लाहौर का इतिहास

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लाहौर की एक गली का दृश्य (१८९० के दशक में)

लाहौर एशियाई राष्ट्र पाकिस्तान का दूसरा सबसे बड़ा महानगर है। नगर का दर्ज इतिहास हजारों वर्ष पुराना है। मूल रूप से पंजाब क्षेत्र की राजधानी और सबसे बड़े नगर के रूप में प्रसिद्ध लाहौर,अपनी बसावट के बाद से ही हिंदू, जैन, बौद्ध, यूनानी, सलमान, मुगल, अफगान, सिख, मराठा और अंग्रेजों समेत विभिन्न शक्तियों के अधीन रहा है, जिसने इस नगर को आधुनिक पाकिस्तान की सांस्कृतिक राजधानी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

उत्पत्ति

मिथकीय वर्णनों के आधार पर एक पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि लाहौर का नाम हिन्दू भगवान राम के पुत्र लव के नाम पर रखा गया था, जिन्होंने, मान्यतानुसार, इस नगर की स्थापना की थी। लाहौर दुर्ग में लव को समर्पित एक खाली मंदिर है। इसी प्रकार, उत्तरी लाहौर से होकर बहती रावी नदी का नाम भी हिन्दू देवी दुर्गा के सम्मान में रखा गया था।[१]

प्रसिद्ध खगोलविद और भूगोलकार, टॉलमी ने अपनी पुस्तक जियोग्राफिया में लैबोकला नामक एक नगर का उल्लेख किया है,[२] जो कि सिंधु नदी के मार्ग के बीच एक ऐसे क्षेत्र में स्थित है, जो बिदास्टिस या वितस्ता (झेलम), सांडबल या चंद्रभागा (चेनाब) , और एडिस या इरावती (रावि) नदियों के विस्तार में स्थित है।

लाहौर के बारे में सबसे पुराना प्रामाणिक दस्तावेज सन ९८२ में लिखा गया हुदुद-ए-आलम है।[३] इसका अनुवाद व्लादिमीर फेडोरोविच मिनोरस्की द्वारा अंग्रेजी में किया गया था, जिसे १९२७ में लाहौर में प्रकाशित किया गया। इस दस्तावेज़ में, लाहौर को "प्रभावशाली मंदिरों, बड़े बाजारों और विशाल बागों" वाले एक छोटे से नगर के रूप में वर्णित किया गया है। इसके अतिरिक्त, दस्तावेज़ में दो प्रमुख बाजारों के आसपास बसे घरों, और उन्हें जोड़ती मिट्टी की दीवारों का भी उल्लेख है। मूल दस्तावेज वर्तमान में ब्रिटिश संग्रहालय में रखा हुआ है।[४]

जैन विरासत

प्लूटार्क समेत कई अन्य विद्वानों का मत है कि जैन धर्म ही पंजाब में सबसे प्राचीन और मूल धर्म था। लाहौर जैन धर्म का सांस्कृतिक केंद्र था। प्लूटार्क द्वारा लिखी गई एक पुस्तक, लाइफ ऑफ अलेक्जेंडर में सिकंदर महान और जिम्नोसोफिस्ट नामक दिगंबर जैन संतों के बीच मुठभेड़ों का उल्लेख है।[५] भब्र या भभ्र पंजाब क्षेत्र से एक प्राचीन व्यापारी समुदाय है, जो मुख्य रूप से जैन धर्म का अनुसरण करता है। इस समुदाय को भावदार या भावड़ा गचा से भी जुड़ा हुआ माना जाता है; जिससे जैन आचार्य कलाकाचार्य संबंधित थे। हो सकता है कि वे भाबरा शहर (३२° १३' ३०": ७३° १३') से निकले हों।[६] शिलालेखों से पता चलता है कि भावड़ा गछ्वा १७ वीं शताब्दी तक उपस्थित थे। क्षेत्र के कुछ मुहल्लों में कई जैन मंदिर थे, जिस कारण उन्हें अभी भी थारी भाबरीन या गैली भबरीन कहा जाता है।

सन्दर्भ

  1. साँचा:cite book
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  3. HUDUD AL-'ALAM 'The Regions of the World' A Persian Geography साँचा:webarchive
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  5. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  6. Sarupa-Bharati: Or the Homage of Indology, Being the Dr. Lakshman Sarup ...by Vishveshvaranand Vedic Research Institute - Indic studies - 1953 - Page 247