रोहिलखंड
उत्तर भारत का ऐतिहासिक क्षेत्र रोहिलखंड | |
स्थिति | उत्तर प्रदेश |
राज्य स्थापित: | 447 विक्रमी संवत पूर्व |
भाषा | हिन्दी, संस्कृत |
राजवंश | पांचाल (महाभारत कालीन) रोहिला राजपूत |
ऐतिहासिक राजधानी | बरेली, रामपुर |
पृथक सूबे | रामपुर, बरेली, पीलीभीत, खूतर, शाहजहाँपुर |
रोहिलखंड या रुहेलखण्ड उत्तर प्रदेश के उत्तर-पश्चिम में एक क्षेत्र है।[१][२].
रोहिलखंड गंगा की उपत्यका के ऊपरी २५००० वर्ग कि॰मी॰ क्षेत्र में विस्तृत है। इसके दक्षिण पश्चिमी ओर गंगा है, पश्चिमी ओर उत्तराखंड और नेपाल उत्तर में हैं। पूर्वी ओर अवध है। इसका नाम यहां की एक जनजाति रोहिल्ला के नाम पर पड़ा। महाभारत में इसे रोह शब्द अवरोह धातु से लिया गया है जिसका अर्थ है चढ़ना अवरोही, रोही प्लस ला प्रत्य बराबर रोहिला अर्थात चढ़ाई करने वाला, पश्चिमी उत्तरीय सीमा प्रांत वैसे भी पर्वतीय चढ़ाई युक्त ढलान यक्त ओर द्रहयु के वंशजो द्रोही रोही के वंशजो चन्द्र वन्स के क्षत्रियो का प्रदेश होने के कारण मध्य काल तक पाणिनि कालीन भारत से लेकर रोह के नाम से जाना गया,।
तीब्र प्रवाह *रोह*, की भांति चढ़ाई करने वाला भी रोहिला कहलाया।
रोहिला शब्द भारत के गौरव शाली इतिहास का एक विशेष दर्पण है ! यह वही शब्द है जो वीर क्षत्रिय राजवंशों व इतिहास की वीर गाथाओं से परिचय कराता है।
रोहिला 500 ईसा पूर्व पुराना शब्द है( प्राचीन भारत-पृष्ठ-159, बी एम रस्तोगी)
रोहिला एक संघ था, भारत
के उन वीरो का, भारत की पश्चिमी उत्तरीय सीमा प्रहरियों का जिन्होंने स्वयम के टुकड़े टुकड़े होने तक ओर अंतिम श्वांस लेने तक धूलि के कण के बराबर भी आक्रांताओं को भारत भूमि और कदम नही रखने दिया।
रोहिले राजपूत प्राचीनकाल से ही लोकतंत्र के संवाहक रहे हैं
वंस वाद पीढ़ी वाद से दूर रहे है
- रोहिल खंड राज्य लोकतन्त्रात्मक गणराज्य था
वंशानुक्रम का शासन नहीं था*
- वाचाल( वाछेल)चौहान राठोर ग्र्ह्लोत (,गहलोत) आदि प्रसिद्ध साहसी राज वन्सो का शासन था ये सभी कटेहर इया राजपूत कहलाते थे
सुन्दर बलिष्ठ
योग्य पहलवान(रहेल्ला) को अपना शासक चुनाव ( हाथ उठा कर) से नियुक्त करते थे
इसी लिए इनमे राजपूतो के सभी वंस शाखाये प्रशाखाए उपलब्ध है
रणवीर सिंह सूर्य वंस निकुम्भ शाखा के वशिष्ठ गोत्र में उत्पन्न हुए थे
उनका प्रवर गोत्र काठी था
इस कटेहर रोहिल खंड के राजा के साथ 84 लोहे के कवच धारी अजेय रोहिले सरदार / सामंत थे
उनके सामने दुस्मन नहीं टिक पाते थे
इनमे निम्न गोत्रो के योधा थे
1- लखमीर 2- राठोर/महेच राणा 3- चौहान/ वत्स/ जेवरा 4-वाछेल / वाचाल/ कूपत/ गहलोत
5- मोउसले/ भौंसले/ मौसुल/ मोसले/ मुसले
6- कतेहरिया/ काठी/, कठायत/ कठोड़े 7- रहक वाल/रायकवार /सिकरवार
12 पड़िये/ पड़िया/ बारह रोहिले लोहे के कवच धारी प्रत्येक गोत्रो से थे
सल्तनत काल में दिल्ली के सुल्तान पूर्णतया इन्हें कभी भी नहीं जीत पाए
(वासुदेवशरण अगरवाल)
इतिहास कार
हमारे ही परिवार जो कटेहर रोहिल खंड में रह गए विश्थापित नहीं हुए वे
आज भी राजपूतो की मुख्य धारा में ही हैं कठेरिया राजपूत कहलाते है उनके सम्बन्ध इन्ही राजपूतो से होते है
जी गंगा पार कर विस्थापित हो इधर आगये रोहिला कहलाये
जो रामगंगा पार कर कुमायूं गए
काठी कठेत कठ्यत काठ आयत कहलाये और चाँद वाशी राजा के यहं रहे
महाराजा रणवीर सिंह रोहिल्ला का जन्म ऐसे समय मे हुआ जब राजपूत शक्ति क्षीण हो चुकी थी और मुस्लिम आक्रांता अपनी सल्तनत कायम करने के लिए बचे हुए राजपूतो का दमन करने में लगे थे गौरी के आक्रमण से पृथ्वी राज चौहान का साम्राज्य नष्ट कर गुलाम वन्स का शासन स्थापित हो रहा था राजस्थान में मेवाड़ ओर मध्यदेश (उत्तर प्रदेश), ,में रोहिलखण्ड के कठेहरिया राजपूतो ने दिल्ली के सुल्तान बनने वाले आक्रांताओ के नाक में दम कर रखा था 1206 में सभी राजपूत शक्तियों को एकत्र कर सामन्त वृतपाल रोहिल्ला ने ऐबक इल्तुतमिश आदि को रोहिलखण्ड में घुसने से रोका त्रिलोक सिंह आदि रोहिलखण्ड पर अधिकार जमाने वाले मुस्लिम शासकों को खदेड़ देते थे,इस विपत्ति काल मे रोहिलखण्ड की पावन भूमि पर कार्तिक मास के कृष्ण की प्रथमा तिथि तदनुसार 25 अक्टूबर 1204 इसवी को रामपुर के किले में राजा त्रिलोक सिंह के यहां एक वीर पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम करण हरिद्वार के पण्डित गोकुल चंद पण्डे के पिता ने रणवीर सिंह के नाम से किया ,जब रणवीर सिंह 21 वर्ष के हुवे तो विजयपुर सीकरी के राजा की पुत्री तारा देवी से रणवीर सिंह का विवाह हो गया उसी वर्ष रामपुर के किले में रणवीर सिंह का राजतिलक हुवा ,उन् से दिल्ली के सुल्तान भय खाने लगे किसी ने रोहिलखण्ड पर आक्रमण करने का साहस नहीं था
काठेर रोहिल्लख़ंड राजपूत!
