़ोरे, फ़्रांस की यूनिते द्हाबितेशाँ
- १९५७: राष्ट्रीय पाश्चात्य कला संग्रहालय, टोक्यो
- १९५७: मेसों दु ब्रेसी, सिते यूनिवर्सितेर, पेरिस
- १९५७–१९६०: सेंत मारी दे ला तूरेत, ल्यों, फ़्रांस के निकट (इयानिस ज़ेनाकिस के साथ)
- १९५७: बर्लिन की यूनिते द्हाबितेशाँ-शार्लोतनबर्ग, फ़्लातोवल्ली १६, बर्लिन नक्शे में देखें
- १९५७: म्यू, फ़्रांस की यूनिते द्हाबितेशाँ
- १९५८: फ़िलिप्स पेविलियन, ब्रुसेल्स, बेल्जियम (इयानिस ज़ेनाकिस के साथ) (नष्ट हो चुका है) १९५८ विश्व प्रदर्शनी में
- १९६१: इलेक्ट्रानिक कैल्कुलस केंद्र, ओलिवेती, मिलान, इटली
- १९६१: कार्पेंटर द्रष्टव्य कला केंद्र, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी, कैंब्रिज, मासचुसेट्स, संयुक्त राज्य
- १९६४-१९६९: फ़िर्मिनी-वर्त
- १९६४: फ़िर्मिनी की यूनिते द्हाबितेशाँ, फ़्रांस
- १९६६: स्टेडियम फ़िर्मिनी-वर्त
- १९६५: मेइसों दे ला कल्चर दे फ़िर्मिनी-वर्त
- १९६९: संत-पियरे, फ़िर्मिनी, फ़्रांस में गिरजाघर (मरणोपरांत, होज़े ओउब्रेरिए के निर्देशन में २००६ में बनी)
- १९६७: हेइदी वेबर संग्रहालय (सेंतर ली कार्बूजियर), ज़्यूरिख [२]
प्रमुख लेखन
- १९१८: अप्रे ली क्यूबिस्मे (क्यूबवाद के बाद), अमेदेई ओज़ेन्फ़्रां के साथ
- १९२३: वर्स उन आर्कितेक्चर (एक नए वास्तुशिल्प की ओर)
- १९२५: अर्बनिस्म (नगरवाद)
- १९२५: ला पेइंचर मोदर्न (आधुनिक चित्रकला), अमेदेई ओज़ेन्फ़्रां के साथ
- १९२५: लार् देकोरेतिफ़ दोजुर्धुई (आजकी सजावटी कला)
- १९३१: प्रीमिए क्लेविए दे कोलो (प्रथम रंगीन कुंजीपटल)
- १९३५: विमान
- १९३५: ला विले रेदियूस (ओजस्वी नगर)
- १९४२: चार्ते द-एथेने (एथेंस घोषणापत्र)
- १९४३: एंत्रेतिएँ एवे ले एतूदियाँ दे एकोल द-आर्कितेक्चर (वास्तुशिल्प के विद्यार्थियों से गुफ़्तगू)
- १९४८: ले मोड्यूलोर (मोड्यूलोर)
- १९५३: ले पोएम दे ल-एंगल द्रोई (समकोण की कविता)
- १९५५: ले मोड्यूलोर २ (मोड्यूलोर २)
- १९५९: द्यूख़ियेम क्लेविए दे कोलो (दूसरा रंगीन कुंजीपटल)
- १९६६: ले वोयाज दोरिएँ (पूर्व की यात्रा)
उद्धरण
- "तुम पत्थर, लक्कड़, कंक्रीट ले के घर और महल बनाते हो, यह है निर्माण। काम में सरलता है। पर अचानक कुछ दिल को छू जाता है, मुझे अच्छा लगता है। मैं खुश हो के कहता हूँ, "यह सुंदर है। यह है वास्तुशिल्प। कला का प्रवेश होता है।.. (वर्स ऊन आर्कितेक्चर, १९२३)
- "वास्तुशिल्प रूप का रोशनी के साथ विस्मयकारी और सटीक खेल है।"
