रॉयल मैरेजेज़ ऍक्ट, १७७२

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रॉयल मॅरेजेज़ ऍक्ट यानि शाही विवाह अधिनियम, वर्ष १७७२ में ब्रिटिश संसद द्वारा पारित एक अधिनियम थी, जिसे ब्रिटिश राजपरिवार के सदस्यों के विवाह की वैधता सिद्ध करने के नियमों को स्थापित करने हेतु और शाही विवाहों के संबंध में अन्य विधानों और नियमों को भी अंकित करने हेतु पारित किया गया था, ताकि शाही परिवार के सदस्यों के उन संबंधों से बचा जा सके, जिससे शाही परिवार की हैसियत या मान कम होती हो। शाही परिवार के सहस्यों के निजी मामलों के संबंध में, संप्रभु को दिए गए अधिकार के कारण यह अधिनियम भारी आलोचना का पात्र रहा था।[१][२] २०११ के पर्थ समझौते के बाद, इसे पूर्ववत कर दिया गया, और इसके प्रावधानों में हस्तक्षेपों को काफी हद तक सीमित कर दियागया।

प्रावधान

इस अधिनियम में दिए गए प्रावधानों के अनुसार, राजपरिवार के सदस्यों के केवल उन विवाहों को वैध माना जाएगा, जो ब्रिटिश संप्रभु की स्वीकृति से किये जाएंगे, और संप्रभु की अस्वितृती के साथ किये गए किसी भी विवाह को अवैध क़रार दिया जाएगा, और उस विवाह से हुए सारे संतान और उनके वंशजों का सिंघासन पर किसी भी प्रकार का अधिकार नहीं होगा। हालाँकि, राजपरिवार के सदस्य, संप्रभु की अस्वीकृति के बावजूद, प्रिवी काऊंसिल को विवाह करने की अपनी इच्छा के विषय में सूचित करने के एक वर्ष बाद, वैधिक ववाह कर सकते थे। साथ ही इसके प्रावधान के अनुसार, शाही परिवार के किसी भी ऐसी "अवैध" विवाह में शरीक होने को भी एक आपराधिक कार्य क़रार दिया गया था।

पृष्ठभूमि

१७०१ के ऍक्ट ऑफ़ सेटलमेंट के विधानों के अनुसार, जेम्स प्रथम की पोती, हनोवर की एलेक्ट्रेस, सोफ़िया, के "वैध" प्रोटोस्टेंट वंशज ही सिंघासन को उत्तराधिकृत करने के लिए सक्षम हैं। अर्थात, शाही परिवार के वंश के केवल जायज़ संतान ही सिंघासन पर उत्तराधिकार का हक़ रखते हैं, और कोई भी अवैध संतान, तथा उनके वंशज, सिंघासन पर किसी भी प्रकार का अधिकार नहीं रखते हैं। इसी सन्दर्भ में, रॉयल मैरेजेज़ ऍक्ट, १७७२ के प्रावधानों के अनुसार शाही परिवार के किसी भी सदस्य को विवाह करने हेतु संप्रभु की स्वीकृति लेना आवश्यक है, और संप्रभु के स्वीकृति के बिना किये गए किसी भी विवाह को "अवैध"(अर्थात असक्षम) क़रार दिया जाएगा, तथा वह व्यक्ति और उसके संतान सिंघासन पर अधिकार से वंचित हो जायेंगे। इस अधिनियम के प्रावधानों में २०१३ के सक्सेशन टू द क्राउन ऍक्ट द्वारा कुछ परिवर्तन लाये गए। जिसके अनुसार, उत्तराधिकार क्रम के पहले छह सदस्यों को विवाह करने हेतु संप्रभि की इजाज़त लेना आवश्यक है, अन्यथा उस व्यक्ति तथा उस विवाह से हुए सरे संतान और उनके वंशजों को उत्तराधिकार क्रम से वंचित मान लिया जाएगा। परंतु ऐसी किसी भी विवाह को किसी भी प्रकार से गैर-कानूनी नहीं करार जा सकता है।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. C. Grant Robertson, Select statutes, cases and documents to illustrate English constitutional history(4th edn. 1923) pages 245–7
  2. Lord Mackay of Clashfern, Lord High Chancellor of Great Britain, ed. Halsbury's Laws of England (4th edn. 1998), volume 21 (1), Page 21

बाहरी कड़ियाँ