ये कतेहरिया काठी निकुम्भ वन्स के रोहिलखण्ड के राजा थे 1253 में इनके शासन काल मे दिल्ली सल्तनत के इल्तुतमिश के पुत्र एवम सेनापति नासिरुद्दीन महमूद उर्फ चंगेज जो बहाराम वन्स का मुसलमान आक्रांता था दिल्ली दरबार मे कसम लेकर आया कि रोहिलखण्ड पर विजय पाकर ही लौटेगा 30000 की विशाल सेना लेकर उसने रोहिलखण्ड पर हमला किया पीलीभीत ओर रामपुर के बीच मे किसी स्थान पर मुसलमानों को 6000 रोहिले राजपूतो ने घेर लिया तथा भयंकर युद्ध हुआ रोहिले बहादुर थे लोहे के कवचधारी थे नासिरुद्दीन चंगेज की सेना को काट डाला गया बचे हुए मुसलमान भाग खड़े हुए
नासिरुद्दीन ने प्राणदान मांगे
सभी धन दौलत रणवीर सिंह के चरणों मे रख गिड़गिड़ाया
राजा रणवीर सिंह कठोडा ने क्षात्र धर्म रक्षार्थ शरणागत को क्षमा दान दे दिया
परन्तु वह दिल्ली दरबार से कसम लेकर आया था क्या मुह दिखाए यह सोच कर रामपुर के जंगलों में छिप गया और रास्ते खोजने में लगा कि राजा को कैसे पराजित किया जाए
क्योकि कितनी भी मुसलमान सेना दिल्ली से मंगवाता रोहला राजपूत इतने बहादुर थे कि उनके सामने नही टिक पाती उसने छल प्रपंच धोखा करने की सोची
रामपुर के किले के एक दरबारी हरिद्वार निवासी पण्डे गोकुल राम उर्फ गोकुल चंद को लालच दिया और रक्षा बंधन के दिन शस्त्र पूजन के समय निश्शस्त्र रोहिले राजपूतो पर हमला करने का परामर्श दे दिया
चंगेज ने दिल्ली से कुमुद ओर सेना मंगवाई ओर जंगलो में छिपा दी पण्डे ने सफेद ध्वज के साथ चंगेज को राजा से किले का द्वार खोल मिलवाया जबकि राजपूत पण्डे का इंतजार कर रहे थे कि कब आये और पूजा शुरू हो
पण्डे ने तो धोखा कर दिया था राजा ने सफेद ध्वज देख सन्धि प्रस्ताब समझ समर्पण समझ आने का संकेत दिया
मालूम हुआ कि पंडा किले के चारो द्वार खोल कर आया था
निहत्थे राजपूतो पर तीब्रता से मुसलमान सेना चारो तरफ से टूट पड़ी
राजपूतो को शाका कर मरमिटने का आदेश रणवीर सिंह ने दे दिया और मुसलमानों को सबक सिखाने के लिए भिड़गये
थे निहत्थे लड़े बहुत पंरन्तु मारे गए
राजा रणवीर सिंह का बलिदान हुआ
रानी तारावती सभी क्षत्राणियो के साथ ज्वाला पान कर जौहर कर गयी
किले को मुसलमान घेर चुके थे
रणवीर सिंह का भाई सूरत सिंह अपने 338 साथियों के साथ निकल गया और हरियाणा में 1254 में चरखी दादरी आकर प्रवासित हुआ
हरिद्वार पंडो ने रणवीर सिंह की वंशावलि में झूठ लिखा कि उसकी ओलाद बंजारा हो गयी
कितना तुष्टिकरण होता था तब भी इतिहास लेखन में
जबकि रोहिले राजपूतो के राज भाट रायय भीम राज निवासी बड़वा जी का बड़ा तुंगा जिला जयपुर की पोथी में मिला कि सूरत सिंह चरखी दादरी आ बसा था
राजा रणवीर सिंह का यह बलिदान याद रखेगा हिंदुस्तान
एक शौर्य दिवस
रक्षाबंधन एक गोरव गाथा
आज से 763 वर्ष पूर्व दिल्ली के सुल्तानों को धुल चटाने वाले महाराजा रणवीर सिंह रोहिला ने लिखी थीं एक गौरव गाथा रामपुर के किले में हुआ यह शौर्य संग्राम निहत्थे रोहिले राज पूतो पर टूट पड़े थे नासिरुद्दीन के सैनिक शास्त्र विहीन रोहिलो ने बहनों की राखी के सहारे किया शाका और दिया सर्वस्व बलिदान आज सचमुच शौर्य दिवस है राजा रणवीर सिंह को याद कर
यह तो सचमुच एतिहासिक सत्य/ तथ्य है
रोहिला क्षत्रिय वास्तव में
विशुद्ध क्षत्रिय राजवंस है
एक चीते के समान ही जिसकी अपनी अलग पहचान होती है
इतिहास इस बात का साक्षी है
रोहिले क्षत्रियो ने आज तक
कभी भी राष्ट्र व् अपनी क्षत्रिय कोम पर जीते जी आंच नहीं आने दी
800 वर्षो तक आक्रान्ताओ को। रोके रखने में अपना सर्वस्व मिटाया है
विधर्मी का संघार किया है
शाका और * जौहर* किया है
परन्तु अपना धर्म न बदला न छोड़ा।
रोहिला राजवँश का मूल पुरुष है चन्द्र वंसी चक्रवर्ती सम्राट ययाति के तीसरे पुत्र द्रहयु
इसी का अपभ्रंस द्रोह रोह ओर फिर रोहिला हुआ*
रोहिल खंड राज्य लोकतन्त्रात्मक गणराज्य था
वंशानुक्रम का शासन नहीं था*
- वाचाल( वाछेल)चौहान राठोर ग्र्ह्लोत (,गहलोत) आदि प्रसिद्ध साहसी राज वन्सो का शासन था ये सभी कटेहर इया राजपूत कहलाते थे
सुन्दर बलिष्ठ
योग्य पहलवान(रहेल्ला) को अपना शासक चुनाव ( हाथ उठा कर) से नियुक्त करते थे
🤺🤺🤺
अयोध्या में इख (गन्ना) उगाने वाले
इश्क्वाकू /सूर्य का उदय हुआ
और प्रयाग के पास झूंसी में चन्द्र वंस
का उदय हुआ
चक्रवर्ती सम्राट ययाति इसी वंस में हुए
इनके तीसरे पुत्र द्रह्यु के नाम पर द्रह्यु वंस/गंधार वंस चला
द्रह्यु से रोहिलाओ का मूल है
भारत के चन्द्र वंस के चक्रवर्ती सम्राट
ययाति के पुत्र द्रह्यु का प्रदेश ही रूह/ रोह प्रदेश ने नाम से जाना गया
रोह का अर्थ है चढ़ना (पर्वतीय )
यह है भी एक पर्वतीय प्रदेश ही
यह भारत की पश्चिमी उत्तरीय सीमा का प्रदेश था
इस रोह प्रदेश की लोकेशन अब गूगल मेप पर देखे
इसके निवासियों ने सिकंदर को भारत में परवेश करने से रोकने के बाद 400 वर्ष तक आक्रनताओं को रोके रक्खा जब मैदानों से मदद नहीं मिली तो मैदानों की और आना प्रारम्भ कर दिया
कठ गणराज्य
क्षुद्रक गणराज्य
मालव गणराज्य
तक्षक गणराज्य
अश्वक गणराज्य आदि के शासक मुसलमानों से टक्कर लेते हुए मैदानों में आये
गुजरात में कठियावाद
पंचाल में कटेहर राज्यों की स्थापना की
पंजाब से सहारनपुर तक यौद्धे राज्य की स्थापना की
यह क्षत्रीय यहाँ पर
कठेहरिया/, rohile रोहिले कहलाये
(राजपूत/क्षत्रिय वाटिका)
(रोहिले क्षत्रियो का क्रमबद्ध इतिहास)
रोही +ला(प्रत्य)----*रोहिला*
- रोहिला* अर्थात चढ़ने या चढ़ाई करने वाला अर्थात--?
रूह ( उर्दू/ फ़ारसी/ अरबी) + ला --
आत्मा+ ला----?
