तथाचार्य

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तथाचार्य विजयनगर साम्राज्य के राजा कृष्णदेवराय का राजपुरोहित था। वह राजतंत्र का महाज्ञानी था। उसकी पत्नी का नाम वरुणमाला और बेटियाँ अनंता लक्ष्मी तथा सौदामिनी देवी थी। तथाचार्य के दो शिष्य 'धनीचार्य' और 'मनीचार्य' थे। वह तेनाली रामा से शत्रुता रखते थे। उन्होंने तेनालीराम को राज्य से भगाने के लिए कई षड्यंत्र रचे । वे तेनालीराम से ईर्ष्या की भावना रखते थे परंतु बाद में वह रामा का मित्र बन गया था।

राजपुरोहित बनने की कथा

तथाचार्य जब भारत घूमने गया तो उसे कई ज्ञानी लोग मिले जो तथाचार्य के गुरु बने। फिर आखिर मे वह विजयनगर आया व राजा कृष्णदेवराय के पिता तुलुव नरस नायक से मिला व वह राजा तुलुव का राजपुरोहित बना। राजा तुलुव ने तथाचार्य को महाचार्य (महा आचार्य) का शीर्षक दिया था। राजा तुलुव के तीनों पुत्र व तथाचार्य के प्रियजन उसे स्वामी जी कहते थे। उसने राजा तुलुव के तीनों पुत्रों को राजतंत्र का ज्ञान दिया था।

तेनाली रामा से शत्रुता

कृष्णदेवराय के राजा बनने के बाद तथाचार्य तेनाली नगर गया। वह अपने भक्तो को दर्शन देते पालकी मे जा रहा कि तेनाली रामा किसी सब्ज़ीवाले से झगड़ रहा था। गलती से रामा की के गले पर सर्प आ गया तो रामा ने डरकर वह सर्प फेन्का व सर्प तथाचार्य के गले पर आ गया तो सभी पालकी उठाने वाले लोग भाग गए तो तथाचार्य नीचे कीचड़ मे गिर गया व तथाचार्य ने रामा को बहुत डाँटा। तब रामा व तथाचार्य की शत्रुता हो गई। पर रामा द्वारा एक विषकन्या से बचाने के बाद तथाचार्य उसके मित्र बन गए। बाद में तथाचार्य को यह भी पता चला कि रामा उसके सहपाठी मित्र गरालपति रामैया का पुत्र है।

लोकप्रिय कथाओं में