लावा लैंप

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
नीले रंग का लावा लैंप

लावा लैंप एक सजावटी दीप है, जिसका आविष्कार 1963 में ब्रिटिश एकाउंटेंट एडवर्ड क्रेवेन-वाकर ने किया था। यह दीप रंगीन मोम की बूंदों से भरा होता है, जो की एक कांच के पोत के अंदर भरे साफ़ तरल में तैरते हैं। पोत के नीचे लगे एक उद्दीप्त दीपक के ताप से मोम के घनत्व में परिवर्तन आता है और वह ऊपर-नीचे चढ़ता और गिरता है। यह दीपक अनेक रूप-रंगों में तैयार किये जाते हैं।

सिद्धांत

नारंगी रंग के लावा लैंप में गिरता और चढ़ता मोम

एक पारम्परिक लावा लैंप में उद्दीप्त या हलोजन दीप लगा होता है, जो एक लंबे कांच के बोतल को गरम करता है। 1968 के एक अमेरिकी पेटेंट के अनुसार इसके फोर्मुले में पानी एवं खनिज तेल, पैराफिन वैक्स और कार्बन टेट्राक्लोराइड का एक पारदर्शी, पारभासी या अपारदर्शी मिश्रण शामिल होता है।[१] पानी और/या खनिज तेल को स्वैच्छिक पारदर्शी रंगों से रंगा जा सकता है।

पानी की तुलना में साधारण मोम का घनत्व काफी कम होता है और किसी भी तापमान पर वह पानी के ऊपर ही तैरता है। पर जब मोम में पानी से भारी कार्बन टेट्राक्लोराइड (जो की अज्वलनशील होने के साथ साथ मोम के साथ विलेयशील भी होता है) मिलाया जाता है, तब कक्ष तापमान पर मोम का घनत्व पानी से थोड़ा अधिक हो जाता है। गरमाने पर मोम पानी से ज्यादा फैलता है, इसलिए मोम का यह मिश्रण पानी से हल्का हो जाता है।[१]मोम की बूंदें दीप की उपरी ओर चढ़ती हैं, जहाँ पहुंचकर वह ठंडी (और पानी से ज्यादा भारी) होकर वापस नीचे गिरने लगती हैं।[१]बोतल की नीचली सतह पर स्थित एक तार पृष्ठ तनाव (surface tension) तोड़ कर नीचे गिर चुके बूंदों को पुनर्संयोजित करने का काम करता है।

दीप का बल्ब सामान्यतः 25 से 40 वाट का होता है। आम तौर पर मोम पर्याप्त तापमान पर पहुँचाने के लिए 45-60 मिनट का समय लगता है। कमरे का तापमान मानक कक्ष तापमान से कम होने की स्थिति में, 2 से 3 घंटे भी लग सकते हैं।

मोम के पिघलने के पश्चात, दीप को हिलाया या उलटाया नहीं जाना चाहिए, क्यूंकि ऐसा करने से दोनों तरल पदार्थ पायस हो सकते हैं और परिणामस्वरूप मोम की बूंदों के आसपास का पदार्थ धुंधला हो जाता है।

इतिहास

ब्रिटिश एकाउंटेंट एडवर्ड क्रेवेन-वाकर ने इस दीप का आविष्कार एक शराबख़ाने में चूल्हे पर बुदबुदाते तरल पदार्थों से भरे एक कॉकटेल हल्लित्र से बने एग टाइमर को देखने के पश्चात किया।[२]अपने इस "प्रदर्शन उपकरण" के लिए उन्होंने 1965 में अमेरिकी पेटेंट ३३,८७,३९६ दायर किया और 1968 में इसे स्वीकृत प्राप्त हुई।[१] क्रेवेन-वाकर की कंपनी का जन्म यूनाइटेड किंगडम के डॉरसेट काउंटी में स्थित पूल शहर में क्रेस्टवर्थ के नाम से हुआ। क्रेवेन-वाकर ने दीप का नाम "ऐस्ट्रो" रखा और "ऐस्ट्रो मिनी" एवं "ऐस्ट्रो कोच" इसके जैसे भिन्नरूप बनाये।

खतरा

2004 में, केंट, वाशिंगटन में रहने वाला एक पुरुष, केवल कुछ ही फुट की दूरी से रसोई के चूल्हे पर एक लावा लैंप को गरम करने के प्रयास में मारा गया था। गर्मी से लैंप में बने दबाव के कारण उसमें विस्फोट हुआ और कांच का एक टुकड़े ने उसके दिल को भेद दिया। यह चोट उसके लिए घातक साबित हुई।[३]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

साँचा:reflist

  1. अमेरिकी पेटेंट ३५,७०,१५६ DISPLAY DEVICE, Edward C. Walker, Nov. 13, 1968
  2. साँचा:cite web
  3. Lava Lamp Death at Snopes.com; AP story स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। (via Fox News)