ला--का अर्थ वाला
What is the difference between
- rohila* &*ruhela*
U
राजा रणवीर सिंह के समय रोहिल खंड की राजधानी रामपुर में थी
1702 से हिन्दू रोहिले राजपूतो की राजधानी बरेली में हुई
महान राजा इन्दर सेन
/इन्दर गिरी जी महाराज थे उन्होंने ही 1761 विक्रमी या 1702 इसवी में रोहिल खंड। की पश्चिमी सीमा पे सहारनपुर में रोहिला किला का निर्माण कराया था🙏🏽
इस कटेहर रोहिल खंड के राजा के साथ 84 लोहे के कवच धारी अजेय रोहिले सरदार / सामंत थे
उनके सामने मुल्ला नहीं टिक पाते थे
इनमे निम्न गोत्रो के योधा थे
1- लखमीर 2- राठोर/महेच राणा 3- चौहान/ वत्स/ जेवरा 4-वाछेल / वाचाल/ कूपत/ गहलोत
5- मोउसले/ भौंसले/ मौसुल/ मोसले/ मुसले
6- कतेहरिया
/ काठी/, कठायत/ कठोड़े 🏇🏼🏇🏼🏇🏼🏇🏼🏇🏼🤺🤺🤺🤺🤺🤝🤝👍🏽
राजपूतो की यह रोहिला खाफ सदैव संघर्ष करती रही और दिल्ली सुल्तान कभी भी 16वी सदी तक पूर्णतया रोहिले राजपूतो को जीत नही पाए
हरीसिंह खड्ग सिंह राव नरसिंह आदि जगत सिंह बर्लदेव बाँसदेव बरेली स्थापना तक रोहिले भारी पड़े और मुल्ला देखते रहे खड़े खड़े
अकबर ने अफगानों के हाथों धोखे से रोहिला राजा को मरवाया ओर अलीमुहम्मद आदि ने रहमत खा रुहेला ने रोहिला राजपूतो से रोहिलखण्ड को छीन लिया और रूहेलखंड कहने लगे उर्दू रूह शब्द है
फिर 18 वी सदी में रोहिले संगठित हुए और 1702 में बरेली को स्वतंत्र रोहिलखण्ड राज्य घोषित किया 1720 तक शासन किया
Refrences--
भारत भूमि और उसके वासी पृष्ठ-230 पंडित जयचंद्र विद्यालंकार
2-दून ज्योति-साप्ताहिक देहरादून 18 फरवरी 1974
पुरुषोत्तम नागेश ओक व डॉक्टर ओमवीर शर्मा हेड ऑफ हिस्ट्री विभाग
3-क्षत्रिय वर्तमान पृष्ठ 97 व 263 ठाकुर अजित सिंह परिहार बालाघाट
4- प्राचीन भारत पृष्ठ -118,159,162 बीएम रस्तोगी इतिहास कार
5 राजतरँगनी पृष्ठ 31-39 कल्हण कृत अनुवादक नीलम अग्रवाल
6-रोहिला क्षत्रिय वन्स भास्कर ,आर आर राजपूत मूरसेन अलीगढ़
7- इतिहास रोहिला राजपूत
डॉक्टर के सी सेन
8 - भारत का इतिहास पृष्ठ 138 डॉक्टर दया प्रकाश
9-भारतीय इतिहास मीमांसा पृष्ठ 44 जय चंद विद्यालंकार
10- भारतीय इतिहास की रूप रेखा द्वितीय भाग पृष्ठ 699 बीएम रस्तोगी
11-सीमा संरक्षण पृष्ठ 21-22 हरिकृष्ण प्रेमी
12 टॉड राजस्थान पृष्ठ 457 परिच्छेद 43 अनुवादक केशव कुमार ठाकुर
13- प्राचीन भारत का इतिहास राजपूत वन्स पृष्ठ 104 व 105कैलाश प्रकाशन लखनऊ 1970 व पृष्ठ 147
14 रोहिला क्षत्रियो का क्रमबद्ध इतिहास लेखक दर्शन लाल रोहिला
15 राजपूत ,/क्षत्रिय वाटिका
राजनीतिन सिंह रावत अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा
16 रिलेशन बिटवीन रोहिला एंड कठहरिया राजपूत निकुम्भ व श्रीनेत वंश
महेश सिंह कठायत नेपाल
जय हिंद जय राजपूताना जय रोहिलखंड देश के नाम से जाना गया है।<ref>
गौरवशाली इतिहास के कुछ स्वर्णाक्षर (रोहिला क्षत्रिय) भारत वर्ष का क्षेत्रफल 42 ,02 ,500 वर्ग किमी था । रोहिला साम्राज्य 25 ,000 वर्ग किमी 10 ,000 वर्गमील में फैला हुआ था । रोहिला, राजपूतो का एक गोत्र , कबीला (परिवार) या परिजन- समूह है जो कठेहर - रोहिलखण्ड के शासक एंव संस्थापक थे |मध्यकालीन भारत में बहुत से राजपूत लडाको को रोहिला की उपाधि से विभूषित किया गया. उनके वंशज आज भी रोहिला परिवारों में पाए जाते हैं । रोहिले- राजपूत प्राचीन काल से ही सीमा- प्रांत, मध्य देश (गंगा- यमुना का दोआब), पंजाब, काश्मीर, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश में शासन करते रहे हैं । जबकि मुस्लिम-रोहिला साम्राज्य अठारहवी शताब्दी में इस्लामिक दबाव के पश्चात् स्थापित हुआ. मुसलमानों ने इसे उर्दू में "रूहेलखण्ड" कहा । 1702 से 1720 ई तक रोहिलखण्ड में रोहिले राजपूतो का शासन था. जिसकी राजधानी बरेली थी । रोहिले राजपूतो के महान शासक "राजा इन्द्रगिरी" ने रोहिलखण्ड की पश्चिमी सीमा पर सहारनपुर में एक किला बनवाया,जिसे "प्राचीन रोहिला किला" कहा जाता है । सन 1801 ई में रोहिलखण्ड को अंग्रेजो ने अपने अधिकार में ले लिया था. हिन्दू रोहिले-राजपुत्रो द्वारा बनवाए गये इस प्राचीन रोहिला किला को 1806 से 1857 के मध्य कारागार में परिवर्तित कर दिया गया था । इसी प्राचीन- रोहिला- किला में आज सहारनपुर की जिला- कारागार है । "सहारन" राजपूतो का एक गोत्र है जो रोहिले राजपूतो में पाया जाता है. यह सूर्य वंश की एक प्रशाखा है जो राजा भरत के पुत्र तक्षक के वंशधरो से प्रचालित हुई थी । फिरोज तुगलक के आक्रमण के समय "थानेसर" (वर्तमान में हरियाणा में स्थित) का राजा "सहारन" ही था । दिल्ली में गुलाम वंश के समय रोहिलखण्ड की राजधानी "रामपुर" में राजा रणवीर सिंह कठेहरिया (काठी कोम, निकुम्भ वंश, सूर्यवंश रावी नदी के काठे से विस्थापित कठगणों के वंशधर) का शासन था । इसी रोहिले राजा रणवीर सिंह ने तुगलक के सेनापति नसीरुद्दीन चंगेज को हराया था. 'खंड' क्षत्रिय राजाओं से सम्बंधित है, जैसे भरतखंड, बुंदेलखंड, विन्धयेलखंड , रोहिलखंड, कुमायुखंड, उत्तराखंड आदि । प्राचीन भारत की केवल दो भाषाएँ संस्कृत व प्राकृत (सरलीकृत संस्कृत) थी । रोहिल प्राकृत और खंड संस्कृत के शब्द हैं जो क्षत्रिय राजाओं के प्रमाण हैं । इस्लामिक नाम है दोलताबाद, कुतुबाबाद, मुरादाबाद, जलालाबाद, हैदराबाद, मुबारकबाद, फैजाबाद, आदि । रोहिले राजपूतो की उपस्तिथि के प्रमाण हैं । योधेय गणराज्य के सिक्के, गुजरात का (1445 वि ) ' का शिलालेख (रोहिला मालदेव के सम्बन्ध में), मध्यप्रदेश में स्थित रोहिलखंड रामपुर में राजा रणवीर सिंह के किले के खंडहर, रानी तारादेवी सती का मंदिर , पीलीभीत में राठौर रोहिलो (महिचा- प्रशाखा) की सतियों के सतियों के मंदिर, सहारनपुर का प्राचीन रोहिला किला, मंडोर का शिलालेख, " बड़ौत में स्तिथ " राजा रणवीर सिंह रोहिला मार्ग "
