रोगभ्रम

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
रोगभ्रम

रोगभ्रम (Hypochondriasis) शरीर के किसी अंग में रोग की कल्पना, या अपने स्वास्थ्य के संबंध में निरंतर दुश्चिंता, अटूट व्यग्रता और अतिचिंता की स्थिति को कहते हैं।

अतिचिंता का केंद्र शरीर के एक अंग से दूसरे अंग में स्थानांतरित हो सकता है, जैसे कभी आमाशय के रोग की अनुभूति और अगले सप्ताह गुर्दे की बीमारी का भ्रम और फिर कभी फेफड़ों में शिकायत जान पड़ना। इसमें शरीर का कोई अंग निरापद नहीं रहता और इसके लक्षण अनेक आग्रही, या परिवर्तनशील हो सकते हैं। यह व्यक्ति को छद्मरोगी बना देता है और इस प्रकार की व्यग्रता से व्यक्ति की हानि हो सकती है।

लक्षण

रोगभ्रम के लक्षणों में निम्नलिखित सम्मिलित हैं :

(१) क्रिया संबंधी अतिचिंता, अर्थात्‌, आत्मनिष्ठ रूप से हृर्त्स्पद और आँत की हलचल जैसे शरीर के संवेदनों पर असाधारण ध्यान, बना रहता है।

(२) जीवन यापन में व्यतिक्रम से जीवनयापन की दक्षता कुप्रभावित होती है। जीवन का आनंद किरकिरा हो जाता है।

(३) रोगभ्रम किसी अन्य मानसिक रोग, जैसे मनस्ताप (Psychoneurosis), या मनोविक्षिप्ति (Psychosis) का ही एक भाग हो सकता है।

(४) व्यक्ति की कामवासना (libido) बाह्यजगत्‌ से तिरोहित होकर, आंतरिक लक्षणों में लग जाती है। व्यक्ति बहुधा विलग-विलग रहता है।

रोगभ्रम के मूल में प्राय: माता पिता की वह प्रवृत्ति पाई गई है जिसमें बच्चे की अतिसुरक्षा, या अतिचिंता की जाती है। इसके बाद वयस्क जीवन में बड़ी शल्यचिकित्सा होने पर लंबी बीमारी, तनाव या शारीरिक चोट, निद्रावियोग, दु:खद घटना, मृत्यु या परिवार के किसी सदस्य की बीमारी आदि से रोगभ्रम का त्वरण हो सकता है। ढलती उम्र, बेंज़ेंडाइन तथा बारविट्यूरेट (नींद लानेवाली दवा) जैसी दवाओं का सेवन भी रोगभ्रम को बल देता है।

रोगभ्रम चिकित्सा की एक महत्वपूर्ण और कठिन समस्या है। इसके रोगी अपनी जाँच और परीक्षण कराते रहना चाहते हैं। इस प्रवृत्ति को प्रोत्साहित नहीं किया जाना चाहिए।

बाहरी कड़िया.