राष्ट्रीय सांस्कृतिक संपदा संरक्षण अनुसंधान प्रयोगशाला

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

राष्ट्रीय सांस्कृतिक सम्पदा संरक्षण अनुसंधानशाला (National Research Laboratory For Conservation Of Cultural Property (NRLC)), भारत सरकार, संस्कृति मंत्रालय की सांस्कृतिक सम्पदा के संरक्षण के लिये समर्पित एक वैज्ञानिक संस्था है। इसकी स्थापना 1976 में हुई। अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए एनआरएलसी महत्वपूर्ण संरक्षण के उपाय एवं सामग्री से सम्बन्धित शोध कार्य संचालित करता है। संरक्षण सम्बन्धी ज्ञान का प्रचार-प्रसार करता है। रोग निवारणात्मक संरक्षण में प्रशिक्षण देता है तथा सुरक्षात्मक संरक्षण के क्षेत्र में कार्यक्रम विकसित एवं आयोजित करता है। चयनात्मक आधार पर संरक्षण सेवायें भी प्रदान करता है।

राष्ट्रीय सांस्कृतिक संपदा संरक्षण अनुसंधान प्रयोगशाला सन् 1976 में स्‍थापित सांस्‍कृतिक संपदा के संरक्षण के लिए राष्‍ट्रीय अनुसंधान प्रयोगशाला संस्‍कृति विभाग का अधीनस्‍थ कार्यालय है और विज्ञान व प्रौद्योगिक विभाग द्वारा इसे भारत सरकार के वैज्ञानिक संस्‍थान के रूप में मान्‍यता प्राप्‍त है।

लक्ष्य एवं ध्येय

इस प्रयोगशाला का उद्देश्‍य और लक्ष्‍य है देश में सांस्‍कृतिक संपदा का संरक्षण करना। इन उद्देश्‍यों की प्राप्‍ति के लिए यह प्रयोगशाला संग्रहालयों, अभिलेखागारों, पुरातत्‍व विभागों और इसी प्रकार के अन्‍य संस्‍थानों को संरक्षण सेवाएं तथा तकनीकी परामर्श उपलब्‍ध कराती है; संरक्षण के विभिन्‍न पहलुओं पर प्रशिक्षण देती है; संरक्षण के तरीकों और सामग्री के बारे में अनुसंधान करती है; संरक्षण संबंधी जानकारी का प्रचार-प्रसार करती है और देश में संरक्षण से जुड़े विषयों पर पुस्‍तकालय सेवाएं मुहैया कराती है। इस राष्‍ट्रीय अनुसंधान प्रयोगशाला का मुख्‍यालय लखनऊ में है तथा दक्षिण राज्‍यों में भी संरक्षण के बारे में जागरूकता पैदा करने के उद्देश्‍य से मैसूर में राष्‍ट्रीय अनुसंधान प्रयोगशाला के क्षेत्रीय केंद्र के रूप में क्षेत्रीय संरक्षण प्रयोगशाला काम कर रही है।

अनुसंधानशाला ने विभिन्न कलाकृतियों के संरक्षण एवं सांस्कृतिक विरासत के विश्लेषणात्मक अध्ययन के लिए अनेक तरीके एवं मानक विकसित किये है। एनआरएलसी ने भित्ति-चित्रों एवं एक नर श्रवाल इमारत को मिलाकर सहस्रों कलाकृतियों पर प्रयोग किये है। एनआरएलसी मे श्रवाल चित्र इमारत के संरक्षण का प्रशिक्षण भी चलाया गया।

प्रयोगशाला के उद्देश्य एवं ध्येय निम्नवत् हैः-

  • संरक्षण के बेहतर तरीकों के विकास के लिए अनुसन्धान।
  • पुरातत्व एवं कलात्मक सामग्री का तकनीकी अध्ययन।
  • पुरातत्व विभागों, संग्रहालययों एवं अन्य संस्थानों का तकनीकी सहयोग।
  • प्रशिक्षण, प्रलेखन, प्रकाशन एवं अन्तराष्ट्रीय सम्पर्क इत्यादि।