नगरे नगरे ग्रामै ग्रामै विलसन्तु संस्कृतवाणी । सदने - सदने जन - जन बदने , जयतु चिरं कल्याणी ।। जोधपुर का शिलालेख, प्रतिहार शासक हरीशचंद्र को मिली रोहिल्लाद्व्यंक की उपाधि, कई अन्य राजपूतो के वंशो को प्राप्त उपाधियाँ, 'पृथ्वीराज रासो', आल्हाखण्ड - काव्यव, सभी राजपूत वंशो में पाए जाने वाले प्रमुख गोत्र । अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा भारत द्वारा प्रकाशित पावन ग्रन्थ क्षत्रिय वंशाणर्व (रोहिले क्षत्रियों का राज्य रोहिलखण्ड का पूर्व नाम पांचाल व मध्यप्रदेश), वर्तमान में अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा से अखिल भारतीय रो. क्ष. वि. परिषद को संबद्धता प्राप्त होना, वर्तमान में भी रोहिलखण्ड (संस्कृत भाषा में) क्षेत्र का नाम यथावत बने रहना, अंग्रेजो द्वारा भी उत्तर रेलवे को "रोहिलखण्ड - रेलवे" का नाम देना जो बरेली से देहरादून तक सहारनपुर होते हुए जाती थी, वर्तमान में लाखो की संख्या में पाए जाने वाले रोहिला-राजपूत, रोहिले-राजपूतों के सम्पूर्ण भारत में फैले हुए कई अन्य संगठन अखिल भारतीय स्तर पर 'राजपूत रत्न' रोहिला शिरोमणि डा. कर्णवीर सिंह द्वारा संगठित एक अखिल भारतीय रोहिला क्षत्रिय विकास परिषद (सम्बद्ध अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा) पंजीकरण संख्या - 545, आदि। 12. पानीपत की तीसरी लड़ाई (रोहिला वार) में रोहिले राजपूत- राजा गंगासहाय राठौर (महेचा) के नेतृत्व में मराठों की ओर से अफगान आक्रान्ता अहमदशाह अब्दाली व रोहिला पठान नजीबदौला के विरुद्ध लड़े व वीरगति पाई । इस मराठा युद्ध में लगभग एक हजार चार सौ रोहिले राजपूत वीरगति को प्राप्त हुए । (1761-1774 ई .) (इतिहास -रोहिला-राजपूत) 13. प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 में भी रोहिले राजपूतों ने अपना योगदान दिया, ग्वालियर के किले में रानी लक्ष्मीबाई को हजारों की संख्या में रोहिले राजपूत मिले, इस महायज्ञ में स्त्री पुरुष सभी ने अपने गहने धन आदि एकत्र कर झाँसी की रानी के साथ अंग्रेजो के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए सम्राट बहादुरशाह- जफर तक पहुँचाए । अंग्रेजों ने ढूँढ-ढूँढ कर उन्हें काट डाला जिससे रोहिले राजपूतों ने अज्ञातवास की शरण ली। 14. राजपूतों की हार के प्रमुख कारण थे हाथियों का प्रयोग, सामंत प्रणाली व आपसी मतभेद, ऊँचे व भागीदार कुल का भेदभाव (छोटे व बड़े की भावना) आदि। 15. सम्वत 825 में बप्पा रावल चित्तौड़ से विधर्मियों को खदेड़ता हुआ ईरान तक गया। बप्पा रावल से समर सिंह तक 400 वर्ष होते हैं, गह्लौतों का ही शासन रहा। इनकी 24 शाखाएँ हैं। जिनके 16 गोत्र (बप्पा रावल के वंशधर) रोहिले राजपूतों में पाए जाते हैं। 16. चितौड़ के राणा समर सिंह (1193 ई.) की रानी पटना की राजकुमारी थी इसने 9 राजा, 1 रावत और कुछ रोहिले साथ लेकर मौ. गोरी के गुलाम कुतुबद्दीन का आक्रमण रोका और उसे ऐसी पराजय दी कि कभी उसने चितौड़ की ओर नही देखा। 17. रोहिला शब्द क्षेत्रजनित, गुणजनित व 'मूल पुरुष' नाम-जनित है। यह गोत्र जाटों में भी रूहेला, रोहेला, रूलिया, रूहेल , रूहिल, रूहिलान नामों से पाया जाता है। 18. रूहेला गोत्र जाटों में राजस्थान व उ. प्र. में पाया जाता है। रोहेला गोत्र के जाट जयपुर में बजरंग बिहार ओर ईनकम टैक्स कालोनी टौंक रोड में विद्यमान है। झुनझुन, सीकर, चुरू, अलवर, बाडमेर में भी रोहिला गोत्र के जाट विद्यमान हैं । उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में रोहेला गोत्र के जाटों के बारह गाँव हैं। महाराष्ट्र में रूहिलान गोत्र के जाट वर्धा में केसर व खेड़ा गाँव में विद्यमान हैं। 19. मुगल सम्राट अकबर ने भी राजपूत राजाओं को विजय प्राप्त करने के पश्चात् रोहिला-उपाधि से विभूषित किया था, जैसे राव, रावत, महारावल, राणा, महाराणा, रोहिल्ला, रहकवाल आदि। 20. "रोहिला-राजपूत" समाज , क्षत्रियों का वह परिवार है जो सरल ह्रदयी, परिश्रमी,राष्ट्रप्रेमी,स्वधर्मपरायण, स्वाभिमानी व वर्तमान में अधिकांश अज्ञातवास के कारण साधनविहीन है। 40 प्रतिशत कृषि कार्य से,30 प्रतिशत श्रम के सहारे व 30 प्रतिशत व्यापार व लघु उद्योगों के सहारे जीवन यापन कर रहे हैं। इनके पूर्वजो ने हजारों वर्षों तक अपनी आन, मान, मर्यादा की रक्षा के लिए बलिदान दिए हैं और अनेको आक्रान्ताओं को रोके रखने में अपना सर्वस्व मिटाया है । गणराज्य व लोकतंत्रात्मक व्यवस्था को सजीव बनाये रखने की भावना के कारण वंश परंपरा के विरुद्ध रहे, करद राज्यों में भी स्वतंत्रता बनाये रखी । कठेहर रोहिलखण्ड की स्थापना से लेकर सल्तनत काल की उथल पुथल, मार काट , दमन चक्र तक लगभग आठ सौ वर्ष के शासन काल के पश्चात् 1857 के ग़दर के समय तक रोहिले राजपूतों ने राष्ट्रहित में बलिदान दिये हैं। क्रूर काल के झंझावालों से संघर्ष करते हुए क्षत्रियों का यह 'रोहिला परिवार' बिखर गया है, इस समाज की पहचान के लिए भी आज स्पष्टीकरण देना पड़ता है। कैसा दुर्भाग्य है? यह क्षत्रिय वर्ग का। जो अपनी पहचान को भी टटोलना पड़ रहा है। परन्तु समय के चक्र में सब कुछ सुरक्षित है। इतिहास के दर्पण में थिरकते चित्र, बोलते हैं, अतीत झाँकता है, सच सोचता है कि उसके होने के प्रमाण धुंधले-धुंधले से क्यों हैं? हे- क्षत्रिय तुम धन्य हो, पहचानो अपने प्रतिबिम्बों को' - "क्षत्रिय एकता का बिगुल फूँक सब धुंधला धुंधला छंटने दो। हो अखंड भारत के राजपुत्र खण्ड खण्ड में न सबको बंटने दो ।।" 21. रोहिलखण्ड से विस्थापित इन रोहिला परिवारों में राजपूत परम्परा के कुछ प्रमुख गोत्र इस प्रकार पाए जाते हैं :-