- "स्थान और रौशनी और क्रमांकन। मनुष्य को रोटी और सोने की जगह चाहिए तो यह सब भी चाहिए।"
- "मकान घर में रहने के लिए एक यंत्र है।" (वर्स उन आर्कितेक्चर, १९२३)
- "सवाल यह है कि आज के समाज में अस्तव्यस्तता के पीछे जो चीज़ है उसे बनाया जाए : वास्तुशिल्ट या विद्रोह।" (वर्स ऊन आर्कितेक्चर, १९२३)
- "आधुनिक जीवन की माँग है, उसे प्रतीक्षा है, एक नी योजना की - मकान के लिए भी और नगर के लिए भी।" (वर्स ऊन आर्कितेक्चर, १९२३)
- "ये 'शैलियाँ' एक मिथ्या है।" (वर्स ऊन आर्कितेक्चर, १९२३)
स्मारक
ली कोर्बुज़िए की उनके खास चश्मा पहने तस्वीर १० स्विस फ़्रैंक के नोट पर छपी।
इन स्थानों को उनके नाम से जाना जाता है:
- प्लेस ली कोर्बुज़िए, पेरिस, उनकी कार्यशाला के पास र्यू दे सेव्रे पर।
- ली कोर्बुज़िए बूल्वार, लवल, क्वेबेक, कनाडा।
- उनकी जन्मस्थली of ला शॉ-दे फ़ों, स्विट्ज़र्लैंड में प्लेस ली कोर्बुज़िए।
- माल्विनास आर्जेंतिनास, ब्यूनोस आयर्स प्रांत, आर्जेंटीना के पार्तिदो में ली कोर्बुज़िए मार्ग
- ब्रोसा, क्वेबेक, कनाडा के "ली विलेज पारिसिएँ" में ली कोर्बुज़िए मार्ग
अन्य सन्दर्भ
- वर्ग:ली कोर्बुज़िए भवन – भवनों और लेखों की अंगूठाकार छवियाँ
- आधुनिकतावाद
सन्दर्भ
अन्यत्र पठनीय
- वेबर, निकोलस फॉक्स, ली कोर्बुज़िए: एक जीवन, अल्फ़्रेड ए नोफ़, २००८, आईएसबीएन ०३७५४१०४३०
- मार्को वेंचुरी, ली कोर्बुज़िए अल्जियर्स प्लांस, planum.net पर उपलब्ध शोध
- बेह्रेंस, रॉय आर. (२००५). कुक बुक: गर्ट्रूड स्टेइन, विलियम कुक व ली कोर्बुज़िए। डिसार्ट, आयोवो: बोबोलिंक बुक्स। आईएसबीएन o-९७१३२४४-१-७।
- नईमा जोमोद व जिआँ-पिएरे जोर्नो, ली कोर्बुज़िए (शार्ल एदुआर् जिआनेरे), कातालोग रेइसोने दे लूव्र पेइं, स्किरा, २००५, आईएसबीएन ८८७६२४२०३१
- इलिएल, केरोल ऐस. (२००२). लीस्प्री नोव्यू: प्यूरिज़्म इन पेरिस, १९१८ - १९२५. न्यू यॉर्क: हैरी ऍन ऍब्राम्स, इंक. आईएसबीएन o-8109-6727-८
- एज ऍलेन ब्रुक्स: ली कोर्बुज़िए फॉर्मेटिव इयर्स: शार्ल एदुवार् जियानेरे ऍट ला शॉ दे फ़ों, पेपरबैक संस्करण, शिकागो विश्वविद्यालय प्रेस, १९९९, आईएसबीएन ०२२६०७५८२६
बाहरी कड़ियाँ
- फ़ोंदेशं ली कार्बुजियर - आधिकारिक स्थल
- फ़र्नीचर रचना के लिए संसाधन स्थल
- राष्ट्रीय शिक्षा व सार्वजनिक स्वास्थ्य मंत्रालय, रियो दि जेनेरियो की छवियाँ
- एक नक्शे पर ली कोर्बुज़िए की परियोजनाएँ
