राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (भारत)

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना ससंद के द्वारा 1992 के राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम के नियमन के साथ हुई थी। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के प्रथम अध्यक्ष न्यायमूर्ति मोहम्मद सरदार अली खान (1993-1996) थे।

पृष्ठभूमि

भारत के गृह मंत्रालय के संकल्प दिनांक 12.1.1978 की परिकल्पना के तहत अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की गई थी जिसमें विशेषरूप से उल्लेख किया गया था कि संविधान तथा कानून में संरक्षण प्रदान किए जाने के बावजूद अल्पसंख्यक असमानता एवं भेदभाव को महसूस करते हैं। इस क्रम में धर्मनिरपेक्ष परंपरा को बनाए रखने के लिए तथा राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार अल्पसंख्यकों के लिए सुरक्षा उपायों को लागू करने पर विशेष बल दे रही है तथा समय-समय पर लागू होने वाली प्रशासनिक योजनाओं, अल्पसंख्यकों के लिए संविधान, केंद्र एवं राज्य विधानमंडलों में लागू होने वाली नीतियों के सुरक्षा उपायों के प्रभावी कार्यान्वयन हेतु प्रभावशाली संस्था की व्यवस्था करना। वर्ष 1984 में कुछ समय के लिए अल्पसंख्यक आयोग को गृह म़ंत्रालय से अलग कर दिया गया था तथा कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत नए रूप में गठित किया गया।[१]

अल्पसंख्यक समुदाय

कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा 23 अक्टूबर 1993 को अधिसूचना जारी कर अल्पसंख्यक समुदायों के तौर पर 6 धार्मिक समुदाय यथा मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध,जैन तथा पारसी समुदायों को अधिसूचित किया गया था। 2001 की जनगणना के अनुसार देश की जनसंख्या में पांच धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों का प्रतिशत 18.42 है।

27 जनवरी 2014 को केंद्र सरकार ने राष्‍ट्रीय अल्‍पसंख्‍यक आयोग कानून 1992 की धारा 2 के अनुच्‍छेद (ग) के अंतर्गत प्राप्‍त अधि‍कारों का उपयोग करते हुए, जैन समुदाय को भी अल्‍पसंख्‍यक समुदाय के रूप में अधि‍सूचि‍त कर दि‍या।[२]

कार्य

आयोग को निम्नलिखित कार्यों के सम्पादन का आदेश दिया गया हैः-

1. संघ तथा राज्यों के अर्थात अल्पसंख्यकों की उन्नति तथा विकास का मूल्यांकन करना।

2. संविधान में निर्दिश्ट तथा संसद और राज्यों की विधानसभाओं/परिषदों के द्वारा अधिनियमित कानूनों के अनुसार अल्पसंख्यकों के संरक्षण से संबधित कार्यों की निगरानी करना।

3. केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकारों के द्वारा अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिए संरक्षण के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए अनुसंशा करना।

4. अल्पसंख्यकों को अधिकारों तथा संरक्षण से वंचित करने से संबधित विषेश षिकायतों को देखना तथा ऐसे मामलों की संबधित अधिकारियों के सामने प्रस्तुत करना।

5. अल्पसंख्यकों के विरूद्ध किसी भी प्रकार के भेदभाव से उत्पन्न समस्याओं के कारणों का अध्ययन और इनके समाधान के लिए उपायों की अनुषंसा करना।

6. अल्पसंख्यकों के सामाजिक आर्थिक तथा षैक्षणिक विकास से संबधित विशयों का अध्ययन, अनुसंधान तथा विष्लेशण की व्यवस्था करना।

7. अल्पसंख्यकों से संबधित ऐसे किसी भी उचित कदम का सुझाव देना जिसे केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकारों के द्वारा उठाया जाना है।

8. अल्पसंख्यकों से संबधित किसी भी मामले विषेशतया उनके सामने होने वाली कठिनाइयों पर केन्द्रीय सरकार हेतु नियतकालिक या विषेश रिपोर्ट तैयार करनाय और

9. कोई भी अन्य विशय जिसे केन्द्रीय सरकार के सामने प्रस्तुत किया जा सकता है, रिपोर्ट तैयार करना।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ


बाहरी कड़ियाँ