रोहिला, रोहित, रोहिल, रावल, द्रोहिया, रल्हन, रूहिलान, रौतेला , रावत यौधेय, योतिक, जोहिया, झोझे, पेशावरी पुण्डीर, पांडला, पंढेर, पुन्ड़ेहार, पुंढीर, पुंडाया चौहान, जैवर, जौडा, चाहल, चावड़ा, खींची, गोगद, गदाइया, सनावर, क्लानियां, चिंगारा, चाहड बालसमंद, चोहेल, चेहलान, बालदा, बछ्स (वत्स), बछेर, चयद, झझोड, चौपट, खुम्ब, जांघरा, जंगारा, झांझड निकुम्भ, कठेहरिया, कठौरा, कठैत, कलुठान, कठपाल, कठेडिया, कठड, काठी, कठ, पालवार राठौर, महेचा, महेचराना, रतनौता, बंसूठ जोली, जोलिए, बांकटे, बाटूदा, थाथी, कपोलिया, खोखर, अखनौरिया ,लोहमढ़े, मसानिया बुन्देला, उमट, ऊमटवाल भारतवंशी, भारती, गनान नाभावंशी,बटेरिया, बटवाल, बरमटिया परमार, जावडा, लखमरा, मूसला, मौसिल, भौंसले, बसूक, जंदडा, पछाड़, पंवारखा, ढेड, मौन तोमर, तंवर, मुदगल, देहलीवाल, किशनलाल, सानयाल, सैन, सनाढय गहलौत, कूपट, पछाड़, थापा, ग्रेवाल, कंकोटक, गोद्देय, पापडा, नथैड़ा, नैपाली, लाठिवाल, पानिशप, पिसोण्ड, चिरडवाल, नवल, चरखवाल, साम्भा, पातलेय, पातलीय, छन्द (चंड), क्षुद्रक,(छिन्ड, इन्छड़, नौछड़क), रज्जडवाल, बोहरा, जसावत, गौर, मलक, मलिक, कोकचे, काक कछवाहा, कुशवाहा, कोकच्छ, ततवाल, बलद, मछेर सिसौदिया, भरोलिया, बरनवाल, बरनपाल, बहारा
खुमाहड, अवन्ट, ऊँटवाल
सिकरवार, रहकवाल, रायकवार, ममड, गोदे सोलंकी, गिलानिया, भुन, बुन, बघेला, ऊन, (उनयारिया) बडगूजर, सिकरवार, ममड़ा, पुडिया कश्यप, काशब, रावल, रहकवाल यदु, मेव, छिकारा, तैतवाल, भैनिवाल, उन्हड़, भाटटी बनाफरे, जादो, बागड़ी, सिन्धु, कालड़ा, सारन, छुरियापेड, लखमेरिया, चराड, जाखड़, सेरावत, देसवाल, पूडिया प्रमुख रोहिला क्षत्रिय शासक अंगार सैन - गांधार (वैदिक काल) अश्वकरण - ईसा पूर्व 326 (मश्कावती दुर्ग) अजयराव - स्यालकोट (सौकंल दुर्ग) ईसा पूर्व 326 प्रचेता - मलेच्छ संहारक शाशिगुप्त - साइरस के समकालीन सुभाग सैन - मौर्य साम्राज्य के समकालीन राजाराम शाह - 929 वि. रामपुर रोहिलखण्ड बीजराज - रोहिलखण्ड करण चन्द्र - रोहिलखण्ड विग्रह राज - रोहिलखण्ड - गंगापार कर स्रुघ्न जनपद (सुगनापुर) यमुना तक विस्तार दसवीं शताब्दी में सरसावा में किले का निर्माण पश्चिमी सीमा पर, यमुना द्वारा ध्वस्त टीले के रूप में नकुड़ रोड पर देखा जा सकता है। सावन्त सिंह - रोहिलखण्ड जगमाल - रोहिलखण्ड धिंगतराव - रोहिलखण्ड गोंकुल सिंह - रोहिलखण्ड महासहाय - रोहिलखण्ड त्रिलोक चन्द - रोहिलखण्ड रणवीर सिंह - रोहिलखण्ड सुन्दर पाल - रोहिलखण्ड नौरंग देव - रोहिलखण्ड सूरत सिंह - रोहिलखण्ड हंसकरण रहकवाल - पृथ्वीराज के सेनापति मिथुन देव रायकवार - ईसम सिंह पुण्डीर के मित्र थाना भवन शासक सहकरण, विजयराव - उपरोक्त राजा हतरा - हिसार जगत राय - बरेली मुकंदराज - बरेली 1567 ई. बुधपाल - बदायुं महीचंद राठौर - बदायुं बांसदेव - बरेली बरलदेव - बरेली राजसिंह - बरेली परमादित्य - बरेली न्यादरचन्द - बरेली राजा सहारन - थानेश्वर प्रताप राव खींची (चौहान वंश) - गागरोन राणा लक्ष्य सिंह - सीकरी रोहिला मालदेव - गुजरात जबर सिंह - सोनीपत रामदयाल महेचराना - क्लामथ गंगसहाय - महेचराना - क्लामथ 1761 ई. राणा प्रताप सिंह - कौराली (गंगोह) 1095 ई. नानक चन्द - अल्मोड़ा राजा पूरणचन्द - बुंदेलखंड राजा हंस ध्वज - हिसार व राजा हरचंद राजा बसंतपाल - रोहिलखण्ड व्रतुसरदार, सामंत वृतपाल 1193 ई. महान सिंह बडगूजर - बागपत 1184 ई. राजा यशकरण - अंधली गुणाचन्द - जयकरण - चरखी - दादरी राजा मोहनपाल देव - करोली राजारूप सैन - रोपड़ राजा महपाल पंवार - जीन्द राजा परपदेड पुंडीर - लाहौर राजा लखीराव - स्यालकोट राजा जाजा जी तोमर - दिल्ली खड़ग सिंह - रोहिलखण्ड लौदी के समकालीन राजा हरि सिंह - खिज्रखां के दमन का शिकार हुआ - कुमायुं की पहाड़ियों में अज्ञातवास की शरण ली राजा इन्द्रगिरी (रोहिलखण्ड) (इन्द्रसेन) - सहारनपुर में प्राचीन रोहिला किला बनवाया । रोहिला क्षत्रिय वंश भास्कर लेखक आर. आर. राजपूत मुरसेन अलीगढ से प्रस्तुत राजा बुद्ध देव रोहिला - 1787 ई., सिंधिया व जयपुर के कछवाहो के खेड़ा व तुंगा के मैदान में हुए युद्ध का प्रमुख पात्र । (राय कुँवर देवेन्द्र सिंह जी राजभाट, तुंगा (राजस्थान)
रोहिल्ला उपाधि - शूरवीर, अदम्य - साहसी विशेष युद्ध कला में प्रवीण, उच्च कुलीन सेनानायको, और सामन्तों को उनके गुणों के अनुरूप क्षत्रिय वीरों को तदर्थ उपाधि से विभूषित किया जाता था - जैसे - रावत - महारावत, राणा, महाराणा, ठाकुर, नेगी, रावल, रहकवाल, रोहिल्ला, समरलछन्द, लखमीर,(एक लाख का नायक) आदि। इसी आधार पर उनके वंशज भी आजतक राजपूतों के सभी गोत्रों में पाए जाते हैं। "वभूव रोहिल्लद्व्यड्कों वेद शास्त्रार्थ पारग: । द्विज: श्री हरि चन्द्राख्य प्रजापति समो गुरू : ।।2।। ( बाउक का जोधपुर लेख ) - सन 837 ई. चैत्र सुदि पंचमी - हिंदी अर्थ - "वेद शास्त्र में पारंगत रोहिल्लाद्धि उपाधिधारी एक हरिश्चन्द्र नाम का ब्राह्मण था" जो प्रजापति के समान था हुआ ।।6।। ( गुज्जर गौरव मासिक पत्रिका - अंक 10, वर्ष ।।माह जौलाई 1991 पृष्ठ - 13) (राजपुताने का इतिहास पृष्ठ - 147) (इतिहास रोहिला - राजपूत पृष्ठ - 23) (प्राचीन भारत का इतिहास, राजपूत वंश, - कैलाश - प्रकाशन लखनऊ सन 1970 ई. पृष्ठ - 104 -105 - ) रोहिल्लद्व्यड्क रोहिल्लद्धि - अंक वाला या उपाधि वाला । सर्वप्रथम प्रतिहार शासक द्विज हरिश्चन्द्र को रोहिल्लद्धि उपाधि प्राप्त हुई । बाउक,प्रतिहार शासक विप्र हरिश्चन्द्र के पुत्र कवक और श्रीमति पदमनी का पुत्र था वह बड़ा पराक्रमी और नरसिंह वीर था। प्रतिहार एक पद है, किसी विशेष वर्ण का सूचक नही है। विप्र हरिश्चन्द्र प्रतिहार अपने बाहुबल से मांडौर दुर्ग की रक्षा करने वाला था, अदम्य साहस व अन्य किसी विशेष रोहिला शासक के प्रभावनुरूप ही रोहिल्लद्व्यड्क उपाधि को किसी आधार के बिना कोई भी व्यक्ति अपने नाम के साथ सम्बन्ध करने का वैधानिक रूप में अधिकारी नही हो सकता। उपरोक्त से स्पष्ट है कि बहुत प्राचीन काल से ही गुणकर्म के आधार पर क्षत्रिय उपाधि "रोहिल्ला" प्रयुक्त । प्रदत्त करने की वैधानिक व्यवस्था थी। जिसे हिन्दुआसूर्य - महाराजा पृथ्वीराज चौहान ने भी यथावत रखा। पृथ्वीराज चौहान की सेना में एक सौ रोहिल्ला - राजपूत सेना नायक थे । "पृथ्वीराज रासौ" - चहूँप्रान, राठवर, जाति पुण्डीर गुहिल्ला । बडगूजर पामार, कुरभ, जागरा, रोहिल्ला ।। इस कवित्त से स्पष्ट है । कि - प्राचीन - काल में रोहिला- क्षत्रियों का स्थान बहुत ऊँचा था। रोहिला रोहिल्ल आदि शब्द राजपुत्रों अथवा क्षत्रियों के ही द्योतक थे । इस कवित्त के