- Artfacts.Net पर ली कोर्बुज़िए
- कोर्बुज़िए की कार्यशैली: 'कोर्बुज़िए के साथ काम करना'
- वीडियो: सेक्टर १ चंडीगढ़, भारत
- आर्टिस्ट्स राइट्स सोसाइटी, ली कोर्बुज़िए के संयुक्त राज्य सर्वाधिकार प्रतिनिधि
- ↑ अ आ इ चोए, फ़्रांसॉइस, ली कोर्बुज़िए (१९६०), पृ. १०-११। जॉर्ज ब्राज़िलर, इंक. आईऍसबीऍन ०-८०७६-०१०४-७।
- ↑ गैंस, डेबोरा, ली कोर्बुज़िए परिचय (२००६), पृ. ३१। प्रिंसटन आर्किटेक्चरल प्रेस। आईऍसबीऍन १-५६८९८-५३९-८।
- ↑ इवेंसन, नॉर्मा। 'ली कोर्बुज़िए: मशीन व विशाल रचना। जॉर्ज ब्रेज़िलर, प्र: न्यू यॉर्क, १९६९ (पृ. ७)।
- ↑ http://www.american-colossus.com/ स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। अमेरिकन कोलोसस: अनाज वाहक १८४३-१९४३ (कोलोसस बुक्स, २००९) www.american-colossus.com
- ↑ रॉबर्ट फ़िश्मैन, अर्बन यूटोपियाज़ इन द ट्वेंटियथ सेंचुरी: एबेनेज़र होवार्ड, फ़्रैंक लॉय्ड राइट, व ली कोर्बुज़िए (कैंब्रिज, मा.: ऍमआईटी प्रेस, १९८२), २३१।
- ↑ फ़िश्मैन, २४४-२४६
- ↑ http://www.fondationlecorbusier.asso.fr/fondationlc_us.htm स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। | फ़ोंडेशं ली कोर्बुज़िए का अंग्रेज़ी जाल स्थल
- ↑ http://arsny.com/requested.html स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। | आर्टिस्ट्स राइट्स सोसाइटी की अधिक माँगी गई कलाकार सूची
- ↑ ली कोर्बुज़िए, दि मॉड्युलोर, पृ. ३५, पडोवन, रिचर्ड में उल्लिखित, अनुपात: विज्ञान, दर्शन, वास्तुशिल्प (१९९९), पृ. ३२०। टेलर व फ़्रांसिस। आईऍसबीऍन ०-४१९-२२७८०-६: "चित्र व वास्तुशिल्प दोनो ही सुनहरे विभाग का इस्तेमाल करते हैं"।
- ↑ इबिद. दि मॉड्युलोर पृ.२५, पडोवन की अनुपात: विज्ञान, दर्शन, वास्तुशिल्प पृ.३१६ से उद्धृत
- ↑ सेलिक, ज़ेय्नेप, नागरिक रूप व साम्राज्यिक द्वन्द्व: फ़्रांसीसी शासन में अल्जियर्स, कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय प्रेस, १९९७, पृ. ४।
- ↑ फ़िश्मैन, २२८
- ↑ पीटर सेरेन्यी, “ली कार्बूजियर, फ़ूरियर और इमा का आश्रम।” द आर्ट बुलेटिन ४९, क्र. ४ (१९६७): २८२।
- ↑ होम, इवर (२००६)। वास्तुशिल्प और औद्योगिक रचना में विचार व मान्यताएँ: नज़रिए, विचारधाराएँ और मान्यताएँ कैसे निर्माण के माहौल को बदलती हैं। ऑस्लो स्कूल ऑफ़ आर्किटेक्चर ऍण्ड डिज़ाइन। आईऍसबीऍन ८२५४७०१७४१।
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