विभाग

एनआरएलसी के पास व्यावसायिक रूप से प्रशिक्षित, संरक्षण वैज्ञानिक एवं संरक्षकों का दल है। संरक्षक रसायन विज्ञान एवं सूक्ष्म कला क्षेत्र से एवं संरक्षण वैज्ञानिक मुख्यतः रसायनज्ञ कुछ जीव वैज्ञानिक एक भौतिक विज्ञानी एवं भूगर्भ विज्ञान से लिए गये है। एन.आर.एल.सी. में तकनीकी क्षेत्र के कुल 90 व्यक्ति है।

विश्लेषणात्मक विज्ञान

पुरातत्विक, धात्विक, तत्वों, धातुओं, पाषाणों एवं चित्रांे इत्यादि मंे अनुसन्धान आयोजित करने के लिए एनआरएलसी में ग्त्थ्ध् ग्त्क्ए ैम्ड.म्क्। ग्ए।।ैए प्त्ए भ्च्स्ब् इत्यादि परिष्कृत उपकरणों से सुसज्जित विभाग है।

जीव विकृति विभाग

यह विभाग कवक, शैवाल, कीटों द्वारा नष्ट एवं जीर्ण-शीर्ण संग्रहालय स्थित सामग्रियों, इमारतों के अध्ययन का कार्य संभालता है। यह विभाग परिष्कृत अनुसन्धानात्मक सूक्ष्मदर्शियों, ठव्क् ऊष्मायंत्र, पर्यावरण कक्ष इत्यादि से सुसज्जित है।

संरक्षण विभाग

यह विभाग संग्रहालयों, पुरातत्व विभागों, अभिलेखों एवं अन्य संस्थाओं को तकनीकी सहयोग प्रदान करता है। हर प्रकार के विकृतियों का संरक्षणात्मक उपचार यहॉ किया जाता है।

धातु विभाग

यह विभाग उपलब्ध वस्तुओं को सुधारने का प्रयास करने के बजाय संरक्षण के बेहतर उपायों को विकसित करने में रत है। यह विभाग विभिन्न धातु पदार्थो की धातु रचना विज्ञान अध्ययन भी करता है। इस विभाग के पास धातुकर्मीय सूक्ष्मदर्शी अल्ट्रासोनिक सूक्ष्मता नापने के उपकरण इत्यादि उपलब्ध है।

कागज विभाग

यह विभाग पुरालेख संरक्षण तत्वों के विकास के लिए बेहतर उपायों की आवश्यकता पूरी करने में सहयोग प्रदान करता है। इस विभाग में परती शक्ति परीक्षक, तनन क्षमता परीक्षक इत्यादि भी उपलब्ध है।

पाषाण विभाग

इस विभाग में पास क्षतिग्रस्त वस्तुओं के रासायनिक भौतिक, खनिजलवणात्मक, शैलविज्ञानिक तत्वों की विशेषता के अध्ययन के लिए अनेक सुविधायें उपलब्ध है। इस विभाग में उपलब्ध उपकरण हैः- पत्थर काटने एवं पीसने का उपकरण, सामगी की जॉच से सम्बन्धित मशीन, यू0वी0 स्पेक्ट्रोफोटोमीटर, मर्करी पोरसीमीटर, इत्यादि।

प्रादेशिक क्षेत्रीय विभाग

एनआरएलसी की गतिविधियों को एक असरदार रूप देने के लिए दक्षिणी क्षेत्र के लिए एक क्षेत्रीय विभाग (क्षेत्रीय संरक्षण प्रयोगशाला) के नाम से सिद्धार्थ नगर, मैसूर में कार्यरत है। त्ब्स् मूसैर का गठन 1986 में हुआ। वहॉ कर्मचारियों की संख्या 24 है। उत्तर पूर्व, पश्चिमी पूर्वी एवं मध्य भारत में क्षेत्रीय केन्द्र प्रस्तावित है एवं शीघ्र ही खुलने वाले है।

बाहरी कड़ियाँ