प्रमाणिकता "आइने अकबरी", 'सुरजन चरिता' भी सिद्ध करते हैं । युद्ध में कमानी की तरह (रोह चढ़ाई करके) शत्रु सेना को छिन्न - भिन्न करने वाले को रहकवाल, रावल, रोहिल्ला, महाभट्ट कहा गया है। महाराज पृथ्वीराज चौहान की सेना में पांच गोत्रों के रावल थे - रावल - रोहिला रावल - सिन्धु रावल - घिलौत (गहलौत) रावल - काशव या कश्यप रावल - बलदया बल्द मुग़ल बादशाह अकबर ने भी बहादुरी की रोहिल्ला उपाधि को यथावत बनाए रखा जब अकबर की सेना दूसरे राज्यों को जीत कर आती थी तो अकबर अपनी सेना के सरदारों को,बहादुर जवानों बहादुरी के पदक (ख़िताब,उपाधि) देता था। एक बार जब महाराणा मान सिंह काबुल जीतकर वापिस आए तो अकबर ने उसके बाइस राजपूत सरदारों को यह ख़िताब दी (उपाधि से सम्मानित किया) बाई तेरा हर निरकाला रावत को - रावल जी चौमकिंग सरनाथा को - रावल झंड्कारा कांड्कड को - रोहिल्ला रावत मन्चारा - कांड्कड काम करन, निरकादास रावत को रावराज और रूहेलाल को रोहिला
गौरवशाली इतिहास के कुछ स्वर्णाक्षर (रोहिला क्षत्रिय) भारत वर्ष का क्षेत्रफल 42 ,02 ,500 वर्ग किमी था । रोहिला साम्राज्य 25 ,000 वर्ग किमी 10 ,000 वर्गमील में फैला हुआ था । रोहिला, राजपूतो का एक गोत्र , कबीला (परिवार) या परिजन- समूह है जो कठेहर - रोहिलखण्ड के शासक एंव संस्थापक थे |मध्यकालीन भारत में बहुत से राजपूत लडाको को रोहिला की उपाधि से विभूषित किया गया. उनके वंशज आज भी रोहिला परिवारों में पाए जाते हैं । रोहिले- राजपूत प्राचीन काल से ही सीमा- प्रांत, मध्य देश (गंगा- यमुना का दोआब), पंजाब, काश्मीर, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश में शासन करते रहे हैं । जबकि मुस्लिम-रोहिला साम्राज्य अठारहवी शताब्दी में इस्लामिक दबाव के पश्चात् स्थापित हुआ. मुसलमानों ने इसे उर्दू में "रूहेलखण्ड" कहा । 1702 से 1720 ई तक रोहिलखण्ड में रोहिले राजपूतो का शासन था. जिसकी राजधानी बरेली थी । रोहिले राजपूतो के महान शासक "राजा इन्द्रगिरी" ने रोहिलखण्ड की पश्चिमी सीमा पर सहारनपुर में एक किला बनवाया,जिसे "प्राचीन रोहिला किला" कहा जाता है । सन 1801 ई में रोहिलखण्ड को अंग्रेजो ने अपने अधिकार में ले लिया था. हिन्दू रोहिले-राजपुत्रो द्वारा बनवाए गये इस प्राचीन रोहिला किला को 1806 से 1857 के मध्य कारागार में परिवर्तित कर दिया गया था । इसी प्राचीन- रोहिला- किला में आज सहारनपुर की जिला- कारागार है । "सहारन" राजपूतो का एक गोत्र है जो रोहिले राजपूतो में पाया जाता है. यह सूर्य वंश की एक प्रशाखा है जो राजा भरत के पुत्र तक्षक के वंशधरो से प्रचालित हुई थी । फिरोज तुगलक के आक्रमण के समय "थानेसर" (वर्तमान में हरियाणा में स्थित) का राजा "सहारन" ही था । दिल्ली में गुलाम वंश के समय रोहिलखण्ड की राजधानी "रामपुर" में राजा रणवीर सिंह कठेहरिया (काठी कोम, निकुम्भ वंश, सूर्यवंश रावी नदी के काठे से विस्थापित कठगणों के वंशधर) का शासन था । इसी रोहिले राजा रणवीर सिंह ने तुगलक के सेनापति नसीरुद्दीन चंगेज को हराया था. 'खंड' क्षत्रिय राजाओं से सम्बंधित है, जैसे भरतखंड, बुंदेलखंड, विन्धयेलखंड , रोहिलखंड, कुमायुखंड, उत्तराखंड आदि । प्राचीन भारत की केवल दो भाषाएँ संस्कृत व प्राकृत (सरलीकृत संस्कृत) थी । रोहिल प्राकृत और खंड संस्कृत के शब्द हैं जो क्षत्रिय राजाओं के प्रमाण हैं । इस्लामिक नाम है दोलताबाद, कुतुबाबाद, मुरादाबाद, जलालाबाद, हैदराबाद, मुबारकबाद, फैजाबाद, आदि । रोहिले राजपूतो की उपस्तिथि के प्रमाण हैं । योधेय गणराज्य के सिक्के, गुजरात का (1445 वि ) ' का शिलालेख (रोहिला मालदेव के सम्बन्ध में), मध्यप्रदेश में स्थित रोहिलखंड रामपुर में राजा रणवीर सिंह के किले के खंडहर, रानी तारादेवी सती का मंदिर , पीलीभीत में राठौर रोहिलो (महिचा- प्रशाखा) की सतियों के सतियों के मंदिर, सहारनपुर का प्राचीन रोहिला किला, मंडोर का शिलालेख, " बड़ौत में स्तिथ " राजा रणवीर सिंह रोहिला मार्ग "
नगरे नगरे ग्रामै ग्रामै विलसन्तु संस्कृतवाणी । सदने - सदने जन - जन बदने , जयतु चिरं कल्याणी ।। जोधपुर का शिलालेख, प्रतिहार शासक हरीशचंद्र को मिली रोहिल्लाद्व्यंक की उपाधि, कई अन्य राजपूतो के वंशो को प्राप्त उपाधियाँ, 'पृथ्वीराज रासो', आल्हाखण्ड - काव्यव, सभी राजपूत वंशो में पाए जाने वाले प्रमुख गोत्र । अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा भारत द्वारा प्रकाशित पावन ग्रन्थ क्षत्रिय वंशाणर्व (रोहिले क्षत्रियों का राज्य रोहिलखण्ड का पूर्व नाम पांचाल व मध्यप्रदेश), वर्तमान में अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा से अखिल भारतीय रो. क्ष. वि. परिषद को संबद्धता प्राप्त होना, वर्तमान में भी रोहिलखण्ड (संस्कृत भाषा में) क्षेत्र का नाम यथावत बने रहना, अंग्रेजो द्वारा भी उत्तर रेलवे को "रोहिलखण्ड - रेलवे" का नाम देना जो बरेली से देहरादून तक सहारनपुर होते हुए जाती थी, वर्तमान में लाखो की संख्या में पाए जाने वाले रोहिला-राजपूत, रोहिले-राजपूतों के सम्पूर्ण भारत में फैले हुए कई अन्य संगठन अखिल भारतीय स्तर पर 'राजपूत रत्न' रोहिला शिरोमणि डा. कर्णवीर सिंह द्वारा संगठित एक अखिल भारतीय रोहिला क्षत्रिय विकास परिषद (सम्बद्ध अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा) पंजीकरण संख्या - 545, आदि। 12. पानीपत की तीसरी लड़ाई (रोहिला वार) में रोहिले राजपूत- राजा गंगासहाय राठौर (महेचा) के नेतृत्व में मराठों की ओर से अफगान आक्रान्ता अहमदशाह अब्दाली व रोहिला पठान नजीबदौला के विरुद्ध लड़े व वीरगति पाई । इस मराठा युद्ध में लगभग एक हजार चार सौ रोहिले राजपूत वीरगति को प्राप्त हुए । (1761-1774 ई .) (इतिहास -रोहिला-राजपूत) 13. प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 में भी रोहिले राजपूतों ने अपना योगदान दिया, ग्वालियर के किले में रानी लक्ष्मीबाई को हजारों की संख्या में रोहिले राजपूत मिले, इस महायज्ञ में स्त्री पुरुष सभी ने अपने गहने धन आदि एकत्र कर झाँसी की रानी के साथ अंग्रेजो के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए सम्राट बहादुरशाह- जफर तक पहुँचाए । अंग्रेजों ने ढूँढ-ढूँढ कर उन्हें काट डाला जिससे रोहिले राजपूतों ने अज्ञातवास की शरण ली। 14. राजपूतों की हार के प्रमुख कारण थे हाथियों का प्रयोग, सामंत प्रणाली व आपसी मतभेद, ऊँचे व भागीदार कुल का भेदभाव (छोटे व बड़े की भावना) आदि। 15. सम्वत 825 में बप्पा रावल चित्तौड़ से विधर्मियों को खदेड़ता हुआ ईरान तक गया। बप्पा रावल से समर सिंह तक 400 वर्ष होते हैं, गह्लौतों का ही शासन रहा। इनकी 24 शाखाएँ हैं। जिनके 16 गोत्र (बप्पा रावल के वंशधर) रोहिले राजपूतों में पाए जाते हैं। 16. चितौड़ के राणा समर सिंह (1193 ई.) की रानी पटना की राजकुमारी थी इसने 9 राजा, 1 रावत और कुछ रोहिले साथ लेकर मौ. गोरी के गुलाम कुतुबद्दीन का आक्रमण रोका और उसे ऐसी पराजय दी कि कभी उसने चितौड़ की ओर नही देखा। 17. रोहिला शब्द क्षेत्रजनित, गुणजनित व 'मूल पुरुष' नाम-जनित है। यह गोत्र जाटों में भी रूहेला, रोहेला, रूलिया, रूहेल , रूहिल, रूहिलान नामों से पाया जाता है। 18. रूहेला गोत्र जाटों में राजस्थान व उ. प्र. में पाया जाता है। रोहेला गोत्र के जाट जयपुर में बजरंग बिहार ओर ईनकम टैक्स कालोनी टौंक रोड में विद्यमान है। झुनझुन, सीकर, चुरू, अलवर, बाडमेर में भी रोहिला गोत्र के जाट विद्यमान हैं । उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में रोहेला गोत्र के जाटों के बारह गाँव हैं। महाराष्ट्र में रूहिलान गोत्र के जाट वर्धा में केसर व खेड़ा गाँव में विद्यमान हैं। 19. मुगल सम्राट अकबर ने भी राजपूत राजाओं को विजय प्राप्त करने के पश्चात् रोहिला-उपाधि से विभूषित किया था, जैसे राव, रावत, महारावल, राणा, महाराणा, रोहिल्ला, रहकवाल आदि। 20. "रोहिला-राजपूत" समाज , क्षत्रियों का वह परिवार है जो सरल ह्रदयी, परिश्रमी,राष्ट्रप्रेमी,स्वधर्मपरायण, स्वाभिमानी व वर्तमान में अधिकांश अज्ञातवास के कारण साधनविहीन है। 40 प्रतिशत कृषि कार्य से,30 प्रतिशत श्रम के सहारे व 30 प्रतिशत व्यापार व लघु उद्योगों के सहारे जीवन यापन कर रहे हैं। इनके पूर्वजो ने हजारों वर्षों तक अपनी आन, मान, मर्यादा की रक्षा के लिए बलिदान दिए हैं और अनेको आक्रान्ताओं को रोके रखने में अपना सर्वस्व मिटाया है । गणराज्य व लोकतंत्रात्मक व्यवस्था को सजीव बनाये रखने की भावना के कारण वंश परंपरा के विरुद्ध रहे, करद राज्यों में भी स्वतंत्रता बनाये रखी । कठेहर रोहिलखण्ड की स्थापना से लेकर सल्तनत काल की उथल पुथल, मार काट , दमन चक्र तक लगभग आठ सौ वर्ष के शासन काल के पश्चात् 1857 के ग़दर के समय तक रोहिले राजपूतों ने राष्ट्रहित में बलिदान दिये हैं। क्रूर काल के झंझावालों से संघर्ष करते हुए क्षत्रियों का यह 'रोहिला परिवार' बिखर गया है, इस समाज की पहचान के लिए भी आज स्पष्टीकरण देना पड़ता है। कैसा दुर्भाग्य है? यह क्षत्रिय वर्ग का। जो अपनी पहचान को भी टटोलना पड़ रहा है। परन्तु समय के चक्र में सब कुछ सुरक्षित है। इतिहास के दर्पण में थिरकते चित्र, बोलते हैं, अतीत झाँकता है, सच सोचता है कि उसके होने के प्रमाण धुंधले-धुंधले से क्यों हैं? हे- क्षत्रिय तुम धन्य हो, पहचानो अपने प्रतिबिम्बों को' - "क्षत्रिय एकता का बिगुल फूँक सब धुंधला धुंधला छंटने दो। हो अखंड भारत के राजपुत्र खण्ड खण्ड में न सबको बंटने दो ।।" 21. रोहिलखण्ड से विस्थापित इन रोहिला परिवारों में राजपूत परम्परा के कुछ प्रमुख गोत्र इस प्रकार पाए जाते हैं :-
रोहिला, रोहित, रोहिल, रावल, द्रोहिया, रल्हन, रूहिलान, रौतेला , रावत यौधेय, योतिक, जोहिया, झोझे, पेशावरी पुण्डीर, पांडला, पंढेर, पुन्ड़ेहार, पुंढीर, पुंडाया चौहान, जैवर, जौडा, चाहल, चावड़ा, खींची, गोगद, गदाइया, सनावर, क्लानियां, चिंगारा, चाहड बालसमंद, चोहेल, चेहलान, बालदा, बछ्स (वत्स), बछेर, चयद, झझोड, चौपट, खुम्ब, जांघरा, जंगारा, झांझड निकुम्भ, कठेहरिया, कठौरा, कठैत, कलुठान, कठपाल, कठेडिया, कठड, काठी, कठ, पालवार राठौर, महेचा, महेचराना, रतनौता, बंसूठ जोली, जोलिए, बांकटे, बाटूदा, थाथी, कपोलिया, खोखर, अखनौरिया ,लोहमढ़े, मसानिया बुन्देला, उमट, ऊमटवाल भारतवंशी, भारती, गनान नाभावंशी,बटेरिया, बटवाल, बरमटिया परमार, जावडा, लखमरा, मूसला, मौसिल, भौंसले, बसूक, जंदडा, पछाड़, पंवारखा, ढेड, मौन तोमर, तंवर, मुदगल, देहलीवाल, किशनलाल, सानयाल, सैन, सनाढय गहलौत, कूपट, पछाड़, थापा, ग्रेवाल, कंकोटक, गोद्देय, पापडा, नथैड़ा, नैपाली, लाठिवाल, पानिशप, पिसोण्ड, चिरडवाल, नवल, चरखवाल, साम्भा, पातलेय, पातलीय, छन्द (चंड), क्षुद्रक,(छिन्ड, इन्छड़, नौछड़क), रज्जडवाल, बोहरा, जसावत, गौर, मलक, मलिक, कोकचे, काक कछवाहा, कुशवाहा, कोकच्छ, ततवाल, बलद, मछेर सिसौदिया, भरोलिया, बरनवाल, बरनपाल, बहारा
खुमाहड, अवन्ट, ऊँटवाल
सिकरवार, रहकवाल, रायकवार, ममड, गोदे सोलंकी, गिलानिया, भुन, बुन, बघेला, ऊन, (उनयारिया) बडगूजर, सिकरवार, ममड़ा, पुडिया कश्यप, काशब, रावल, रहकवाल यदु, मेव, छिकारा, तैतवाल, भैनिवाल, उन्हड़, भाटटी बनाफरे, जादो, बागड़ी, सिन्धु, कालड़ा, सारन, छुरियापेड, लखमेरिया, चराड, जाखड़, सेरावत, देसवाल, पूडिया प्रमुख रोहिला क्षत्रिय शासक अंगार सैन - गांधार (वैदिक काल) अश्वकरण - ईसा पूर्व 326 (मश्कावती दुर्ग) अजयराव - स्यालकोट (सौकंल दुर्ग) ईसा पूर्व 326 प्रचेता - मलेच्छ संहारक शाशिगुप्त - साइरस के समकालीन सुभाग सैन - मौर्य साम्राज्य के समकालीन राजाराम शाह - 929 वि. रामपुर रोहिलखण्ड बीजराज - रोहिलखण्ड करण चन्द्र - रोहिलखण्ड विग्रह राज - रोहिलखण्ड - गंगापार कर स्रुघ्न जनपद (सुगनापुर) यमुना तक विस्तार दसवीं शताब्दी में सरसावा में किले का निर्माण पश्चिमी सीमा पर, यमुना द्वारा ध्वस्त टीले के रूप में नकुड़ रोड पर देखा जा सकता है। सावन्त सिंह - रोहिलखण्ड जगमाल - रोहिलखण्ड धिंगतराव - रोहिलखण्ड गोंकुल सिंह - रोहिलखण्ड महासहाय - रोहिलखण्ड त्रिलोक चन्द - रोहिलखण्ड रणवीर सिंह - रोहिलखण्ड सुन्दर पाल - रोहिलखण्ड नौरंग देव - रोहिलखण्ड सूरत सिंह - रोहिलखण्ड हंसकरण रहकवाल - पृथ्वीराज के सेनापति मिथुन देव रायकवार - ईसम सिंह पुण्डीर के मित्र थाना भवन शासक सहकरण, विजयराव - उपरोक्त राजा हतरा - हिसार जगत राय - बरेली मुकंदराज - बरेली 1567 ई. बुधपाल - बदायुं महीचंद राठौर - बदायुं बांसदेव - बरेली बरलदेव - बरेली राजसिंह - बरेली परमादित्य - बरेली न्यादरचन्द - बरेली राजा सहारन - थानेश्वर प्रताप राव खींची (चौहान वंश) - गागरोन राणा लक्ष्य सिंह - सीकरी रोहिला मालदेव - गुजरात जबर सिंह - सोनीपत रामदयाल महेचराना - क्लामथ गंगसहाय - महेचराना - क्लामथ 1761 ई. राणा प्रताप सिंह - कौराली (गंगोह) 1095 ई. नानक चन्द - अल्मोड़ा राजा पूरणचन्द - बुंदेलखंड राजा हंस ध्वज - हिसार व राजा हरचंद राजा बसंतपाल - रोहिलखण्ड व्रतुसरदार, सामंत वृतपाल 1193 ई. महान सिंह बडगूजर - बागपत 1184 ई. राजा यशकरण - अंधली गुणाचन्द - जयकरण - चरखी - दादरी राजा मोहनपाल देव - करोली राजारूप सैन - रोपड़ राजा महपाल पंवार - जीन्द राजा परपदेड पुंडीर - लाहौर राजा लखीराव - स्यालकोट राजा जाजा जी तोमर - दिल्ली खड़ग सिंह - रोहिलखण्ड लौदी के समकालीन राजा हरि सिंह - खिज्रखां के दमन का शिकार हुआ - कुमायुं की पहाड़ियों में अज्ञातवास की शरण ली राजा इन्द्रगिरी (रोहिलखण्ड) (इन्द्रसेन) - सहारनपुर में प्राचीन रोहिला किला बनवाया । रोहिला क्षत्रिय वंश भास्कर लेखक आर. आर. राजपूत मुरसेन अलीगढ से प्रस्तुत राजा बुद्ध देव रोहिला - 1787 ई., सिंधिया व जयपुर के कछवाहो के खेड़ा व तुंगा के मैदान में हुए युद्ध का प्रमुख पात्र । (राय कुँवर देवेन्द्र सिंह जी राजभाट, तुंगा (राजस्थान)
रोहिल्ला उपाधि - शूरवीर, अदम्य - साहसी विशेष युद्ध कला में प्रवीण, उच्च कुलीन सेनानायको, और सामन्तों को उनके गुणों के अनुरूप क्षत्रिय वीरों को तदर्थ उपाधि से विभूषित किया जाता था - जैसे - रावत - महारावत, राणा, महाराणा, ठाकुर, नेगी, रावल, रहकवाल, रोहिल्ला, समरलछन्द, लखमीर,(एक लाख का नायक) आदि। इसी आधार पर उनके वंशज भी आजतक राजपूतों के सभी गोत्रों में पाए जाते हैं। "वभूव रोहिल्लद्व्यड्कों वेद शास्त्रार्थ पारग: । द्विज: श्री हरि चन्द्राख्य प्रजापति समो गुरू : ।।2।। ( बाउक का जोधपुर लेख ) - सन 837 ई. चैत्र सुदि पंचमी - हिंदी अर्थ - "वेद शास्त्र में पारंगत रोहिल्लाद्धि उपाधिधारी एक हरिश्चन्द्र नाम का ब्राह्मण था" जो प्रजापति के समान था हुआ ।।6।। ( गुज्जर गौरव मासिक पत्रिका - अंक 10, वर्ष ।।माह जौलाई 1991 पृष्ठ - 13) (राजपुताने का इतिहास पृष्ठ - 147) (इतिहास रोहिला - राजपूत पृष्ठ - 23) (प्राचीन भारत का इतिहास, राजपूत वंश, - कैलाश - प्रकाशन लखनऊ सन 1970 ई. पृष्ठ - 104 -105 - ) रोहिल्लद्व्यड्क रोहिल्लद्धि - अंक वाला या उपाधि वाला । सर्वप्रथम प्रतिहार शासक द्विज हरिश्चन्द्र को रोहिल्लद्धि उपाधि प्राप्त हुई । बाउक,प्रतिहार शासक विप्र हरिश्चन्द्र के पुत्र कवक और श्रीमति पदमनी का पुत्र था वह बड़ा पराक्रमी और नरसिंह वीर था। प्रतिहार एक पद है, किसी विशेष वर्ण का सूचक नही है। विप्र हरिश्चन्द्र प्रतिहार अपने बाहुबल से मांडौर दुर्ग की रक्षा करने वाला था, अदम्य साहस व अन्य किसी विशेष रोहिला शासक के प्रभावनुरूप ही रोहिल्लद्व्यड्क उपाधि को किसी आधार के बिना कोई भी व्यक्ति अपने नाम के साथ सम्बन्ध करने का वैधानिक रूप में अधिकारी नही हो सकता। उपरोक्त से स्पष्ट है कि बहुत प्राचीन काल से ही गुणकर्म के आधार पर क्षत्रिय उपाधि "रोहिल्ला" प्रयुक्त । प्रदत्त करने की वैधानिक व्यवस्था थी। जिसे हिन्दुआसूर्य - महाराजा पृथ्वीराज चौहान ने भी यथावत रखा। पृथ्वीराज चौहान की सेना में एक सौ रोहिल्ला - राजपूत सेना नायक थे । "पृथ्वीराज रासौ" - चहूँप्रान, राठवर, जाति पुण्डीर गुहिल्ला । बडगूजर पामार, कुरभ, जागरा, रोहिल्ला ।। इस कवित्त से स्पष्ट है । कि - प्राचीन - काल में रोहिला- क्षत्रियों का स्थान बहुत ऊँचा था। रोहिला रोहिल्ल आदि शब्द राजपुत्रों अथवा क्षत्रियों के ही द्योतक थे । इस कवित्त के प्रमाणिकता "आइने अकबरी", 'सुरजन चरिता' भी सिद्ध करते हैं । युद्ध में कमानी की तरह (रोह चढ़ाई करके) शत्रु सेना को छिन्न - भिन्न करने वाले को रहकवाल, रावल, रोहिल्ला, महाभट्ट कहा गया है। महाराज पृथ्वीराज चौहान की सेना में पांच गोत्रों के रावल थे - रावल - रोहिला रावल - सिन्धु रावल - घिलौत (गहलौत) रावल - काशव या कश्यप रावल - बलदया बल्द मुग़ल बादशाह अकबर ने भी बहादुरी की रोहिल्ला उपाधि को यथावत बनाए रखा जब अकबर की सेना दूसरे राज्यों को जीत कर आती थी तो अकबर अपनी सेना के सरदारों को,बहादुर जवानों बहादुरी के पदक (ख़िताब,उपाधि) देता था। एक बार जब महाराणा मान सिंह काबुल जीतकर वापिस आए तो अकबर ने उसके बाइस राजपूत सरदारों को यह ख़िताब दी (उपाधि से सम्मानित किया) बाई तेरा हर निरकाला रावत को - रावल जी चौमकिंग सरनाथा को - रावल झंड्कारा कांड्कड को - रोहिल्ला रावत मन्चारा - कांड्कड काम करन, निरकादास रावत को रावराज और रूहेलाल को रोहिला
http://rohillarajputs.blogspot.com/2012/08/some-facts-from-history-rohilla-rajput.html?m=1
विस्तृत पठन
https://adityaruhelarajput.blogspot.com/2019/03/rohilla-kshatriya-1.html
http://rohillarajputs.blogspot.com/2012/06/maharaja-ranveer-singh-rohilla.html?m=1
सन्दर्भ
https://adityaruhelarajput.blogspot.com/2019/03/rohilla-kshatriya-1.html
http://rohillarajputs.blogspot.com/2012/06/maharaja-ranveer-singh-rohilla.html?m=1
बाहरी सूत्र
- ↑ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ Rohilkhand स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।इस लेख की सामग्री सम्मिलित हुई है ब्रिटैनिका विश्वकोष एकादशवें संस्करण से, एक प्रकाशन, जो कि जन सामान्य हेतु प्रदर्शित है।.